नई दिल्ली ऑनलाइन डेस्क। नेपाल का युवा भ्रष्टाचार, आर्थिक असमानता और कुप्रशासन के खिलाफ पहले ही सुलग रहा था। ओली सरकार को लग रहा था कि देश के कुछ संगठन युवाओं के साथ उनकी सरकार के खिलाफ डिजिटल मीडिया के जरिए तख्तापलट की सालिश रच रहे हैं। ऐसे में पीएम ओली ने 26 सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर पूरी तरह बैन लगा दिया। ये बात नेपाली युवओं को नहीं भाई। फेसबुक, इंस्टा और यूट्यूब पर अपने सपने बुनने वाला ये युवा चिंगारी बनकर सड़क पर उमड़ पड़ा। देखते ही देखते नेपाल के प्रमुख शहरों की सड़कें रणक्षेत्र बन गईं।
नेपाल की युवा क्रांति ने सोमवार को संसद भवन पर हमला करते हुए उस पर कब्जा कर लिया। जवाब में पुलिस ने फायरिंग करनी पड़ी। जिससे 20 प्रदर्शनकारी मारे गए। सैकड़ों युवा पुलिस की गोली से घायल हुए। जिसके बाद पूरा नेपाल जल उठा। पूरी रात युवाओं ने नेपाल में तांड़व किया। राष्ट्रपति, पीएम और संसद भवन पर कब्जा कर लिया। आखिर में सेना ने भी हथियार डाल दिए। पीएम ओली को रिजाइन करना पड़ा। मंत्री और मुख्यमंत्रियों ने भी कुर्सी छोड़ दी। फिलहाल पूरे नेपाल में हालात तनावपूर्ण है। सरकारी इमारतों पर युवाओं का कब्जा है।
दरअसल, नेपाल में डिजिटल क्रांति ऐसे नहीं हुई। इसके पीछे एक 36 वर्ष के युवा ने अहम रोल निभाया। इस नेपाली युवा ने ऐसा प्लान बनाया, जिससे ओली सरकार भेद नहीं भाई। नेपाल की न्यू सनसनी के एक डॉयलाग से लड़के-लड़कियां सड़क पर आ गए और फिर ऐसी गदर काटी, जो इतिहास के पन्नों में दर्ज हो गई। तो चलिए हम आपको नेपाल की न्यूज सनसनी के बारे में बताते हैं, जिसके कारण ओली सरकार को सरेंडर करना पड़ा। दरअसल, नेपाल के इन युवाओं को एक मंच पर लाने के लिए हामी नेपाल नाम का एक संगठन काम कर रहा था। इस संगठन के कर्ताधर्ता हैं सुदन गुरुंग।
नेपाल की जेन-जी क्रांति का चेहरा बने 36 साल के सुदन गुरुंग ने नेपाली यूथ के गुस्से को एकदम सही समय पर भांप लिया। सुदन गुरुंग ने युवाओं के गुस्से का पहचाना, इसे प्लेटफॉर्म दिया और पूरे नेपाल में इसको अलग अलग नेटवर्क के जरिये पहुंचाया। इस आंदोलन को गति और दिशा देने वाला संगठन हामी नेपाल के संस्थापक और अध्यक्ष सुदन गुरुंग ही हैं। सुदन गुरुंग अपने आप को एक गैर-लाभकारी संगठन बताता है। यूं तो इसकी अनौपचारिक शुरुआत 2015 में हुई। लेकिन इसका रजिस्ट्रेशन 2020 में हुआ। एनजीओ के सोशल मीडिया पर गुरुंग को एक एक्टिविस्ट बताया गया है।
गुरुंग ने होंने आपदा राहत, सामाजिक सेवाओं और आपातकालीन सहायता के लिए संसाधन जुटाने में एक दशक से अधिक समय बिताया है। ये संगठन अंतर्राष्ट्रीय फंडिंग लेती है, दान प्राप्त करती है और भौगोलिक रूप से नाजुक रहने वाले नेपाल में भूकंप, बाढ़ और भूस्खलन से प्रभावित लोगों की मदद करती है। सुदन गुरुंग ने 8 सितंबर के आंदोलन के लिए जेन-जी का आह्वान करते हुए अपने इंस्टाग्राम पोस्ट पर लिखा था, “भाइयो और बहनों सितंबर 8 सिर्फ दूसरा दिन ही नहीं है। ये वो दिन है जब हम नेपाल के युवा उठेंगे और कहेंगे, अब पर्याप्त हो गया। आंदोलन के लिए जेन-जी को बुलाते हुए सुदन गुरुंग ने कहा, ये हमारा समय है, ये हमारी लड़ाई है, और ये हमसे, हम युवाओं से शुरू होता है।
सुदन गुरुंग ने भावपूर्ण और जोशीला आह्वान करते हुए अपने इंस्टा पोस्ट पर लिखा हम अपनी आवाज उठाएंगे, मुट्ठियां भीचेंगे, हम एकता की ताकत दिखाएंगे, उनको अपनी शक्ति दिखाएंगे जो नहीं झुकने का दंभ भरते हैं। सुदन गुरुंग ने 8 सितंबर के इस आंदोलन को भ्रष्टाचार के खिलाफ एक आंदोलन के रूप में प्रस्तुत किया और इसे सिर्फ सोशल मीडिया पर बैन के खिलाफ पनपे गुस्से से इतर बड़ा दायरा दिया। सुदन गुरुंग ने पहले इंस्टाग्राम और बाद में डिस्कॉर्ड और वीपीएन जैसे प्लेटफॉर्म्स का उपयोग करके हजारों युवा प्रदर्शनकारियों, जिनमें ज्यादातर छात्र थे, को एकजुट किया। उनकी 27 अगस्त, 2025 की पोस्ट, अगर हम खुद को बदलें, तो देश खुद बदल जाएगा ने विशेषाधिकार और भ्रष्टाचार के खिलाफ सामूहिक कार्रवाई का आह्वान किया।
सुदन गुरुंग ने देश के कुलीन वर्ग को निशाने पर लिया नेपो बेबीज़ और राजनीतिक अभिजात्य वर्ग को निशाना बनाया। सुदन गुरुंग एक्टिविस्ट बनने से पहले इवेंट मैनेजमेंट में सक्रिय थे और उनकी जिंदगी पार्टियों के इर्द-गिर्द थी.। 2015 के नेपाल भूकंप ने उनके जीवन में एक नया मोड़ लाया। इसके बाद उन्होंने मानवीय कार्यों पर ध्यान केंद्रित किया। हामी नेपाल ने उनके नेतृत्व में आपातकालीन प्रतिक्रिया, आपदा राहत और सामाजिक अभियानों जैसे बचाव कार्य, रक्तदान अभियान और छात्रों और प्रवासियों के हितों के लिए काम किया। बता दें, सोशल मीडिया पर बैन के खिलाफ नेपाल में सोमवार को प्रोटेस्ट शुरू हुए। पुलिस की गोली से 20 लोगों की मौत हो गई। आखिर में पीएम ओली को अपने पद से रिजाइन करना पड़ा।