Malegaon blast case: देश को झकझोर देने वाले 2008 के मालेगांव बम विस्फोट मामले में 17 साल के लंबे इंतजार के बाद आज फैसला आ सकता है। यह धमाका रमजान के दौरान और नवरात्रि से ठीक पहले हुआ था, जिसमें छह लोगों की जान गई थी और 100 से अधिक घायल हुए थे। इस बहुचर्चित मामले में साध्वी प्रज्ञा ठाकुर, लेफ्टिनेंट कर्नल प्रसाद पुरोहित और मेजर रमेश उपाध्याय समेत सात आरोपी हैं, जो फिलहाल जमानत पर हैं। एनआईए की विशेष अदालत ने अप्रैल 2025 में सुनवाई पूरी होने के बाद फैसला सुरक्षित रखा था। आज फैसला सुनाए जाने से पहले सभी आरोपियों को अदालत में उपस्थित रहने का निर्देश दिया गया है।
17 साल पुराना केस, अब आएगा ऐतिहासिक फैसला
29 सितंबर 2008 को महाराष्ट्र के मालेगांव में एक शक्तिशाली बम धमाका हुआ था, जिसमें छह लोगों की मौत और 100 से ज्यादा लोग घायल हुए थे। यह विस्फोट रमजान के अंतिम दिनों में हुआ था, जिससे सांप्रदायिक तनाव और भय का माहौल बन गया था। मामले की जांच पहले महाराष्ट्र एटीएस ने की थी, जिसने साध्वी प्रज्ञा ठाकुर और लेफ्टिनेंट कर्नल प्रसाद पुरोहित को गिरफ्तार किया।
हालांकि 2011 में जांच एनआईए को सौंप दी गई और एजेंसी ने 2016 में कई आरोपियों को ‘पर्याप्त साक्ष्य न होने’ के आधार पर क्लीन चिट देने की सिफारिश की। इसके बाद भी मुकदमा चलता रहा और इस दौरान 323 गवाहों से पूछताछ हुई, जिनमें 34 अपने बयान से पलट गए।
राजनीतिक और कानूनी हलचल संभव
इस केस का असर सिर्फ कानूनी दायरे तक सीमित नहीं है, बल्कि इसका व्यापक राजनीतिक प्रभाव भी देखा जा सकता है। आरोपियों में से एक, साध्वी प्रज्ञा सिंह ठाकुर, 2019 में भाजपा से लोकसभा चुनाव जीत चुकी हैं। उनके खिलाफ यूएपीए और आईपीसी की गंभीर धाराओं में मुकदमा चल रहा है।
आज आने वाले फैसले से एक ओर जहां पीड़ित परिवारों को न्याय मिलने की उम्मीद है, वहीं दूसरी ओर सत्तारूढ़ दल और विपक्ष दोनों की नजर इस फैसले पर टिकी है। यदि आरोपियों को दोषी ठहराया गया तो राजनीतिक पटल पर यह एक बड़ा मुद्दा बन सकता है, और अगर बरी किया गया तो जांच एजेंसियों की भूमिका पर सवाल उठ सकते हैं।
अदालत का निर्देश और सुरक्षा व्यवस्था
एनआईए की विशेष अदालत ने सभी सात आरोपियों को आज अदालत में अनिवार्य रूप से उपस्थित रहने का आदेश दिया है। अदालत ने स्पष्ट किया है कि अनुपस्थित रहने पर सख्त कार्रवाई की जाएगी। फैसले से पहले मुंबई और मालेगांव में सुरक्षा बढ़ा दी गई है। अदालत के बाहर भीड़ को रोकने के लिए बैरिकेडिंग की गई है और अतिरिक्त पुलिस बल तैनात किया गया है।
इस बहुचर्चित केस का आज जो भी नतीजा सामने आए, वह भारत की न्याय प्रक्रिया और जांच एजेंसियों की कार्यप्रणाली के लिए एक अहम उदाहरण बनेगा।