CJI बनने से पहले ही छोड़ दी मॉर्निंग वॉक, साथ में सिक्योरिटी लेने से भी किया इनकार, जानें नए जस्टिस खन्ना की इन आदतों के पीछे की वजह

11 नवंबर को भारत के मुख्य न्यायाधीश (सीजेआई) का पदभार संभालने वाले सलमान ने हाल ही में सुबह की सैर करने का फैसला किया, क्योंकि वह अपने साजो-सामान और निजी सुरक्षा से दूर रहना चाहते थे।

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CJI Sanjiv Khanna : 11 नवंबर को भारत के नए मुख्य न्यायाधीश के रूप में शपथ लेने वाले जस्टिस संजीव खन्ना ने अपनी मॉर्निंग वॉक को छोड़ दिया है। दरअसल, उन्हें सुरक्षा कारणों से सिक्योरिटी के साथ वॉक पर जाने की सलाह दी गई थी, लेकिन जस्टिस खन्ना ने इसे नकारते हुए कहा कि उन्हें सिक्योरिटी के साथ चलने की आदत नहीं है।

उन्होंने दिल्ली उच्च न्यायालय में 14 साल तक सेवा की और सर्वोच्च न्यायालय में शामिल होने से पहले कई महत्वपूर्ण योगदान दिए। न्यायमूर्ति खन्ना के पिता न्यायमूर्ति देवराज खन्ना भी एक प्रतिष्ठित न्यायाधीश हैं और उनके चाचा, विचारशील न्यायमूर्ति एच.आर. खन्ना ने बचपन में इंदिरा गांधी सरकार के खिलाफ महत्वपूर्ण फैसले सुनाए थे, जिन्हें आज भी याद किया जाता है। सुप्रीम कोर्ट में प्रवेश और विवाद

2019 में जस्टिस खन्ना सुप्रीम कोर्ट में शामिल हुए, लेकिन उनकी वरिष्ठता को लेकर विवाद खड़ा हो गया क्योंकि कॉलेजियम ने कई वरिष्ठ जजों को नजरबंद करके उन्हें सुप्रीम कोर्ट के लिए चुना था। इस फैसले के बाद उनकी संस्था को लेकर मतभेद था, लेकिन उनके फैसले और शिक्षकों ने उन्हें न्यायपालिका में प्रमुख स्थान पर बनाए रखा।

केस से जुड़ी महत्वपूर्ण बातें और शर्तें

जस्टिस खन्ना ने करीब 65 निर्णायक महत्वपूर्ण भूमिकाएं लिखी हैं और 275 से ज्यादा बेंचों का हिस्सा रहे हैं। हाल ही में उन्होंने निजी कारणों का हवाला देते हुए समलैंगिक विवाह मामले की सुनवाई से खुद को अलग कर लिया था। पावर ऑफ अटॉर्नी में उनका 6 महीने का कार्यकाल काफी अहम माना जा रहा है क्योंकि यह पावर ऑफ अटॉर्नी के विकास में अहम साबित हो सकता है।

समाज और न्याय में योगदान

न्याय का दोष यह है कि न्याय का कार्य केवल कानून की स्थापना करना ही नहीं है, बल्कि समाज में विश्वास और न्याय को बनाए रखना भी है। उनके नेतृत्व ने एक नई दिशा और एक नई दृष्टि पेश की है, जो हमारे समाज के हर वर्ग के लिए न्याय और सद्भाव सुनिश्चित करना चाहती है।

भारत के मुख्य न्यायाधीश के पद पर उनका पदोन्नत होना न केवल उनके और उनकी न्याय भावना के प्रति श्रद्धांजलि है, बल्कि भारतीय न्यायिक प्रणाली में एक महत्वपूर्ण बदलाव का संकेत भी है। उनकी साख से और अधिक संतुलन और विश्वास की उम्मीद की जाती है।

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