कुछ ऐसी है मुलायम सिंह यादव के जीवन की गाथा, जानें ‘नेता जी’ की पुण्णतिथि पर सैफई में क्यों उमड़ा सपा का ‘कुनबा’

सपा संस्थापक मुलायम सिंह यादव, जिन्हें देश-प्रदेश के लोग नेता जी, धरतीपुत्र के नाम से पुकारते थे, उनकी तृतीय पुण्यतिथि पर शुक्रवार को सैफई स्थित समाधि स्थल पर समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अखिलेश यादव ने परिवार के सदस्यों के साथ समाधि स्थल पहुंचकर पुष्प अर्पित किए। इस दौरान सभी ने दो मिनट का मौन रखकर नेताजी को नमन किया।

लखनऊ ऑनलाइन डेस्क। सपा संस्थापक मुलायम सिंह यादव, जिन्हें देश-प्रदेश के लोग नेता जी, धरतीपुत्र के नाम से पुकारते थे, उनकी तृतीय पुण्यतिथि पर शुक्रवार को सैफई स्थित समाधि स्थल पर समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अखिलेश यादव ने परिवार के सदस्यों के साथ समाधि स्थल पहुंचकर पुष्प अर्पित किए। इस दौरान सभी ने दो मिनट का मौन रखकर नेताजी को नमन किया। इस खास मौके पर अखिलेश यादव के साथ राष्ट्रीय महासचिव शिवपाल सिंह यादव, अभयराम सिंह यादव, सांसद धर्मेंद्र यादव, पूर्व सांसद तेजप्रताप यादव, सांसद अक्षय यादव, सांसद आदित्य यादव, अनुराग यादव, जिला पंचायत अध्यक्ष अभिषेक (अंशुल) यादव, आर्यन यादव और कार्तिकेय यादव सहित परिवार के अन्य सदस्य मौजूद रहे।

सैफई में यादव परिवार का पूरा कुनबा मौजूद रहा। सभी ने नेताजी की प्रतिमा पर पुष्पांजलि अर्पित कर श्रद्धा सुमन अर्पित किए। श्रद्धांजलि देने के बाद सपा मुखिया अखिलेश यादव इस समय समाधि स्थल पर बने मंच पर पार्टी के वरिष्ठ नेताओं और कार्यकर्ताओं के साथ मौजूद रहे। अखिलेश यादव ने इस मौके पर कहा कि नेता जी की बताए रास्ते पर हमसब को मिलकर चलना है। प्रदेश में फिर से समाजवादियों की सरकार बनाना है। नेता जी का यही सपना था। नेता जी के सपने को हमें साकार करना हैं। बता दें, 2022 को सपा संरक्षक मुलायम सिंह यादव का निधन हो गया था। मुलायम सिंह ने गुरुग्राम के मेदांता अस्पताल में अंतिम सांस ली थी। मुलायम सिंह के शव का अंतिम संस्कार सैफई में किया गया था। सैफई में नेता जी का समाधि स्थल का निर्माण भी करवाया गया है।

नेता जी के तीसरी पुण्णतिथि पर हम आपको उनके जीवन की गाथा के बारे में अपने इस अंक में बताने जा रहे हैं। समाजवादी पार्टी और कुनबे के मुखिया मुलायम सिंह यादव ने अपने जीवन में काफी संघर्ष किया। 22 नवंबर 1939 को इटावा जिले के सैफई में जन्मे मुलायम सिंह की पढ़ाई-लिखाई इटावा, फतेहाबाद और आगरा में हुई। मुलायम कुछ दिनों तक मैनपुरी के करहल स्थति जैन इंटर कॉलेज में प्राध्यापक भी रहे। पांच भाई-बहनों में दूसरे नंबर पर मुलायम सिंह की दो शादियां हुईं। पहली पत्नी मालती देवी का निधन मई 2003 में हो गया था। अखिलेश यादव मुलायम की पहली पत्नी के बेटे हैं। मुलायम की दूसरी पत्नी हैं साधना गुप्ता। फरवरी 2007 में सुप्रीम कोर्ट में मुलायम ने साधना गुप्ता से अपने रिश्ते कबूल किए तो लोगों को नेताजी की दूसरी पत्नी के बारे में पता चला। साधना गुप्ता से मुलायम के बेटे प्रतीक यादव हैं।

