नई दिल्ली ऑनलाइन डेस्क। हर देश के पास अपने-अपने कानून हैं। पुलिस, कोर्ट और सजा के लिए जेल हैं। अगर कोई व्यक्ति जुर्म करता है तो उसके खिलाफ कोर्ट में मुकदमा चलता है। आरोप साबित होने पर दोषी को सजा दी जाती है। आमतौर पर ये सजा और कानून इंसानों पर ही लागू होते हैं। पर इतिहास में ऐसे कई मामले दर्ज हैं, जिनमें जानवरों पर एफआईआर, तारीख और फांसी की सजा हुई है। ऐसे ही एक घटना पर सुअर को फांसी का सजा जज ने सुनाई। इंसानों की तरह ही बेजुबान के गले में फांसी का फंदा डाला और लीवर को खींचकर उसे मृत्युदंड दिया।
किस देश में सुअर को दी गई फांसी की सजा
ये घटना फ्रांसीसी शहर फलाइज़ की है। बात 1336 ई की है। फलाइज में एक दंपत्ति रहते थे। उनका तीन साल का बेटा था। बच्चा झूले पर लेटा हुआ था। तभी सुअर घर पर दाखिल होता है और बच्चे के अंगों को खाने के बाद उसे मार डालता है। दंपत्ति पुलिस में जाकर सुअर पर केस दर्ज करवाते हैं। पुलिस ने कईदिनों की मेहनत के बाद सुअर को गिरफ्तार करती है। उसे जानवरों की जेल में बंद किया जाता है। बकायदा कोर्ट में सुअर के खिलाफ चार्जशीट दाखिल की जाती है। कोर्ट पर केस चलता है। तारीखें पड़ती हैं। सुअर और मृतक बच्चे की तरफ से वकीलों में जिरह होती है। आखिर में कोर्ट सुअर को दोषी करार देते हुए फांसी की सजा का ऐलान करती है।
चेहरे पर मास्क पहनाया गया
सुअर को बंदीगृह पर रखा जाता है। फांसी की सुबह उसे स्नान करवाया जाता है। सुअर को खाना भी दिया जाता है। फांसी देने से पहले इस ‘सुअर’ को अपराधियों की तरह ही चेहरे पर मास्क पहनाया गया, जिसके बाद उसे फांसी के फंदे पर चढ़ा दिया गया। पशु इतिहासकार ईपी इवांस ने इस घटना को लेकर कुछ साल पहले बताया था कि सूअर की फांसी और उसके अपराध को फलाइज़ के होली ट्रिनिटी चर्च की दीवार पर एक भित्तिचित्र में दर्शाया गया था, लेकिन 19वीं सदी में दीवारों की सफेदी हो जाने के कारण अब वह भित्तिचित्र मौजूद नहीं है। हालांकि सुअर को फांसी दिए जाने की एक तस्वीर दीवार पर थी, जिसे इवांस ने अपनी पुस्तक पर जगह दी थी।
सार्वजनिक रूप से फांसी पर लटका दिया गया
फालाइज़ की यह घटना निश्चित रूप से अनोखी नहीं थी और इवांस ने ऐसे कई अपराधियों का उल्लेख किया है जिन्हें शिशुओं की हत्या के लिए फांसी दी गई थी। अपनी ’नौवीं से उन्नीसवीं शताब्दी तक जानवरों के बहिष्कार और अभियोजन की कालानुक्रमिक सूची’ में, इवांस ने 1250 और 1500 के बीच सूअरों पर मुकदमा चलाए जाने के कम से कम 25 मामलों को सूचीबद्ध किया है। अक्सर शिशुओं की हत्या के लिए। अभियोजित सूअरों के अधिकांश मामले मध्ययुगीन फ्रांस से आते हैं। इन सूअरों के मुकदमों की एक दिलचस्प विशेषता यह है कि जानवरों के साथ मानव अपराधियों के समान व्यवहार किया गया है। न केवल उन्हें सार्वजनिक रूप से फांसी पर लटका दिया गया, बल्कि उन्हें जेल में भी समय बिताना पड़ा।
तीन सूअरों को मौत की सजा सुनाई
उदाहरण के लिए, 1379 में, सूअरपालक और उसके बेटे की हत्या के लिए एक न्यायाधीश और जूरी ने तीन सूअरों को मौत की सजा सुनाई थी। मुकदमे में, यह भी तय किया गया कि झुंड के बाकी सदस्य दोषी नहीं है। झुंड को अंततः क्षमादान मिल गया, क्योंकि जिस पादरी के पास सूअर थे, उसने ड्यूक को एक याचिका लिखी थी। इन अदालती मामलों में, आरोपी सूअरों को, उनके मानव समकक्षों की तरह, वकीलों द्वारा भी बचाव किया जा सकता था। वास्तव में, 1993 में, कॉलिन फ़र्थ की विशेषता वाली एक हॉलीवुड फ़िल्म में 15वीं सदी के फ़्रांस में एक झूठे बहाने वाले सूअर की कहानी दिखाई गई थी, जिसे अंततः फ़र्थ के चरित्र की बदौलत बरी कर दिया जाता है, जो एक वास्तविक पशु वकील बार्थेलेमी डे चेसेन्यूज़ (1480-1541) पर आधारित है।