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Independence Day Special: 1857 के क्रांतिकारी ठाकुर कुशाल सिंह ने आजादी के लिए अंग्रेज का सिर काटकर लगाया था दरवाजे पर

Web Desk by Web Desk
August 13, 2022
in अद्भुत कहानियां, एडिटर चॉइस, देश, राजस्थान
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Pali: राजस्थान के पाली जिले में मारवाड़ जंक्शन तहसील का छोटा सा कस्बा है आऊवा। अंग्रेजी हुकूमत की चूलें हिलाने से इस कस्बे का नाम इतना बड़ा हो गया है कि जब भी आजादी की पहली अलख जगाने वाली 1857 की क्रांति का जिक्र होता है, आऊवा के बलिदान को याद किया जाता है।

ब्रिटिश हुकूमत ने 24 जनवरी, 1858 को 120 सैनिकों को गिरफ्तार किया था। 25 जनवरी 1858 को कोर्ट ने 24 स्वतंत्रता सेनानियों को मृत्यु दंड की सजा सुनाई थी।

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उन्हें एक साथ लाइन में खड़ा करके फांसी दे दी गई। यह पहला ऐसा मामला था, जिसमें इतने कम समय में किसी को फांसी दी गई हो।

स्वतंत्रता सेनानियों के गढ़ को तबाह करने के लिए अंग्रेजों ने कई राजाओं के साथ मिलकर आऊवा पर हमला किया। लेकिन, हर बार हार का सामना करना पड़ा। ठाकुर कुशाल सिंह सुगाली माता के परम भक्त थे। उनकी कृपा से अंग्रेजों को मुंह की खानी पड़ती थी। अंग्रेजों ने माता की मूर्ति खण्डित कर आऊवा सहित उससे जुड़े छह किलों को सुरंगें बनाकर ध्वस्त किया था। इसके बावजूद जब अंग्रेज पूरी तरह विफल रहे तब उन्होंने जोधपुर के महाराजा की मदद ली। जोधपुर के राजा और अंग्रेज सरकार ने मिलकर आऊवा पर हमला किया। उस समय जोधपुर की सेना का पॅालिटिकल एजेंट मॉक मेसन था। उसने आऊवा पर हमला करना चाहा परन्तु युद्ध में ठाकुर कुशाल की तलवार के आगे टिक नहीं पाया। मॉक मेसन का सिर काटकर आऊवा के दरवाजे पर लटका दिया गया था।

फिर कर्नल होम्स के नेतृत्व में ब्रिटिश सेना ने 24 जनवरी, 1858 को आऊवा के किले पर अधिकार कर लिया। देश की स्वतंत्रता के लिए पहली लड़ाई 1857 में लड़ी गई थी। जिसमें ठाकुर कुशाल सिंह का प्रमुख योगदान था। उन्होंने अंग्रेजों के खिलाफ सशस्त्र क्रांति का नेतृत्व किया था। उन्होंने मारवाड़ में अंग्रेजों के खिलाफ सशस्त्र क्रांति का नेतृत्व किया था। ठाकुर कुशाल सिंह जोधपुर रियासत के आऊवा ठिकाने के जागीरदार थे। 1857 की क्रांति को प्रथम स्वतंत्रता संग्राम भी कहा जाता है। इस क्रांति की लहर पूरे देश में फैल गई थी। यहां के राजा अंग्रेजों के साथ हुई सहायक संधियों के कारण विवश थे। इस कारण वे अंग्रेजों का विरोध नहीं कर सकते थे। लेकिन यहां के बहुत से जागीरदार इस क्रांति में खुलकर सामने आए।

डीसा और एरिनपुरा की छावनी के सैनिकों ने अंग्रेजों के विरुद्ध अभियान छेड़ा। यहां के सिपाही बागी हो गए और विद्रोह कर आबू पहुंच गए। वहां इन विद्रोही सैनिकों ने अंग्रेज अधिकारियों व कई अंग्रेजों को मौत के घाट उतार दिया गया।

वहाँ से दिल्ली चलो, मारो फिरंगी के नारे लगाते हुए आऊवा तक पहुँच गए। इन सैनिक विद्रोहियों के मारवाड़ में 25 अगस्त, 1857 को आऊवा पहुँचने पर ठाकुर कुशाल सिंह ने उनका स्वागत किया और उन्हें शरण दी। कुशाल सिंह खुद भी विद्रोहियों के साथ हो गए। यह सुनकर स्वतंत्रता के लिए पहले से प्रयासरत ठाकुर बिशन सिंह गूलर और ठाकुर अजीत सिंह आलनियावास भी अपनी-अपनी सेना के साथ आऊवा पहुंचकर स्वतंत्रता सेनानियों के साथ मिल गए।

अंग्रेज विरोधियों के आऊवा गांव में एकत्रित होने की सूचना पर जोधपुर के पूर्व महाराजा तखत सिंह ने इनका दमन करने के लिए सिंघवी कुशल राज और मेहता विजयमल को सेना देकर वहाँ भेजा। आठ सितंबर, 1857 को बिठौड़ा गांव के पास मारवाड़ की सेना का क्रांतिकारियों से युद्ध हुआ। जोधपुर की सेना के अनार सिंह व राजमल लोढ़ा युद्ध में काम आए। सेनापति कुशलराज और विजय मल मेहता अपने प्राण बचाकर भाग खड़े हुए। युद्ध में क्रांतिकारियों की सेना ने जोधपुर राज्य की सेना को परास्त कर दिया। इसकी सूचना मिलते ही अजमेर से गवर्नर जनरल के एजेन्ट ने अंग्रेजी सेना के साथ चढ़ाई की और आऊवा पर आक्रमण करने के लिए अंग्रेजों ने अजमेर, नीमच, नसीराबाद और मऊ की सैनिक छावनियों से सेना एकत्रित की और जॉन लारेन्स के नेतृत्व में सेना आऊवा पहुँची।

जोधपुर का पॉलिटिकल एजेंट कैप्टन मेशन भी 1500 सैनिकों के साथ आ पहुँचा। वहीं, कुशाल सिंह के साथ आऊवा में स्वतंत्रता की चाहत रखने वाले पाँच हजार राजपूत सैनिक एकत्र हो गए थे। इनमें आसोप के ठाकुर शिवनाथ सिंह कंपावत, गूलर के ठाकुर बिशनसिंह मेड़तिया, आलणियावास के ठाकुर अजीत सिंह मुख्य थे। इनके अतिरिक्त बांटा, लाम्बिया, रहावास, बांझावास, आसींद तथा मेवाड़ के रूपनगर, सलूम्बर के ठिकानेदारों की सेनाएं थीं।

18 सितंबर, 1857 को आऊवा में राजपूतों ने अंग्रेजी सेना के साथ युद्ध किया और दोनों पक्षों में भयंकर युद्ध हुआ।

एक बार सरकारी सेना ने विद्रोहियों की सेना को आऊवा के तालाब की पाल के पीछे बचाव करने के लिए बाध्य कर दिया, लेकिन जल्द ही आसोप ठाकुर शिवनाथ सिंह ने हमला करके अंग्रेज सेना की बहुत सी तोपें छीन ली। इससे अंग्रेजों की सेना को युद्ध का मैदान छोड़कर आंगदोस की तरफ हटना पड़ा। इस युद्ध में अंग्रेज सेना परास्त हो गई। क्रांतिकारियों ने कैप्टन मेसन को मार डाला और उसका सिर काटकर आऊवा के दरवाजे पर लटका दिया।

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