निर्दोषों की बलि- शोक और शर्म की घड़ी
इस Khuzdar आत्मघाती हमले में मारे गए बच्चों, बस चालक और सहायक के परिजनों के प्रति गहरा दुख और संवेदना व्यक्त की जानी चाहिए। ये मासूम वे थे जो जीवन की शुरुआत में थे, जिनका शिक्षा से वास्ता था, राजनीति से नहीं। परंतु यह भी सत्य है कि उनके खून में सिर्फ हमलावरों का ही नहीं, बल्कि उस सोच का भी हाथ है जो आतंकवाद को “रणनीतिक संपत्ति” मानती रही है।
ISPR Blames India for Khuzdar Suicide Attack on APS School Bus
Rawalpindi, 21 May 2025 — Pakistan’s military has blamed India for orchestrating the suicide bombing that targeted an Army Public School (APS) bus in Khuzdar, Balochistan, killing five people, including three… pic.twitter.com/6C9lMo4Iv7
— URDU INTERNATIONAL (@urduintl) May 21, 2025
इस हमले की जिम्मेदारी किसी समूह ने नहीं ली है, लेकिन शक बलूच लिबरेशन आर्मी (BLA) पर गया है। यह वही संगठन है जो बार-बार बलूचिस्तान में हिंसा को अंजाम देता रहा है, और जो अब सेना के लिए उसी तरह का सिरदर्द बन गया है जैसा कभी उसने भारत के लिए पैदा करने की कोशिश की थी।
सेना और आतंकी – दोनों की भूमिका पर सवाल जरूरी
इस घटना के बाद सेना और प्रधानमंत्री शहबाज शरीफ ने भारत पर आरोप जड़ दिए, लेकिन कोई ठोस प्रमाण नहीं दिया। ISPR का बयान “भारतीय प्रॉक्सी” जैसे जुमलों से भरा हुआ था — पर क्या ये आरोप अब थके हुए और खोखले नहीं लगते? जब तक सेना अपनी ही ज़मीन पर उगाए आतंक के बीज को खत्म नहीं करती, तब तक ऐसे आरोप सिर्फ जिम्मेदारी से भागने का तरीका हैं।
बलूचिस्तान में दशकों से चल रहे सैन्य अभियान, मानवाधिकार उल्लंघन और सियासी अलगाव ने जिस गुस्से और चरमपंथ को जन्म दिया, वह अब नियंत्रण से बाहर होता दिख रहा है। आतंक का यह राक्षस अब सेना के खिलाफ भी मोर्चा खोल चुका है — फर्क सिर्फ इतना है कि इस बार उसका शिकार बने वो मासूम जिनका न इस ‘रणनीति’ में कोई रोल था, न इसमें कोई च्वाइस।
पाकिस्तान के लिए आत्मचिंतन की घड़ी
यह Khuzdar हमला केवल एक दुखद हादसा नहीं है, यह एक चेतावनी है — कि जिन आगों को बाहर फैलाने की कोशिशें की गईं, वे अब घर जलाने लगी हैं। खुफिया विफलता, अस्थिर नीतियाँ, और आतंकवाद को राजकीय छत्रछाया देने की सोच अब देश को भीतर से खा रही है।
अब वक्त है कि पाकिस्तान अपनी सेना की रणनीतियों और ‘अच्छे आतंकवादी-बुरे आतंकवादी’ के भेद को खत्म करे। वरना आने वाले समय में और भी मासूम, और भी निर्दोष, इसी ‘अपने बनाए साँप’ के ज़हर से मारे जाएंगे — और हर बार जिम्मेदारी से पल्ला झाड़ने की कोशिश, पाकिस्तान को और अधिक अस्थिरता की ओर धकेलेगी। खुजदार की घटना पर केवल आंसू बहाना पर्याप्त नहीं है। अब वक्त है आंखें खोलने का, सच्चाई स्वीकारने का — कि जब तक पाकिस्तान अपनी जमीन से आतंक के हर रूप का समूल नाश नहीं करता, तब तक उसका कल भी ऐसे ही खून से सना रहेगा। हम शोक मनाएं, पर चुप न रहें।