Kanpur news : प्रदीप कुमार, जो 2002 में जासूसी के झूठे आरोप में जेल गए थे, अब जिला जज बनने वाले हैं। 2014 में निर्दोष साबित होने के बाद, उन्होंने न्याय पाने के लिए लंबी लड़ाई लड़ी। इलाहाबाद हाईकोर्ट ने उनकी नियुक्ति का आदेश देकर न्याय किया।
जासूसी का आरोप और जेल
2002 में कानपुर के 24 साल के कानून स्नातक प्रदीप कुमार पर जासूसी के आरोप लगे। उन पर पाकिस्तान को कानपुर छावनी की जानकारी देने का आरोप था। पुलिस ने उन पर देशद्रोह और सरकारी गोपनीयता कानून के तहत मामला दर्ज किया। बिना पुख्ता सबूतों के उन्हें गिरफ्तार कर जेल भेजा गया।
2014 में मिला इंसाफ
कानपुर की अदालत ने 2014 में सबूतों की कमी के चलते प्रदीप को बरी कर दिया। बरी होने के बाद, प्रदीप ने अपने करियर पर ध्यान दिया और 2016 में यूपी न्यायिक सेवा परीक्षा पास की। उन्होंने मेरिट में 27वीं रैंक हासिल की।
नियुक्ति में देरी और कानूनी लड़ाई
2017 में हाईकोर्ट ने प्रदीप की नियुक्ति की सिफारिश की, लेकिन राज्य सरकार ने नियुक्ति पत्र जारी नहीं किया। प्रदीप ने हाईकोर्ट में याचिका दाखिल की। अदालत ने सरकार को जल्द से जल्द उनकी फाइल राज्यपाल के पास भेजने का आदेश दिया।
सरकार पर जुर्माना और फैसले को चुनौती
राज्य सरकार ने देरी करते हुए 2019 में उनकी नियुक्ति रद्द कर दी। इसके चलते हाईकोर्ट ने ₹10 लाख का जुर्माना लगाया। प्रदीप ने सरकार के इस फैसले को चुनौती दी।
हाईकोर्ट का अंतिम फैसला
6 दिसंबर 2024 को हाईकोर्ट ने सरकार का फैसला रद्द कर दिया और कहा, “सिर्फ शक के आधार पर किसी को उसके अधिकारों से वंचित नहीं किया जा सकता।” अदालत ने सरकार को आदेश दिया कि कैरेक्टर वेरिफिकेशन के बाद 15 जनवरी 2025 से पहले नियुक्ति पत्र जारी किया जाए।
पिता की भी कहानी
प्रदीप के पिता भी 1990 में एडिशनल जज के पद से रिश्वत के आरोप में निलंबित हुए थे। बावजूद इसके, प्रदीप ने अपनी मेहनत से न्यायिक सेवा में जगह बनाई।
यह कहानी बताती है कि जिंदगी में कितनी भी मुश्किलें आएं, अगर इंसान मेहनत और लगन से आगे बढ़े, तो वह अपने सपने पूरे कर सकता है।