गणेश प्रतिमाएं जल में ही क्‍यों विसर्जित की जाती हैं, यहां जानें क्या है इसके पीछे की कहानी

Ganesh Utsav : धार्मिक दृष्टिकोण से, भगवान गणेश को 'विघ्नहर्ता' और 'मंगलकर्ता' माना जाता है. गणेश चतुर्थी का पर्व भारत में बड़े हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है। इस उत्सव के दौरान...

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Ganesh Utsav : गणेश चतुर्थी का पर्व भारत में बड़े हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है। इस उत्सव के दौरान भगवान गणेश की मिट्टी से बनी प्रतिमाएं स्थापित की जाती हैं और 10 दिनों तक उनकी पूजा-अर्चना की जाती है। इसके बाद अनंत चतुर्दशी के दिन गणपति बप्पा की प्रतिमाओं का जल में विसर्जन किया जाता है। गणेश प्रतिमाओं के जल में विसर्जन के पीछे धार्मिक, सांस्कृतिक और वैज्ञानिक कारण छिपे हुए हैं। आइए जानते हैं इसका महत्व।

धार्मिक मान्यता

धार्मिक दृष्टिकोण से, भगवान Ganesh को ‘विघ्नहर्ता’ और ‘मंगलकर्ता’ माना जाता है। जब गणेश जी की प्रतिमा को घर में स्थापित किया जाता है, तो इसे एक प्रतीक माना जाता है कि भगवान स्वयं हमारे घर पधारे हैं। 10 दिनों तक उनकी पूजा-अर्चना के बाद, विसर्जन के रूप में उन्हें जल में मिलाकर वापस उनके दिव्य स्वरूप में विलीन कर दिया जाता है। इससे यह संदेश मिलता है कि ईश्वर हर जगह उपस्थित हैं और अंततः हर वस्तु अपने मूल तत्व में लौट जाती है।

प्रकृति और पंच तत्व

हिंदू धर्म के अनुसार, हमारा शरीर और सृष्टि पांच तत्वों (पृथ्वी, जल, वायु, अग्नि और आकाश) से मिलकर बने हैं. Ganesh प्रतिमाएं भी मिट्टी (पृथ्वी) से बनती हैं। जब इनका जल में विसर्जन किया जाता है, तो वे घुलकर पुनः पृथ्वी में मिल जाती हैं। यह प्रकृति के चक्र का प्रतीक है, जिससे हम यह समझते हैं कि हर चीज का अस्तित्व अस्थायी है और अंततः वह प्रकृति में विलीन हो जाता है।

आध्यात्मिक अर्थ

गणेश विसर्जन का एक और महत्व है “अहंकार का विसर्जन”। जब गणपति को घर में विराजमान किया जाता है, तो उनकी उपस्थिति से वातावरण पवित्र हो जाता है और उनकी पूजा-अर्चना से मनुष्य का अहंकार भी समाप्त हो जाता है। विसर्जन के साथ यह संदेश दिया जाता है कि हमें अपने अहंकार और नकारात्मकता को भी छोड़ना चाहिए।

वैज्ञानिक कारण

मिट्टी से बनी गणेश प्रतिमाएं जल में घुल जाती हैं, जिससे जल प्रदूषण नहीं होता। साथ ही, पुराने समय में लोग गणेश प्रतिमाओं के विसर्जन से जल स्रोतों की उर्वरता को बढ़ाने का काम करते थे, क्योंकि मिट्टी के घुलने से जल में कई खनिज तत्व मिल जाते थे। हालांकि, आजकल प्लास्टर ऑफ पेरिस और रासायनिक रंगों का उपयोग किया जाता है, जिससे जल प्रदूषण की समस्या बढ़ जाती है। इसलिए अब फिर से प्राकृतिक, पर्यावरण-हितैषी गणेश प्रतिमाओं के उपयोग पर जोर दिया जा रहा है।

समर्पण और आस्था का प्रतीक

गणेश विसर्जन आस्था और समर्पण का प्रतीक है। यह हमें सिखाता है कि जीवन में हर चीज का एक निश्चित समय होता है और हर खुशी, हर दुख अस्थायी है। भगवान गणेश को विदाई देने के साथ हम उनसे अगले वर्ष फिर से घर पधारने की प्रार्थना करते हैं।

गणेश प्रतिमाओं के जल में विसर्जन का धार्मिक, सांस्कृतिक और वैज्ञानिक सभी दृष्टिकोणों से गहरा महत्व है। यह प्रकृति के चक्र, आस्था, समर्पण और जीवन के अस्थायी होने का प्रतीक है। इसलिए, गणेश चतुर्थी के उत्सव के अंत में प्रतिमाओं का विसर्जन कर हम भगवान गणेश को सम्मानपूर्वक विदा करते हैं और अगले वर्ष फिर से आने का निमंत्रण देते हैं।

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