Jammu and Kashmir : जम्मू-कश्मीर और लद्दाख उच्च न्यायालय ने पूर्व सीआरपीएफ कांस्टेबल मुनीर अहमद द्वारा दायर रिट याचिका पर सुनवाई करते हुए केंद्रीय गृह मंत्रालय और केंद्रीय रिजर्व पुलिस बल को नोटिस भेजा है। अदालत ने दोनों पक्षों को निर्देश दिया है कि वे 30 जून को निर्धारित अगली सुनवाई से पहले अपना लिखित पक्ष दाखिल करें।
यह याचिका मुनीर अहमद द्वारा अपनी सेवा से हुई बर्खास्तगी को चुनौती देने के लिए दाखिल की गई है। उन्होंने दावा किया है कि उन्हें एक पाकिस्तानी नागरिक, मीनल खान, जो उनकी चचेरी बहन भी हैं, से विवाह करने के चलते सीआरपीएफ से हटाया गया, जो कि पूरी तरह अनुचित और एकतरफा निर्णय था।
“नियमों का पालन किया, फिर भी निकाला गया” – मुनीर अहमद का दावा
अहमद, जिन्होंने 2 मई 2025 तक सीआरपीएफ में अपनी सेवा दी, बताते हैं कि उन्होंने शादी से पहले सभी आवश्यक औपचारिकताएं पूरी की थीं और अपने वरिष्ठ अधिकारियों को इस संबंध की जानकारी समय-समय पर दी थी। उन्होंने यह भी बताया कि मीनल खान का परिवार 1947 में देश के बंटवारे के दौरान जम्मू के भलवाल इलाके से पाकिस्तान चला गया था।
मुनीर ने पहली बार 2022 में विवाह के लिए आवेदन दिया था, जिसे जनवरी 2023 में आपत्तियों सहित लौटा दिया गया। इसके बाद, 2023 और 2024 में उनके द्वारा किए गए पत्राचार—जिसमें सीआरपीएफ महानिरीक्षक का पत्र और तत्कालीन डीजी का प्रमाणपत्र शामिल था—से स्पष्ट होता है कि अहमद ने नियमानुसार अपने विभाग को सूचित किया था।
भोपाल तबादले के बाद बर्खास्तगी का आदेश
मार्च 2025 में मुनीर को भोपाल स्थित 41वीं बटालियन में स्थानांतरित किया गया, जहां उनकी पत्नी की राष्ट्रीयता का उल्लेख यूनिट डायरी में दर्ज किया गया। इसके बाद मई 2025 में उन्हें सेवा समाप्ति का आदेश थमा दिया गया। अपनी याचिका के समर्थन में मुनीर अहमद ने भाजपा के वरिष्ठ नेताओं द्वारा लिखे गए अनुशंसा पत्र भी अदालत के समक्ष प्रस्तुत किए। राज्यसभा सांसद गुलाम अली खटाना ने फरवरी 2025 में विदेश मंत्री एस. जयशंकर को पत्र लिखकर मीनल के लिए तत्काल वीजा स्वीकृति की मांग की थी।
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जबकि फरवरी 2024 में सांसद जुगल किशोर शर्मा ने गृह राज्य मंत्री अजय मिश्रा को इसी विषय में पत्र भेजा था। यह मामला सुरक्षा बलों में कार्यरत कर्मियों के सीमापार वैवाहिक मामलों से जुड़ी जटिलताओं को उजागर करता है। उम्मीद की जा रही है कि हाईकोर्ट की आगामी सुनवाई न केवल इस मामले को स्पष्ट करेगी, बल्कि भविष्य में ऐसे मामलों के लिए दिशा-निर्देश तय करने में भी सहायक सिद्ध होगी।