कानपुर ऑनलाइन डेस्क। पूरे देश में छठ पर्व की धूम हैं। नहर, तालाब और गंगा-यमुना के तट सज-धजकर तैयार हैं और 5 नवंबर से नहाय-खाय के साथ छठ मईया की पूजा की शुरुआत भी हो गई। 8 नवंबर को उगते हुए सूर्य को जल अर्घ्य देने के बाद व्रत का पारण किया जाएगा। चार दिवसीय छठ महापर्व में छठी मैया और सूर्यदेव की पूजा-आराधना की जाती है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, इस व्रत से घर में सुख-समृद्धि और शांति बनी रहती है और छठी मैया निसंतानों को संतान सुख का वरदान देती हैं।
सूर्य देव की बहन हैं छठी मइया
छठ पर्व पूरे देश में हर्षोउल्लास के साथ मनाया जा रहा है। कानपुर में भी नहर, तालाब और गंगा के घाट सज-धज कर तैयार हैं। सुबह से लेकर देररात तक भक्तों का तांता लगा है। महिलाएं नहाय-खाय के साथ छठ मईया की पूजा कर रही हैं और उगते सूर्य को जल अर्घ्य देने के बाद व्रत रख रही हैं। मान्यताओं के अनुसार, छठी मैया सूर्य देव की बहन हैं। छठी मैया को सृष्टि की रचयिता या प्रकृति की देवी माना जाता है। छठी मैया को माता का स्वरूप माना गया है, जो संतान की रक्षा और समृद्धि के लिए आराधना करने वाले भक्तों पर अपनी कृपा बनाए रखती हैं।
नहाय-खास के साथ शुरू होता है पर्व
धार्मिक कथाओं के अनुसार, छठ मईया भोलेनाथ के पुत्र कार्तिकेय भगवान की पत्नी हैं। इनकी पूजा-अर्चना से वैभव, सुख-समृद्धि,आरोग्यता और संतान सुख की प्राप्ति होती है। इसलिए कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष चतुर्थी तिथि से सप्तमी तिथि तक इनकी पूजा की जाती है। नहाय खाय के साथ पर्व की शुरूआत होती है। छठ पूजा के दूसरे दिन यानी खरना के दिन पूरे दिन निर्जला व्रत किया जाता है छठ का तीसरा दिन बेहद खास होता है। शाम को सूर्यदेव और छठी मैया की पूजा की जाती है। अस्त सूर्य को जल अर्घ्य दिया जाता है। छठी मैया की पूजा की जाती है। नदी के घाट पहुंचकर उगते हुए सूर्य को अर्घ्य दिया जाता है। पूजा के बाद व्रती कच्चे दूध का शरबत पीकर और थोड़ा प्रसाद ग्रहण करके पारण करती हैं। इस तरह से छठ पर्व का समापन हो जाता है।
छठी मईया कौन है
मार्कण्डेय पुराण में बताया गया है कि सृष्टि की रचना करने वाली देवी प्रकृति ने खुद को छह भागों में बांट लिया था। इनमें से छठा भाग सबसे महत्वपूर्ण है, जिसे हम सर्वश्रेष्ठ मातृदेवी के रूप में जानते हैं। यह देवी, ब्रह्मा जी की मानस पुत्री हैं। मार्कण्डेय पुराण के अनुसार, इनके छठे अंश को सर्वश्रेष्ठ मातृदेवी के रूप में जाना जाता है, जो छठी मईया के नाम से प्रसिद्ध हैं। छठी मईया को कात्यायनी नाम से भी जाना जाता है। नवरात्रि के दौरान षष्ठी तिथि को इनकी पूजा की जाती है। मां कात्यायनी बच्चों की रक्षा करती हैं और उन्हें स्वास्थ्य, सफलता और दीर्घायु का आशीर्वाद देती हैं।
सूर्य देव को अर्घ्य देने का विधान
इस साल की छठ पूजा रवि योग में शुरू हुई है। इस योग में सूर्य देव का प्रभाव अधिक होता है, जिसकी वजह से सभी प्रकार के दोष मिट जाते हैं। रवि योग सुबह 6 बजकर 36 मिनट से सुबह 9 बजकर 45 मिनट तक है। छठ पूजा में भगवान सूर्य देव को अर्घ्य देने का विधान है। इसके बिना यह व्रत और पूजा अपूर्ण है। छठ पूजा के तीसरे दिन शाम को संध्या काल अर्घ्य देत हैं, जबकि चौथे दिन सुबह में उषा काल अर्घ्य देते हैं। इस व्रत को करने वाली स्त्रियां धन, धान्य, पति, पुत्र व सुख से परिपूर्ण व संतुष्ट रहती हैं।
सूर्य को साक्षात् देव माना गया है
ज्योतिषाचार्य पंडित बलराम तिवारी के अनुसार, भगवान सूर्य को साक्षात् देव माना गया है। ज्योतिष शास्त्र में भी सूर्य देव ग्रहों के राजा है। सूर्य देव की पूजा करने से व्यक्ति निरोगी रहता है, उसे किसी भी प्रकार का रोग होने की आशंका कम से कम होती है। सूर्य देव के अशीर्वाद से व्यक्ति का घर धन और धान्य से भरा रहता है। उसके जीवन के संकट दूर होते हैं। सूर्य देव की पूजा करने और अर्घ्य देने से मनोकामनां पूरी होती हैं। नेत्र रोग से मुक्ति मिल सकती है। ज्योतिष शास्त्र के अनुसार, जिस व्यक्ति की कुंडली में सूर्य मजबूत होता है, उसे उच्च पद, यश, कीर्ति आदि की प्राप्ति होती है।