पिता सुधर सिंह मुलायम को पहलवान बनाना चाहते थे। इसके लिए उन्होंने भी पुरजोर तरीके से जोर आजमाइश शुरू कर दी थी। लेकिन पहलवानी में अपने राजनीतिक गुरु नत्थूसिंह को मैनपुरी में आयोजित एक कुश्ती-प्रतियोगिता में प्रभावित कर लिया। यहीं से उनका राजनीतिक सफर भी शुरू हो गया। उन्होंने नत्थूसिंह के परंपरागत विधान सभा क्षेत्र जसवंतनगर से अपने राजनीतिक सफर की शुरूआत की। राम मनोहर लोहिया और राज नरायण जैसे समाजवादी विचारधारा के नेताओं की छत्रछाया में राजनीति का ककहरा सीखने वाले मुलायम 28 साल की उम्र में पहली बार विधायक बने। जबकि उनके परिवार का कोई सियासी बैकग्राउंड नहीं था। ऐसे में मुलायम के सियासी सफर में 1967 का साल ऐतिहासिक रहा जब वो पहली बार चुनाव जीतकर विधानसभा पहुंचे। मुलायम संघट सोशलिस्ट पार्टी के टिकट पर अपने गृह जनपद इटावा की जसवंतनगर सीट से आरपीआई के उम्मीदवार को हराकर विजयी हुए थे।

मुलायम सिंह यादव 1980 के आखिर में उत्तर प्रदेश में लोक दल के अध्यक्ष बने थे जो बाद में जनता दल का हिस्सा बन गया। मुलायम 1989 में पहली बार उत्तर प्रदेश के सीएम बने। नवंबर 1990 में केंद्र में वीपी सिंह की सरकार गिर गई तो मुलायम सिंह चंद्रशेखर की जनता दल (समाजवादी) में शामिल हो गए और कांग्रेस के समर्थन से सीएम की कुर्सी पर विराजमान रहे। अप्रैल 1991 में कांग्रेस ने समर्थन वापस ले लिया तो मुलायम सिंह की सरकार गिर गई। 1991 में यूपी में मध्यावधि चुनाव हुए जिसमें मुलायम सिंह की पार्टी हार गई और बीजेपी सूबे में सत्ता में आई। चार अक्टूबर, 1992 को लखनऊ के बेगम हजरत महल पार्क में मुलायम सिंह यादव ने समाजवादी पार्टी बनाने की घोषणा की। समाजवादी पार्टी की कहानी मुलायम सिंह के सियासी सफर के साथ-साथ चलती रही।

मुलायम सिंह यादव ने जब अपनी पार्टी खड़ी की तो उनके पास बड़ा जनाधार नहीं था। नवंबर 1993 में यूपी में विधानसभा के चुनाव होने थे। सपा मुखिया ने बीजेपी को दोबारा सत्ता में आने से रोकने के लिए बहुजन समाज पार्टी से गठजोड़ कर लिया। समाजवादी पार्टी का यह अपना पहला बड़ा प्रयोग था। बाबरी मस्जिद विध्वंस के बाद पैदा हुए सियासी माहौल में मुलायम का यह प्रयोग सफल भी रहा। कांग्रेस और जनता दल के समर्थन से मुलायम सिंह फिर सत्ता में आए और सीएम बने। समाजवादी पार्टी को राष्ट्रीय स्तर पर पहचान दिलाने के इरादे से मुलायम ने केंद्र की राजनीति का रुख किया। 1996 में मुलायम सिंह यादव 11वीं लोकसभा के लिए मैनपुरी सीट से चुने गए। उस समय केंद्र में संयुक्त मोर्चा की सरकार बनी तो उसमें मुलायम भी शामिल थे। मुलायम देश के रक्षामंत्री बने थे। बतौर रक्षामंत्री रहते हुए मुलायम सिंह ने ऐतिहासिक फैसले किए, जिन्हें आज भी लोग याद करते हैं।

