
‘Jatadhara’ रिव्यू : सोनाक्षी सिन्हा और शिल्पा शिरोडकर स्टारर ‘जटाधारा’ का दर्शकों को बेसब्री से इंतजार था, लेकिन फिल्म देखने के बाद यह कहना गलत नहीं होगा कि यह डराने से ज्यादा थकाने वाली साबित हुई। हॉरर फिल्मों से दर्शकों को रोमांच और रहस्य की उम्मीद रहती है, लेकिन ‘जटाधारा’ में इन दोनों की कमी साफ झलकती है।
फिल्म की कहानी एक पुराने बंगले और उससे जुड़ी रहस्यमयी आत्मा के इर्द-गिर्द घूमती है। सोनाक्षी सिन्हा ने एक ऐसी महिला का किरदार निभाया है जो अपने अतीत और एक अलौकिक शक्ति के बीच फंस जाती है। शिल्पा शिरोडकर उनकी मदद करने की कोशिश करती हैं, लेकिन कहानी इतनी धीमी गति से आगे बढ़ती है कि दर्शक बीच-बीच में धैर्य खो बैठते हैं।
डर की बजाय ऊब
निर्देशक ने कई जगह डरावने सीक्वेंस दिखाने की कोशिश की है, लेकिन कैमरा वर्क और बैकग्राउंड म्यूजिक उम्मीदों पर खरे नहीं उतरते। फिल्म में हॉरर कम और ड्रामा ज़्यादा नज़र आता है। डराने के बजाय फिल्म दर्शकों की सहनशक्ति की परीक्षा लेती है।
सोनाक्षी सिन्हा ने अपने किरदार में जान डालने की कोशिश की है, लेकिन कमजोर स्क्रिप्ट और लंबी कहानी उनके प्रदर्शन को दबा देती है। वहीं, लंबे समय बाद पर्दे पर लौटी शिल्पा शिरोडकर का काम ठीक-ठाक है, पर उन्हें भी ज़्यादा स्कोप नहीं मिला।
एडिटिंग कमजोर है और क्लाइमेक्स में कहानी बिखर जाती है।
अंतिम फैसला
अगर आप एक सच्ची हॉरर फिल्म देखने की उम्मीद में ‘जटाधारा’ देखने जा रहे हैं, तो शायद निराशा हाथ लगे। यह फिल्म डराने से ज़्यादा सब्र की परीक्षा लेने वाली है।








