Lucknow: गरीबों का सेब कहे जाने वाले अमरूद की फसल पर गंभीर संकट मंडरा रहा है। पिछले एक दशक में विदेशी प्रजातियों, जैसे कि थाई पिंक और ताइवान पिंक के साथ आया निमेटोड संक्रमण तेजी से अमरूद के बागानों में फैल रहा है।
इस संक्रमण के कारण वर्तमान में लगभग आधे से अधिक बागान प्रभावित हो चुके हैं। अमरूद अपनी पोषक तत्वों से भरपूर गुणों और सस्ती कीमत के चलते गरीब तबके के लोगों का मुख्य फल माना जाता है, लेकिन निमेटोड संक्रमण के चलते इसकी फसल और उपज दोनों खतरे में हैं।
योगी सरकार को दी गई जानकारी
केंद्रीय उपोष्ण बागवानी संस्थान (सीआईएसएच) द्वारा किए गए एक सर्वेक्षण में इस संकट की गंभीरता का उल्लेख किया गया है। हाल ही में संस्थान ने मुख्य सचिव के माध्यम से योगी सरकार को इस स्थिति से अवगत कराया है। उम्मीद की जा रही है कि अमरूद की फसल से जुड़े इस मुद्दे पर सरकार जल्द ही कदम उठाएगी ताकि बागवानों को बचाया जा सके।
अमरूद की फसल के लिए बड़ा खतरा -वैज्ञानिक
सीआईएसएच के निदेशक, डॉ. टी. दामोदरन ने निमेटोड संक्रमण को अमरूद की फसल के लिए एक बड़ा खतरा बताया है। संक्रमण के कारण फलों की गुणवत्ता और उपज पर नकारात्मक प्रभाव पड़ता है, जिससे किसानों को आर्थिक नुकसान का सामना करना पड़ रहा है। उन्होंने बताया कि संक्रमण के प्रबंधन के लिए फ्लोपायरम का उपयोग असरदार पाया गया है, लेकिन यह महंगा है और इसका प्रभाव मात्र छह महीने तक रहता है।
संक्रमण का प्रबंधन चुनौतीपूर्ण, जैव-एजेंट हो सकते हैं कारगर
निमेटोड (Lucknow) संक्रमण का प्रबंधन मुश्किल है और इसे खत्म करना लगभग असंभव है। हालांकि, जैव-एजेंटों जैसे ट्राइकोडर्मा, पर्प्यूरोसिलियम, और बैसिलस एमिलोलिकेफेसिएन्स का प्रयोग संक्रमण को नियंत्रित करने में कुछ हद तक कारगर साबित हो सकता है। विशेषज्ञों के अनुसार, बार-बार इनके इस्तेमाल से बेहतर परिणाम मिल सकते हैं।
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सीआईएसएच (Lucknow) के वैज्ञानिकों ने पाया कि इलाहाबाद सफेदा और स्वदेशी रूप से विकसित किस्मों जैसे ललित, लालिमा, श्वेता आदि निमेटोड संक्रमण के प्रति अधिक सहिष्णु हैं, जबकि विदेशी किस्में अत्यधिक संवेदनशील होती हैं। इन स्वदेशी किस्मों को किसानों और बागवानों के लिए अधिक उपयुक्त माना जा रहा है और सरकार द्वारा इन्हें प्रोत्साहित किया जा रहा है।
अवैध पौध विक्रेताओं पर सख्ती की आवश्यकता
संस्थान के वैज्ञानिकों ने अवैध रूप से पौधे बेचने वाले विक्रेताओं पर सख्ती बरतने की भी सिफारिश की है, ताकि निमेटोड संक्रमण को और फैलने से रोका जा सके। संस्थान ने इस समस्या से निपटने के लिए नई तकनीकों का भी विकास किया है, जो रोपण सामग्री के साथ संक्रमण के प्रसार को रोकने में मदद कर सकती हैं।
संस्थान की किस्में: ललित, श्वेता और धवल
संस्थान ने ललित, श्वेता, धवल जैसी उच्च गुणवत्ता वाली अमरूद की किस्में विकसित की हैं। ललित किस्म गुलाबी गूदे वाली है, जिसका उपयोग ताजे फलों और प्रोसेसिंग दोनों में किया जा सकता है। श्वेता किस्म के फल बड़े और गोल होते हैं, जबकि धवल किस्म में सफेद और मीठे फलों की उपज होती है।
अमरूद के बागों का प्रबंधन और संरक्षण
किसानों (Lucknow) को सलाह दी जा रही है कि वे अमरूद के बागों को सही ढंग से प्रबंधित करें और उपयुक्त जमीन का चयन करें, जिससे निमेटोड संक्रमण को कम किया जा सके। साथ ही, कैनोपी प्रबंधन तकनीक के जरिए पुराने बागानों का कायाकल्प भी किया जा सकता है।
अमरूद में पोषक तत्वों की भरमार
अमरूद अपने पोषक गुणों के लिए जाना जाता है। इसमें विटामिन सी, शर्करा, पेक्टिन और खनिज तत्व प्रचुर मात्रा में पाए जाते हैं। इसका उपयोग ताजे फलों के साथ-साथ जेली, जूस, मुरब्बा और अन्य खाद्य उत्पादों में भी किया जा सकता है।
अमरूद और आम की संयुक्त खेती से बेहतर आय
संस्थान के विशेषज्ञों के अनुसार, अमरूद और आम की संयुक्त खेती से किसानों को बेहतर और दीर्घकालिक आय प्राप्त हो सकती है। इसके लिए आम के पौधों के बीच अमरूद के पौधे लगाए जा सकते हैं, जिससे अतिरिक्त उपज और आय का स्रोत बनेगा।
अमरूद के बागानों पर निमेटोड संक्रमण एक गंभीर चुनौती बनकर उभर रहा है। सरकार और संस्थान के वैज्ञानिक इस संकट से निपटने के लिए सक्रिय हैं, लेकिन बागवानों को भी उचित प्रबंधन और किस्मों के चयन में सावधानी बरतनी होगी।