Atal–Advani Duo and the Unfulfilled PM Dream: पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी और लालकृष्ण आडवाणी को भारतीय जनता पार्टी की सबसे मजबूत और भरोसेमंद जोड़ी माना जाता रहा है। दोनों नेताओं ने साथ मिलकर न सिर्फ पार्टी को मजबूत किया, बल्कि देश की राजनीति को भी नई दिशा दी। लेकिन एक समय ऐसा भी आया, जब अटल बिहारी वाजपेयी के एक फैसले की वजह से लालकृष्ण आडवाणी प्रधानमंत्री बनते-बनते रह गए। इस पूरे घटनाक्रम का खुलासा अटल के पूर्व मीडिया सलाहकार अशोक टंडन ने अपनी किताब में किया है।
राष्ट्रपति चुनाव से जुड़ा अहम खुलासा
अशोक टंडन ने प्रभात प्रकाशन से छपी अपनी किताब ‘अटल संस्मरण’ में 11वें राष्ट्रपति चुनाव का जिक्र किया है। उन्होंने लिखा है कि उस समय बीजेपी की पहली पसंद वैज्ञानिक डॉ. एपीजे अब्दुल कलाम नहीं, बल्कि खुद अटल बिहारी वाजपेयी थे। पार्टी के भीतर यह चर्चा थी कि अटल को राष्ट्रपति बनाया जाए और प्रधानमंत्री की जिम्मेदारी लालकृष्ण आडवाणी को सौंपी जाए।
आडवाणी को पीएम बनाना चाहती थी बीजेपी
बीजेपी की योजना साफ थी। अगर अटल राष्ट्रपति बनते, तो पार्टी के दूसरे सबसे बड़े नेता आडवाणी प्रधानमंत्री बन सकते थे। लेकिन यह योजना पूरी नहीं हो सकी। तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने इस प्रस्ताव को ठुकरा दिया। उनका मानना था कि बहुमत के सहारे किसी लोकप्रिय प्रधानमंत्री का राष्ट्रपति बनना सही परंपरा नहीं होगी।
वाजपेयी ने क्यों कहा “नहीं”
अशोक टंडन के मुताबिक, अटल बिहारी वाजपेयी ने साफ शब्दों में कहा था कि ऐसा कदम भारतीय संसदीय लोकतंत्र के लिए गलत मिसाल बनेगा। उन्होंने माना कि प्रधानमंत्री रहते हुए राष्ट्रपति बनना लोकतांत्रिक संतुलन के खिलाफ होगा। वाजपेयी ने कहा कि वे खुद ऐसे किसी फैसले का समर्थन नहीं कर सकते।
विपक्ष से भी ली गई राय
टंडन ने लिखा है कि अटल बिहारी वाजपेयी ने राष्ट्रपति पद के लिए आम सहमति बनाने के उद्देश्य से कांग्रेस के वरिष्ठ नेताओं को बातचीत के लिए बुलाया। इस बैठक में सोनिया गांधी, प्रणब मुखर्जी और डॉ. मनमोहन सिंह शामिल थे। यहीं पहली बार वाजपेयी ने आधिकारिक तौर पर बताया कि एनडीए ने डॉ. एपीजे अब्दुल कलाम को राष्ट्रपति पद का उम्मीदवार तय किया है।
यह सुनकर बैठक में कुछ देर खामोशी छा गई। बाद में सोनिया गांधी ने कहा कि वह इस फैसले से हैरान हैं, लेकिन उनके पास इसका समर्थन करने के अलावा कोई और विकल्प नहीं है। इसके बाद कलाम सर्वसम्मति से राष्ट्रपति चुने गए और 2002 से 2007 तक इस पद पर रहे।
अटल–आडवाणी का रिश्ता कैसा था
अशोक टंडन ने किताब में यह भी लिखा है कि कुछ नीतिगत मतभेदों के बावजूद अटल और आडवाणी के रिश्ते कभी सार्वजनिक रूप से खराब नहीं हुए। आडवाणी हमेशा अटल को “मेरे नेता और प्रेरणा” कहते थे, जबकि अटल उन्हें अपना “पक्का साथी” मानते थे।
टंडन के अनुसार, अटल बिहारी वाजपेयी और लालकृष्ण आडवाणी की साझेदारी भारतीय राजनीति में संतुलन और सहयोग की मिसाल रही है। दोनों नेताओं ने मिलकर न सिर्फ बीजेपी को खड़ा किया, बल्कि पार्टी और सरकार को स्थिरता और दिशा भी दी। उनकी जोड़ी लोकतांत्रिक मूल्यों को प्राथमिकता देने का उदाहरण माना जाता है।



