नई दिल्ली ऑनलाइन डेस्क। औरंगजेब की कब्र को लेकर पूरे देश में सियासत गर्म है। इसबीच हिन्दूवादी संगठनों ने महाराष्ट्र में मुगल आक्रांता की कब्र को हटाए जाने को लेकर प्रदर्शन किया, जिसके कारण नागपुर में हिंसा भड़क गई। एक समुदाय के दंगाईयों ने आगजनी-पथराव किया। पुलिस ने कड़ी मशक्कत के बाद उपद्रवियों पर काबू किया। इन सबके बीच उपमुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे का अहम बयान भी आया है। उन्होंने कहा कि अमेरिका ने भी ओसामा बिन लादेन को अपनी जमीन पर दफनाने की इजाजत नहीं दी थी और किसी भी महिमामंडन से बचने के लिए उसके शव को समुद्र में फेंक दिया था। एकनाथ शिंदे ने कहा कि औरंगजेब कौन है?। हमें अपने राज्य में उसका महिमामंडन क्यों करने देना चाहिए?। वह हमारे इतिहास पर एक धब्बा है। महाराष्ट्र में चल रही इस बहस के आइए जानते हैं उन ‘खौलनायकों’ के बारे में जिनकी मौत के बाद उनके शवों का कहां दफनाया गया। किस हालत में ‘विलेन’ की कब्रें।
अहमदनगर में हुई थी औरंगजेब की मौत
औरंगजेब मुगल सल्तनत का एक प्रभावशाली शासक था। उसकी मौत महाराष्ट्र के अहमदनगर में हुई थी। उसकी कब्र अहमदनगर से 130 किलोमीटर दूर खुल्दाबाद में है। हिन्दू संगठनों के लोग जहां औरंगजेब की कब्र को खुल्दाबाद से हटाने की मांग कर रहे हैं। वहीं मुस्लिम समुदाय उसे मुगलिया सल्तनत का दिलेर बादशाह मानता है। उसे प्रभावशाली राजा बताते हुए इस कदम का विरोध करता है। औरंगजेब की कब्र को हटाए जाने को लेकर महाराष्ट्र में बीतेदिनों प्रदर्शन हुए। तभी औरंगजेब को चाहने वाले लोग भी सड़क पर उतर आए। नागपुर में औरंगजेब के प्रेमियों ने हिंसा की। पुलिस पर हमला किया। एक समुदाय के घर, वाहनों और दुकानों में आग लगाई। पुलिस ने पलटवार करते हुए लाठीचार्ज किया। दंगाईयों को खदेड़ते हुए उन पर गंभीर धाराओं में एफआईआर दर्ज की। मास्टरमाइंड समेत 60 उपद्रवियों को पुलिस ने अरेस्ट कर लिया है। जबकि अन्य की तलाश में पुलिस की छापेमारी जारी है।
जमीन के बजाए समंदर में दफनाया गया
जिस तरह से औरंगजेब ने भारत में क्रूरता की। लोगों की हत्याएं करवाई। मंदिरों को तुड़वाया। महिलाओं की अस्मत लूटी। औरंगजेब की मौत के बाद उसे भारत में ही दफनाया गया। जबकि अमेरिका के लिए इराक का शासक सद्दाम हुसैन भी ऐसा ही कैरेक्टर था। 9/11 हमले को अंजाम देने वाला आतंकी ओसामा बिन लादेन अमेरिका समेत सभ्य दुनिया के दूसरे देशों के लिए खलनायक था। वहीं भारत की संसद पर हमला करने वाला आतंकी अफजल गुरु और मुंबई के 26/11 हमले का दोषी अजमल कसाब 140 करोड़ हिन्दुस्तानियों समेत विश्व के कई देशों के लिए विलेन है। इंसानियत के इन खलनायकों का अंजाम भी औरंबजेब की तरह ही हुआ। सद्दाम हुसैन, अफजल गुरु और अजमल कसाब को फांसी के फंदे पर लटकाया गया तो वहीं ओसामा बिन लादेन को अमेरिका ने पाकिस्तान के अंदर घुसकर मारा। ओसामा बिन लादेन को जमीन के बजाए समंदर में दफनाया गया। अमेरिका नहीं चाहता था कि ओसामा बिन लादेन की कब्र पर कोई फूल चढ़ाए।
सद्दाम हुसैन को अल-औजा में दफनाया गया
इराकी तानाशाह सद्दाम हुसैन को 30 दिसंबर 2006 में अमेरिका ने फांसी की सजा दी गई थी। इसके बाद उसके शव को दफनाने के लिए बगदाद भेज दिया गया था। सद्दाम को 31 दिसंबर, 2006 को अल-औजा में दफनाया गया, जो तिकरित से कुछ किलोमीटर दूर उसके पैतृक गांव में है। यहां उसके दोनों बेटे उदय और कुसय की कब्रें भी थीं। शुरू में यह कब्र उसके समर्थकों के लिए एक स्मारक बन गई। हर साल 28 अप्रैल को लोग वहां जमा होते थे, और कब्र पर उनकी तस्वीरें और पोस्टर लगाए जाते थे। लेकिन 2014 में इराक पर आईएसआईएस का नियंत्रण होने के बाद सद्दाम की कब्र पर खतरा मंडराने लगा। इस बीच सद्दाम के कबीले के कुछ सरदारों का दावा है कि उन्होंने कब्र को वहां से गायब कर दिया और गुप्त स्थान पर ले गए, ताकि आईएसआईएस इसे नष्ट न कर दे। सद्दाम के लिए काम कर चुके एक लड़ाके का दावा है कि सद्दाम की निर्वासित बेटी जो जॉर्डन में रहती है, अपने प्राइवेट जेट से इराक आई थी और मौका देखकर अपने पिता के ’अवशेष’ को ले गई। उसका दावा है कि इराक में हालात ठीक होने पर वो अपने पिता के अवशेष लेकर आएगी।
