अमेरिका की धरती पर Chinese scientists युनकिंग जियान (33) और जुनयोंग लियू (34) ने जो जैविक साजिश रची, वह जितनी चुपचाप थी, उतनी ही विनाशकारी भी हो सकती थी। इन दोनों पर आरोप है कि उन्होंने “फ्यूजेरियम ग्रैमिनीरम” नामक एक खतरनाक जैविक कवक की तस्करी की, जिसे वैज्ञानिक फसल विनाश का जैविक हथियार मानते हैं।
खेतों में फैलने वाला ‘न्यूक्लियर बम’!
जहां परमाणु हथियार तत्कालिक तबाही मचाते हैं, वहीं यह फंगस खेतों को चुपचाप नष्ट कर वैश्विक खाद्य श्रृंखला को तोड़ने की ताकत रखता है। यह कवक गेहूं, मक्का, जौ और चावल जैसी प्रमुख फसलों में ‘हेड ब्लाइट’ नामक रोग पैदा करता है, जिससे अनाज जहरीला हो जाता है। इसमें पाए जाने वाले माइकोटॉक्सिन्स – डिऑक्सीनिवेलनॉल और जेरालेनोन – इंसानों और जानवरों में गंभीर बीमारियां जैसे उल्टी, प्रजनन विकार और लीवर डैमेज पैदा कर सकते हैं।
विशेषज्ञों का कहना है कि यदि यह कवक दुनिया भर के खेतों में फैल जाए, तो यह वैश्विक भूखमरी, व्यापारिक संकट और लाखों जानों के नुकसान का कारण बन सकता है – परमाणु युद्ध की तुलना में कहीं अधिक विनाशकारी परिणामों के साथ।
कोरोना के बाद अगला खतरा?
कोविड-19 ने साबित किया कि अदृश्य सूक्ष्म जीव कैसे मानव समाज को घुटनों पर ला सकते हैं। लेकिन एग्रो टेररिज्म उससे भी आगे की चेतावनी है – जब दुश्मन फसलों को निशाना बनाकर पूरे देशों को आर्थिक गुलामी की ओर धकेल सकते हैं।
एफबीआई की रिपोर्ट के मुताबिक, Chinese scientists लियू ने स्वीकार किया कि उसने फंगस को टिशू में छिपाकर डेट्रॉयट एयरपोर्ट से अमेरिका लाने की योजना बनाई थी। मिशिगन यूनिवर्सिटी की एक लैब में इस पर रिसर्च के बहाने इसका प्रसार करना चाहा गया, जहां उसकी गर्लफ्रेंड जियान पोस्टडॉक्टरल रिसर्चर थी। दोनों चीनी सरकार द्वारा वित्त पोषित थे और उनके पास चीनी कम्युनिस्ट पार्टी से जुड़े होने के डिजिटल प्रमाण मिले हैं।
खामोश युद्ध की शुरुआत?
यह साजिश सिर्फ एक वैज्ञानिक शोध की आड़ में की गई हरकत नहीं है, बल्कि यह अंतरराष्ट्रीय कानूनों की सीधी अनदेखी, वैश्विक खाद्य व्यवस्था पर हमला और जैविक युद्ध की एक नई शैली है। वैज्ञानिकों और सुरक्षा विशेषज्ञों के अनुसार, यह पहला मामला नहीं है – द्वितीय विश्व युद्ध से लेकर अब तक कृषि को हथियार बनाने की कोशिशें होती रही हैं।
भारत में 2016 में पश्चिम बंगाल के कुछ जिलों में पाया गया ‘मैग्नापोर्थे ओराइजे’ फफूंद भी इसी तरह का संदेहास्पद मामला था। वहीं अमेरिका, जर्मनी और जापान जैसे देश अतीत में भी फसल नष्ट करने वाले जैविक हथियारों पर प्रयोग कर चुके हैं।
भारत और दुनिया को सीखने की जरूरत
भारत जैसे कृषि-प्रधान देश, जहां 55% से अधिक आबादी खेती पर निर्भर है, ऐसे जैविक हमलों के लिए बेहद संवेदनशील हैं। विशेषज्ञ चेतावनी दे रहे हैं कि सीमावर्ती राज्यों में जैविक निगरानी प्रणाली को मजबूती देना अब केवल विकल्प नहीं, आवश्यकता है।
युनाइटेड नेशंस और डब्ल्यूएचओ जैसे वैश्विक संस्थानों को भी एग्रो टेररिज्म को जैविक युद्ध के बराबर दर्जा देने और इसकी रोकथाम के लिए अंतरराष्ट्रीय कानूनों को मजबूत करने की सख्त जरूरत है।
अगली महामारी खेतों से आएगी?
Chinese scientists की गिरफ्तारी ने दुनिया को फिर एक बार झकझोर कर रख दिया है। क्या अब हमें वायरस से नहीं, अनाज के ज़हर से डरना होगा? क्या अगली महामारी खेतों से शुरू होगी, जब पूरी मानवता भूख, बीमारी और खाद्य संघर्ष का शिकार बन जाएगी?
यह मामला सिर्फ अमेरिका या चीन का नहीं है – यह पूरे विश्व के लिए खतरे की घंटी है। और अगर समय रहते कदम न उठाए गए, तो कोरोना सिर्फ ट्रेलर था, असली जैविक युद्ध की पटकथा तो अब लिखी जा रही है।
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