नई दिल्ली ऑनलाइन डेस्क। मुगल आक्रांता औरंगजब की कब्र को लेकर घमासान छिड़ा हुआ है। औरंगजेबी प्रेमियों ने महाराष्ट्र के नागपुर को हिंसा की चिंगारी से जला डाला। फिलहाल हालात नियंत्रण में हैं। ऐसे में हम आपको औरंगजेब की मौत और उसकी कब्र के बारे में बताने जा रहे हैं। भारत में मुगलों ने करीब 300 वर्ष तक राज किया। उनकी सत्ता का केंद्र दिल्ली और आगरा ही रहा। पर औरंगजेब के शासनकॉल के दौरान इसका दायरा बढ़ा। महाराष्ट्र के संभाजीनगर जो पहले औरंगाबाद के नाम से जाना जाता था, वहां मुगल शासक ने अपनी मिनी राजधानी बनाई। यहीं पर औरंगजेब की मौत हुई। तब औरंगजेब की कब्र पर सिर्फ 14 रुपए 12 आना खर्च हुए थे। ये पैसा औरंगजेब की कमाई के थे, जो उसने अपनी मौत के बाद कब्र के लिए रखा हुआ था।
अपना मुख्यालय औरंगाबाद को बना लिया
भारत में मुगलों ने करीब 300 वर्ष मे शासन किया। साल 1658 में औरंगजेब छठा मुगल शासक बना। औरंगजेब ने खुद को आलमगीर नाम दिया था, जिसका अर्थ है दुनिया को जीतने वाला। औरंगजेब की नजर महाराष्ट्र पर पड़ी। उसने महाराष्ट्र पर हमले किए, लेकिन छत्रपति शिवाजी महाराज ने औरंगजेब को कईबार युद्ध में शिकस्त दी। साल 1680 में छत्रपति शिवाजी महाराज की मौत हुई तो औरंगजेब के मिशन दक्षिण को भी पंख लग गए। जब शाहजहां का शासन था तब 1636 से 1644 तक औरंगजेब को दौलताबाद का सूबेदार था। तब उसने अपना मुख्यालय औरंगाबाद को बना लिया था, जिसे तब फतेहनगर कहा जाता था।
अहमदनगर में औरंगजेब की मौत
3 मार्च, 1707 को 88 साल की उम्र में महाराष्ट्र के अहमदनगर में औरंगजेब की मौत हुई। कहा जाता है कि क्रूरता के काले अध्याय लिख चुका औरंगजेब अंतिम दौर में सूफी संतों के प्रभाव में आया था, उसकी इच्छा खुल्दाबाद में सूफी संत जैनुद्दीन शिराजी के दरगाह के पास दफन होने की थी। अहमदनगर से सवा सौ किलोमीटर दूर औरंगजेब के शव को खुल्दाबाद में दफनाया गया। औरंगजेब की आखिरी इच्छा के हिसाब से ही उसे दफनाया गया था। मरने से पहले औरंगजेब ने अपनी वसीयत लिखी थी, जिसमें उसने कहा था कि मेरी मौत पर कोई दिखावा न किया जाए। ना ही कोई समारोह आयोजित हो। तब औरंगजेब की कमाई के 14 रूपए 12 आने से कब्र खुदवाई गई और शव को दफनाया गया।
और फिर संगमरमर के पत्थर लगवाए
औरंगजेब का मकबरा बेहद ही साधारण तरीके से बनाया गया है। यहां केवल मिट्टी है। मकबरा एक साधारण सफेद चादर से ढंका रहता है। कब्र के ऊपर एक सब्जा यानी तुलसी का पौधा लगाया गया है। दरअसल, औरंगजेब ने कहा था कि मेरा मकबरा बहुत सादा होना चाहिए। इसे ’सब्जे’ के पौधे से ढंका होना चाहिए और इसके ऊपर छत न हो। इस मकबरे के पास एक पत्थर लगा है जिस पर शहंशाह औरंगजेब का पूरा नाम-अब्दुल मुजफ्फर मुहीउद्दीन औरंगजेब आलमगीर लिखा है। हाल के दिनों में औरंगजेब की इस कब्र पर दो बड़े नेताओं ने फूल चढ़ाये हैं। छोटे ओवैसी और प्रकाश आंबेडकर कुछ साल पहले यहां गये थे। इतिहासकार बताते हैं कि साल 1904-05 में जब लॉर्ड कर्जन यहां आए तो उन्होंने इस साधारण से कब्र को देखकर सवाल उठाया और फिर संगमरमर के पत्थर लगवाए।
37 साल औरंगबाद में बिताए
औरंगजेब ने अपनी जिंदगी के करीब 37 साल औरंगबाद में बिताए थे। यही वजह थी कि उसे औरंगाबाद से बेहद लगाव था। उसने औरंगाबाद में ही अपनी बेगम की कब्र ’बीबी का मकबरा’ बनवाया था, जिसे दक्कन का ताज भी कहा जाता है। औरंगजेब ने वसीयत की थी कि जितना पैसा मैंने अपनी मेहनत से कमाया है, उसे ही अपने मकबरे में लगाऊंगा। उन्होंने अपनी कब्र पर सब्जे का छोटा पौधा लगाने की भी वसीयत की थी। औरंगजेब अपने निजी खर्च के लिए टोपियां सिला करता था। उसने हाथ से कुरान शरीफ भी लिखी थी। हालांकि, इस्लाम को लेकर वह बहुत कट्टर किस्म का था। उसने दरबार में संगीत पर रोक लगा दी थी।
अबू आजमी के बयान के बाद
औरंगजेब में महाराष्ट्र में सपा विधायक अबू आजमी के बयान के बाद शुरू हुआ। उन्होंने औरंगजेब को अच्छा राजा करार दिया था। उन्होंने कहा था कि औरंगजेब के समय भारत वर्मा से लेकर अफगानिस्तान तक फैला था। औरंगजेब और छत्रपति शिवाजी महाराज या छत्रपति सांभाजी महाराज में लड़ाई धर्म को लेकर नहीं बल्कि सत्ता और जमीन को लेकर थी। विवाद बढ़ा तो अबू को अपना बयान वापस लेना पड़ा। कुछ समय पहले ही एआईएमआईएम नेता अकबरुद्दीन ओवैसी ने औरंगजेब के मकबरे पर फूल चढाए थे, जिसे लेकर विवाद हुआ था। वहीं, हिंदू संगठन इसे हटाने की मांग कर रहे हैं, क्योंकि औरंगजेब ने संभाजी महाराज को यातना देकर मारा था।