Tetanus Injection:लोहे से चोट लगने क्यों ज़रूरी होता है टिटनेस का इंजेक्शन, क्या ज़रा सी लापरवाही बन सकती ख़तरनाक बीमारी की वजह

लोहे की जंग लगी चीज़ से चोट लगते ही टिटनेस का इंजेक्शन ज़रूर लगवाएं। यह गंभीर बीमारी नर्वस सिस्टम को प्रभावित करती है। वैक्सीन से समय रहते बचाव संभव है।

Tetanus Injection: अगर कभी लोहे की जंग लगी चीज़ से चोट लग जाए, तो डॉक्टर तुरंत टिटनेस का इंजेक्शन लगवाने की सलाह देते हैं। यह इसलिए ज़रूरी है क्योंकि टिटनेस एक बेहद गंभीर और जानलेवा बीमारी है।
विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) के अनुसार, हर साल दुनिया भर में लगभग 30,000 लोग टिटनेस के कारण अपनी जान गंवा देते हैं। भारत में भी इसके हजारों केस हर साल सामने आते हैं।

टिटनेस किस वजह से होता है?

यह एक बैक्टीरियल इन्फेक्शन है, जो क्लॉस्ट्रिडियम टेटानी नाम के बैक्टीरिया से होता है।
यह बैक्टीरिया मिट्टी, धूल, गोबर और जंग लगे लोहे में पाया जाता है। जब लोहे की कोई चीज़ त्वचा में घुसती है, तो यह बैक्टीरिया शरीर के अंदर पहुंच जाता है और टॉक्सिन (जहर) पैदा करता है, जिससे नर्वस सिस्टम पर बुरा असर पड़ता है।

टिटनेस के लक्षण कैसे पहचानें?

चोट लगने के 3 से 21 दिन के अंदर टिटनेस के लक्षण दिख सकते हैं।
कुछ मुख्य लक्षण हैं।

जबड़े का जकड़ जाना (Lockjaw), जिससे मुंह खोलना मुश्किल हो जाता है।

गर्दन, पीठ और पेट की मांसपेशियों में अकड़न और ऐंठन।

सांस लेने में दिक्कत।

शरीर का तेज बुखार और ज्यादा पसीना आना।

कुछ मामलों में दौरे और बेहोशी भी हो सकती है।
यह बीमारी दिल और फेफड़ों पर भी असर डाल सकती है, जिससे जान का खतरा बढ़ जाता है।

फोर्टिस हॉस्पिटल, जयपुर के डॉक्टर अनिल मेहता बताते हैं कि टिटनेस से बचाव के लिए दो तरह के इंजेक्शन दिए जाते हैं।

टिटनेस टॉक्सॉइड (TT वैक्सीन)

अगर पहले से वैक्सीनेशन हुआ है तो बूस्टर डोज दी जाती है। ये शरीर में एंटीबॉडीज़ बनाकर टॉक्सिन से लड़ने में मदद करती है।

टिटनेस इम्यून ग्लोबुलिन (TIG)

अगर किसी को पहले वैक्सीन नहीं लगी हो या उसकी हिस्ट्री साफ न हो, तो TIG दिया जाता है। ये शरीर में तुरंत असर करके बैक्टीरिया को बेअसर कर देता है।
गंदे या गहरे घावों में यह इंजेक्शन बहुत ज़रूरी हो जाता है।

बच्चों को कैसे सुरक्षित रखें?

भारत में बच्चों को टिटनेस से बचाने के लिए DPT वैक्सीन दी जाती है। यह वैक्सीन बच्चे के

6 हफ्ते,

10 हफ्ते,

14 हफ्ते, और

5 साल की उम्र में दी जाती है।

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