ओडेसा शहर के इस सबसे बड़े वेयरहाउस पर रूस ने चंद घंटों पहले ही क्रूस मिसाइल के जरिए हमला किया है। क्रूज मिसाइल इसलिए क्योंकि ,इस वेयरहाउस की छत से ज्यादा दीवारों को नुकसान पहुंचा है, जिससे यह साफ हो जाता है कि मिसाइल की ऊंचाई समुंदर तट से ज्यादा नहीं थी।
यूक्रेन की आधिकारिक सूत्रों की मानें तो यह है वेयर हाउस खाने पीने के समान राशन और अन्य जरूरी वस्तुओं को रखने के लिए था, लेकिन रूस की तरफ से यह दावा किया जा रहा है कि यहां पर नाटो देशों से मिले सामरिक महत्व के संसाधनों को रखा गया था ,हालांकि जिस तरह एक के बाद एक कई मिसाइल के जरिए हमला किया गया। जिसमें से एक मिसाइल तो बाहर ही सडक पर गड्ढा बनाते हुए फट गई, जबकि कई मिसाइल निशानें पर लगी है, इसलिए ऐसा लगता है कि जब रुस एक से अधिक मिसाइल का प्रयोग कर रहा है, तो यह वेयरहाउस बेहद महत्वपूर्ण रणनीतिक ठिकाना होगा।
यहां अभी भी पूरी तरीके से आग नहीं बुझाई गई है। धुआं देखा जा सकता है, जब हमने इसके अंदर जाने की कोशिश की तो ,हमें यूक्रेन की सेना के द्वारा रोक दिया गया। इससे इस बात की भी संभावना है कि अंदर ज्वलनशील सामग्री या बारूदी हथियार हो सकते हैं।
ओडेसा जिसकी स्थापना यूनान साम्राज्य ने ईसा पूर्व छठी शताब्दी में की थी, जिसे ग्रीक भाषा में समुंदर का मोती कहां गया, जिसे रूस ओटोमन अंपायर से जीता था, जिस पर कब्जा करने में एडोल्फ हिटलर की सेना भी नाकाम रही, जहां 2014 में क्रीमिया युद्ध के दौरान भी खूनी संघर्ष देखने को मिला, यह यूक्रेन का तीसरा सबसे बड़ा शहर है आबादी करीब 11 लाख।
सामरिक लिहाज से देखें तो यह मारियोपोल के बाद यूक्रेन का दूसरा सबसे बड़ा बंदरगाह है। अगर यह शहर और उसके कब्जे में चला जाता है, तो यूक्रेन की समुद्री तट रेखा पूरी तरीके से रूस के नियंत्रण में आ जाएगी। जिसके बाद यूक्रेन तक सागर के रास्ते कोई मदद नहीं पहुंच पाएगी।
जहां से तकरीबन 70 किलोमीटर दूर क्रीमिया है। जहां रूस की नौसेना की बड़ी फ्लीट लगाई गई है। इसी इलाके में रूस के युद्धपोत मोस्कोवा को नेपच्यून मिसाइल हमले के जरिए डुबोया गया था। यहां से सिर्फ 20 समुद्री मील की दूरी पर रूस के युद्धपोत फ्रीगेट मिसाइल डिस्ट्रॉयर और पनडुब्बियों मौजूद हैं।
हालांकि यूक्रेन ने भी अपनी तटरेखा को बचाने के लिए पूरी तैयारी करनी है। समुंदर के 20 मील के इलाकों में सी माइन बिछाई गई है, जिसके जरिए अगर छोटी फ्रिगेड और एमफीबीएस ऑपरेशन के जरिए रूस की सेना समुद्री तट रेखा पर नियंत्रण करना चाहे ,अगर होवरक्राफ्ट के जरिए रूस के कमांडो ओडेसा पहुंचना चाहें, तो उन्हें रोका जा सकता है। समुंदर के साथ-साथ बीच की रेत में भी लैंडमाइन बिछाई गई है।
रूस ने ओडेसा शहर के लिए भी वही रणनीति अपनाई है, जो इससे पहले वह खारकीव और मायरोपोल के लिए अपना चुका है। यहां पर डीजल ,पेट्रोल ,एलपीजी सीएनजी का संकट पैदा हो गया है। किसी भी गाड़ी को 10 लीटर से ज्यादा इंधन भरवाने नहीं दिया जा रहाॆ। उसमें भी घंटों का इंतजार करना पड़ता है। खाने पीने की सामान की कीमत भी दोगुनी हो चुकी है।
और अब और रॉकेट के जरिए रूस के युद्धपोत ने इस शहर के पानी की सप्लाई ,यानी शुद्ध पेयजल के कंट्रोल सेंटर को निशाना बनाया है। अधिकांश पाइपलाइन मॉनिटर चिपसेट खराब हो चुके हैं, जिसकी वजह से अब शहर में साफ पीने का पानी भी नहीं मिल पा रहा। ऐसे में स्थानीय जनता के पास पलायन के अलावा कोई दूसरा विकल्प नहीं रह जाता।
रूस की रणनीति भी यही है रूस की कोशिश है कि जब अधिकांश जनता शहर छोड़ कर चली जाएगी, तब यूक्रेन की सेना पर जबरदस्त हमला करके इस शहर को अपने कब्जे में लिया जा सकता है। पड़ोस के देश माल्टोवा में रूस की सेना पहले से ही मौजूद है, ऐसे में जमीन और समंदर दोनों तरफ से संभव है बड़ा हमला।
यूरोप और अमेरिका की तमाम मल्टीनेशनल कंपनी ने अपना व्यापार रूस में खत्म कर दिया है और उस पर प्रतिबंध लगाए गए हैं और इन कंपनियों ने अपने तमाम स्टोर मॉस्को से हटा लिए हैं। यही वजह है कि अब रूस ऐसे बड़े शॉपिंग मॉल पर भी प्रक्षेपास्त्र के जरिए हमला कर रहा है, जहां पर इन कंपनियों के बड़े-बड़े आउटलेट मौजूद है, जहां ना तो सामरिक महत्व का सामान था और ना ही रसद और खाद्यान्न, फिर भी रूस ने इस सिविलियन एसिड पर हमला किया ताकि, उन कंपनियों को एक मैसेज पहुंचाया जा सके जो रूट पर प्रतिबंध लगाकर रूसी अर्थव्यवस्था को नुकसान पहुंचा रहे हैं।
(BY: Vanshika Singh)