नई दिल्ली। दिल्ली के उपराज्यपाल ने विभागों और स्वायत्त निकायों के लिए भूमि के अंतर-विभागीय आवंटन के लिए तैयार समान नीति के कानून को अपनी मंजूरी दे दी। यह नीति इसलिए भी महत्वपूर्ण है क्योंकि अभी तक सरकारी भूमि के अंतर-विभागीय आवंटन से के लिए कोई समान नीति नहीं थी, जिसके कारण महत्वपूर्ण परियोजनाओं के निष्पादन में देरी होती थी। एलजी कार्यालय ने एक बयान में कहा की यह नीति अब एलजी की मंजूरी के साथ तैयार की गई है जिसे तत्काल प्रभाव से लागू किया जाएगा।
भूमि के आधार पर तय होंगी कीमतें
सरकार की यह नीति में भूमि आवंटन की प्रकृति के आधार पर उन दरों से संबंधित है जिन पर भूमि आवंटित की जाएगी। सरकार के इस बयान में कहा गया है कि यदि आवंटन सार्वजनिक उपयोगिता के लिए है,तो यह नि:शुल्क होगा।लेकिन ऐसे मामलों में जहां आवंटन एजेंसी को कुछ लागत पर, यानी अधिग्रहण के माध्यम से, भूमि प्राप्त हुई है। वहां भूमि आवंटन के लिए दर नो-प्रॉफिट, नो-लॉस के आधार पर होगी। जबकि ऐसे मामलों में जहां भूमि को व्यावसायिक उद्देश्यों के लिए भूमि-स्वामित्व विभाग द्वारा दूसरे को आवंटित किया जा रहा है वहां आवंटन के लिए डीडीए की जोनल दरों के हिसाब से भिन्न दरें ली जाएंगी।
क्या है अंतर-विभागीय आवंटन कानून ?
पिछले दिनों मुख्य सचिव ने विषय पर बैठकें बुलाई थी। जिसमें शहरी विकास विभाग, एलएंडबी विभाग, उद्योग विभाग, वित्त विभाग, कानून विभाग, एमसीडी और शिक्षा विभाग के अधिकारी शामिल हुए। बैठक में नीति पर चर्चा की गई। नीति के अनुसार भूमि और भवन विभाग नीति के कार्यान्वयन के लिए नोडल विभाग होगा। भूमि स्वामित्व एजेंसी और आवंटन एजेंसी पारस्परिक रूप से आवंटन की प्रकृति पर निर्णय लेगी कि आवंटन लीजहोल्ड या फ्रीहोल्ड आधार पर होगा या नहीं।
इस तरह से किया जाएगा भूमि आवंटन
नीति यह भी स्पष्ट करती है कि भूमि आवंटन रद्द करने के लिए एलजी की पूर्व मंजूरी की आवश्यकता होगी। इसके साथ साथ प्रधान सचिव (राजस्व) की अध्यक्षता में एक समिति, जिसमें भूमि अधिग्रहण निकाय, भूमि-स्वामी निकाय और संबंधित जिला मजिस्ट्रेट के सदस्य शामिल होंगे,। जो विकास नियंत्रण मानदंडों, उपयोगिता के साथ-साथ भूमि आवंटन के अनुरोध और परियोजना की अवसर लागत, आदि की जांच करेगी। जिसके बाद फैसले पर समिति को विचार और अंतिम निर्णय के लिए मुख्य सचिव के माध्यम से एलजी के समक्ष अपनी सिफारिशें प्रस्तुत करनी होंगी।