ये समंदर कौन सा है, कहां है, इसकी कोई जानकारी नहीं
अमेरिका ने अपने सबसे बड़े दुश्मन ओसामा बिन लादेन के शव को ठिकाने लगाने में सद्दाम हुसैन जैसी भूल नहीं की। अल-कायदा का सरगना ओसामा बिन लादेन को अमेरिकी नेवी सील्स ने 2 मई, 2011 को पाकिस्तान के एबटाबाद में एक ऑपरेशन में मार गिराया था। लादेन को मारने के बाद, अमेरिकी सेना उसके शव को एबटाबाद से अफगानिस्तान के बगराम एयरबेस ले गई। वहा डीएनए टेस्ट और चेहरे की पहचान (फेशियल रिकग्निशन) के जरिए उसकी पहचान की पुष्टि की गई। डीएनए को उसकी बहन के नमूने से मिलाया गया, जो पहले से अमेरिका के पास था। इसके बाद ओसामा बिन लादेन के शव को अमेरिका ने एक समंदर में फेंक दिया। ये समंदर कौन सा है, कहां है, इसकी कोई जानकारी दुनिया को नहीं है। अमेरिका नहीं चाहता था कि कोई लादेन का गुणगान करे। उसकी कब्र पर फूल चढ़ाए। तब कुछ लोगों ने अमेरिका के इस कदम के खिलाफ आवाज बुलंद की थी। लेकिन अमेरिका ने उनकी बातों को कभी तवज्जो नहीं दी।
अफजल गुरु को तिहाड़ में दफनाया गया था
अफजल गुरु 2001 में भारत के संसद पर हमले का दोषी था। अफजल को 9 फरवरी, 2013 को दिल्ली के तिहाड़ जेल में फांसी दी गई थी। इसके बाद उसे जेल परिसर में ही दफनाया गया। गौरतलब है कि जम्मू-कश्मीर लिबरेशन फ्रंट के संस्थापक मकबूल बट्ट को भी 1984 में फांसी के बाद तिहाड़ में दफनाया गया था। उसके शव को भी वापस नहीं दिया गया, और यह निर्णय उस समय घाटी में शांति बनाए रखने में प्रभावी रहा था। अफजल के मामले में भी यही नीति अपनाई गई। बता दें कि संसद हमले के दोषी अफजल गुरु की एक सांकेतिक कब्र उत्तर श्रीनगर में बनाई गई थी, लेकिन अधिकारियों ने उसे तुरंत हटा दिया था। क्योंकि वहां लोग जमा हो रहे थे। कुछ ही दिन पहले अफजल गुरु के बड़े भाई एजाज अहमद ने कहा था कि वे तिहाड़ स्थित अफजल गुरु की कब्र पर फातिहा पढ़ना चाहते हैं, लेकिन सरकार की इसकी इजाजत नहीं दे रही है। अफजल की पत्नी की तरफ से भी कहा गया था कि उसके पति की लाश वापिस दी जाए। पर सरकार ने मांग को अस्विकार कर दिया था।
अजमल कसाब की कब्र जेल के अंदर
26/11 मुंबई हमलों के एकमात्र जीवित आतंकी अजमल कसाब को 21 नवंबर, 2012 को पुणे के यरवदा जेल में फांसी दी गई थी। उसका शव भी जेल परिसर में दफनाया गया, और उसकी कब्र का सटीक स्थान सार्वजनिक नहीं किया गया। तब पाकिस्तान के तत्कालीन गृह मंत्री रहमान मलिक ने कहा था कि कसाब के परिवार ने उसके शव को मांगने के लिए कोई अनुरोध नहीं किया है। अजमल कसाब पाकिस्तान के आतंकी संगठन लश्कर-ए-तोएबा से जुड़ा हुआ था। आतंकी अपने अन्य साथियों के साथ मुम्बई में हमला किया था। 166 से ज्यादा लोगों की इस हमले मं जान गई थी। सैकड़ों लोग घायल हुए थे। पुलिस ने अजमल कसाब को अरेस्ट किया था। उस पर कोर्ट में मुकदमा चला। निचली अदालत से लेकर सुप्रीम कोर्ट ने अजमल कसाब के मौत पर मुहर लगाई थी। फिर अजमल कसाब को फांसी पर लटका दिया गया।
सरकार नहीं चाहती की विलेन बने पात्र
बता देंख् सरकारें नहीं चाहतीं कि ऐसे व्यक्तियों की कब्रें या अंतिम स्थान अतिवादी समूहों, अतिवादी विचारों के लिए प्रेरणा का स्रोत बनें। क्योंकि ऐसा होने पर कुछ तत्व समय-काल और परिस्थिति अनुकूल पाने पर उस स्थान पर इकट्ठा होना शुरू कर सकते हैं, इससे सरकार के लिए लॉ एंड ऑर्डर की समस्या पैदा हो सकती है। स्थानीय लोगों के साथ टकराव की स्थिति बन सकती है। इसके अलावा ऐसी जगहों पर लोग खास तारीखों को जमा होकर विशेष विचारधारा को फैला सकते हैं। सरकारें यह दिखाना चाहती हैं कि ऐसे आतंकवादियों, अपराधियों और देश की अदालत में मौत की सजा पा चुके लोगों का यही हश्र होगा और उसकी पहचान सदा-सदा के लिए मिट जाएगी। इससे भविष्य में पैदा हो सकने वाले अपराधियों, आतंकवादियों और खुराफातियों को यह संदेश जाता है कि उन्हें न तो सम्मान मिलेगा, न ही याद किया जाएगा।