मुलायम सिंह यादव को प्रधानमंत्री बनाने की भी बात चली थी। प्रधानमंत्री पद की दौड़ में वे सबसे आगे खड़े थे, लेकिन लालू प्रसाद यादव और शरद यादव ने उनके इस इरादे पर पानी फेर दिया। इसके बाद चुनाव हुए तो मुलायम सिंह संभल से लोकसभा में वापस लौटे। असल में वे कन्नौज भी जीते थे, लेकिन वहां से उन्होंने अपने बेटे अखिलेश यादव को सांसद बनाया। मुलायम सिंह का कारवां तेजी से आगे बढ़ रहा था। 2007 में मुलायम सिंह को गहरी सियासी चोट भी लगी। जब मायावती की सरकार पूर्ण बहमुत के साथ बन गई। तब मुलायम सिंह अपने भाई शिवपाल सिंह यादव और अखिलेश के साथ मैदान पर उतरे। अपने चरखा दांव से बीजेपी, कांग्रेस और बीएसपी को चित कर 2012 में सपा की सरकार बनवा दी। तब अखिलेश यादव यूपी के सीएम चुने गए।

मुलायम सिंह यादव के राजनीतिक और व्यक्तिगत जीवन में किस्सों की कमी नहीं है। लेकिन उनके जीवन में साधना गुप्ता का आना किसी बड़ी चर्चा से कम नहीं था। साधना उनकी दूसरी पत्नी कैसे बनीं और उनकी प्रेम कहानी घरवालों को रास क्यों नहीं आई इसकी भी एक रोचक दास्तान है। मुलायम सिंह यादव जब राजनीति के शिखर पर थे उसी वक्त उनकी जिंदगी में साधना गुप्ता का आगमन हुआ। कहते हैं कि 1982 में जब मुलायम लोकदल के अध्यक्ष बने, उस वक्त साधना पार्टी में एक कार्यकर्ता की हैसियत से काम कर रही थीं। बेहद खूबसूरत और तीखे नैन-नक्श वाली साधना पर जब मुलायम की नजर पड़ी तो वह भी बस उन्हें देखते ही रह गए। अपनी उम्र से 20 साल छोटी साधना को पहली ही नजर में मुलायम दिल दे बैठे थे। मुलायम पहले से ही शादीशुदा थे और साधना भी। साधना की शादी फर्रुखाबाद के छोटे से व्यापारी चुंद्रप्रकाश गुप्ता से हुई थी लेकिन बाद में वह उनसे अलग हो गईं। इसके बाद शुरू हुई मुलायम और साधना की अनोखी प्रेम कहानी।

मुलायम और साधना के संबंध की जानकारी मुलायम परिवार के अलावा अमर सिंह को थी। मालती देवी के निधन के बाद साधना चाहने लगी कि मुलायम उन्हें अपनी आधिकारिक पत्नी मान लें, लेकिन पारिवारिक दबाव, ख़ासकर अखिलेश यादव के चलते मुलायम इस रिश्ते को कोई नाम नहीं देना चहते थे। 2006 में साधना अमर सिंह से मिलने लगीं और उनसे आग्रह करने लगीं कि वह नेताजी को मनाएं। अमर सिंह नेताजी को साधना गुप्ता और प्रतीक गुप्ता को अपनाने के लिए मनाने लगे। साल 2007 में अमर सिंह ने सार्वजनिक मंच से मुलायम से साधना को अपनी पत्नी के रूप में स्वीकार करने का आग्रह किया और इस बार मुलायम उनकी बात मानने के लिए तैयार हो गए। फिर मुलायम सिंह ने साधना सिंह को पत्नी का दर्जा दिया। जानकार बताते हैं कि इस रिश्ते को लेकर अखिलेश कतई तैयार नहीं थे।

 

 

Exit mobile version