Lucknow News: दिवाली का त्योहार बस आने ही वाला है, और इस बार यह केवल घरों को रोशन करने का समय नहीं है, बल्कि यह पर्यावरण को सुरक्षित रखने का एक अनूठा प्रयास भी है। लखनऊ की राष्ट्रीय सैनिक छात्र सेवा परिषद ने इस वर्ष “राष्ट्रीय कामधेनु दीवाली” मनाने का निर्णय लिया है, जिसके तहत 51 लाख गाय के गोबर से बने दीपकों का लक्ष्य रखा गया है। यह प्रयास सैकड़ों महिलाओं को आत्मनिर्भर बनाने के साथ-साथ पर्यावरण की रक्षा करने का भी है। गाय के गोबर से बने ये दीपक न केवल घरों को महकाएंगे, बल्कि इनसे नई पौधों का भी जन्म होगा। इस लेख में हम इस अनोखे प्रयास के विभिन्न पहलुओं पर चर्चा करेंगे।
महिलाओं की मेहनत और कौशल
Lucknow में सैकड़ों महिलाओं की एक संस्था ने गाय के गोबर से दीपक, धूपबत्ती, पूजा की थाली और अन्य पच्चीस प्रकार के सामान तैयार किए हैं। गाय के गोबर से निर्मित ये दीपक न केवल घर को महकाएंगे, बल्कि इनमें मौजूद तुलसी और अश्वगंधा जैसे बीजों से नए पौधे भी तैयार होंगे। यह विचार अंकित शुक्ला का है, जो इस प्रोजेक्ट के पीछे की प्रेरणा स्रोत हैं। उन्होंने महिलाओं को प्रशिक्षित किया है ताकि वे गाय के गोबर से विभिन्न उत्पाद तैयार कर सकें।
महिलाओं को रोजगार और स्वतंत्रता
अंकित शुक्ला ने बताया कि “हम गाय के गोबर से करीब सौ से अधिक प्रोडक्ट तैयार करवाते हैं। इसके लिए महिलाओं (Lucknow) को प्रशिक्षित किया जाता है।” इस प्रशिक्षण से महिलाओं को न केवल नए कौशल प्राप्त हुए हैं, बल्कि वे घर पर ही दीपक और अन्य पूजन सामग्री तैयार कर बिक्री कर रही हैं। यह प्रयास उन्हें आर्थिक स्वतंत्रता और आत्मनिर्भरता की ओर ले जा रहा है।
महिलाओं ने अब तक एक लाख दीपक और अन्य पूजन सामग्री की बिक्री कर दी है। गुड्डी नाम की महिला ने बताया, “हम घर पर ही गाय के गोबर से दीपक व अन्य सामान तैयार करती हैं।” ये महिलाएं आस-पड़ोस की पालतू गाय और सड़कों पर घूमने वाली गायों का गोबर इकट्ठा करती हैं। इससे न केवल उनकी आर्थिक स्थिति में सुधार हो रहा है, बल्कि यह भी सुनिश्चित हो रहा है कि गायों का गोबर व्यर्थ न जाए।
दीपक के जलने से पौधों का उगना
अंकित शुक्ला ने बताया कि “गाय के गोबर से निर्मित सभी सामान शुद्ध और पवित्र माने जाते हैं।” दीपावली पर लक्ष्मी पूजन में इनके उपयोग का विशेष महत्व है। गाय के गोबर से बने दीपक और धूपबत्ती जलाने से घर की नकारात्मक ऊर्जा दूर हो जाती है। यह न केवल धार्मिक महत्व रखता है, बल्कि पर्यावरण के लिए भी फायदेमंद है।
गाय के गोबर से बने दीपक आग में पकने के बाद मिट्टी में आसानी से (Lucknow) मिल जाते हैं। इसके अलावा, इन दीपकों में तुलसी और अश्वगंधा के बीज मिलाए जाते हैं, जो दीपक जलाने के बाद मिट्टी में डालने पर अंकुरित होते हैं। इससे न केवल नए पौधों का जन्म होता है, बल्कि पर्यावरण को भी लाभ मिलता है।
गाय के गोबर से अतिरिक्त आमदनी का साधन
अंकित शुक्ला ने बताया कि “गाय के दूध के अलावा गाय के गोबर से भी आमदनी की जा सकती है।” यदि गाय के गोबर से उत्पाद तैयार कर बिक्री की जाए, तो महिलाओं को हर माह 3,000 से 10,000 रुपए तक की आमदनी हो सकती है। इससे न केवल गायों को आवारा नहीं छोड़ना पड़ेगा, बल्कि परिवारों के लिए अतिरिक्त आमदनी का एक साधन भी बन जाएगा।
इससे गोशालाएं भी आत्मनिर्भर बनेंगी, और गो माता किसी को बोझ नहीं लगेगी। इस कार्य से प्रदेश भर के लोगों को रोजगार भी मिल रहा है। यह प्रयास महिलाओं को आत्मनिर्भर बनाने के साथ-साथ समाज के लिए एक सकारात्मक संदेश भी दे रहा है।
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हिंदू रीति-रिवाज में गाय के गोबर की पूजा
अंकित शुक्ला ने इस पहल के धार्मिक महत्व पर भी प्रकाश डाला। उन्होंने बताया कि “हिंदू रीति-रिवाज में गाय के गोबर की पूजा होती है।” दिवाली पर गणेश-लक्ष्मी और गोवर्धन की पूजा के समय इसका महत्व और भी बढ़ जाता है। इससे न केवल धार्मिक भावना को प्रोत्साहन मिलता है, बल्कि यह समाज में एकता और सहयोग की भावना को भी बढ़ावा देता है।
दिवाली पर एक नया संदेश
गाय के गोबर से बने दीपक न केवल दीपावली की रौनक (Lucknow) बढ़ाते हैं, बल्कि यह पर्यावरण की सुरक्षा का भी संदेश देते हैं। अंकित शुक्ला और उनकी टीम ने इस प्रोजेक्ट के माध्यम से सैकड़ों महिलाओं को आत्मनिर्भर बनाने के साथ-साथ समाज में एक सकारात्मक बदलाव लाने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम उठाया है। यह पहल न केवल दीपावली के पर्व को विशेष बनाती है, बल्कि यह हमें यह भी सिखाती है कि किस तरह हम पर्यावरण और समाज के प्रति जिम्मेदार बन सकते हैं।
इस दिवाली, जब हम अपने घरों को रोशन करने के लिए दीप जलाएंगे, तो साथ ही हमें यह भी याद रखना चाहिए कि हम एक सशक्त और स्वावलंबी समाज की दिशा में कदम बढ़ा रहे हैं। इस प्रकार के प्रयासों के माध्यम से हम एक बेहतर भविष्य की दिशा में आगे बढ़ सकते हैं।