मोहसिन खान(नोएडा डेस्क) : लंबे अरसे तक केन्द्र की सत्ता पर काबिज रही कांग्रेस का भविष्य फिलहाल तो अधर में लटका हुआ नज़र आ रहा है। केन्द्र की सत्ता से बाहर हुई कांग्रेस का राज्यों में भी बुरा हाल है। उत्तर प्रदेश में एक दशक से राजनीति के हाशिये से उभरने की कोशिश में लगी कांग्रेस का दिल्ली विधानसभा चुनाव में भी प्रदर्शन बेहद निराशाजनक रहा। अब ऐसे में सवाल उठने लगे कि क्या अब कांग्रेस के पास के कोई ठोस नेतृत्व नहीं है और ना ही पार्टी के पास कोई विज़न है। दुनिया की सबसे बड़ी राजनीतिक पार्टी बनी भाजपा का भी कोई तोड़ नहीं निकल पा रहा है। जिसके चलते कांग्रेस लगातार किनारें पर जा रही है। या यूं कहे कि कांग्रेस को कोई खेवनहार भी नज़र नहीं आ रहा है। केन्द्र और कई राज्यों की सत्ता से बेदखल कांग्रेस ना तो आत्ममंथन करने के लिए तैयार है और ना ही कोई ठोस रणनीति।
कांग्रेस के पास नेतृत्व का अभाव!
कांग्रेस (Congress) में पार्टी नेतृत्व को लेकर तमाम सवाल उठते रहे है। उसकी सबसे बड़ी वजह ये है कि कांग्रेस में गांधी परिवार का ही दबदबा रहा। सोनिया गांधी के बाद पार्टी की कमान राहुल गांधी को सौंपी गई थी इस उम्मीद के साथ युवा चेहरे के साथ कांग्रेस कुछ कमाल कर पाएगी। लेकिन राहुल गांधी(Rahul Gandhi) के पार्टी के अध्यक्ष के रूप में कमान संभालते ही कांग्रेस के दिग्गजों ने ही उनकी मुखालफ़त शुरू कर दी थी और उनके नेतृत्व पर सवाल खड़े कर दिए थे। नतीजा ये भी हुआ था कि कई बडे और पुराने कांग्रेस नेताओं ने पार्टी को बाय-बाय कर दिया था। अब पार्टी अध्यक्ष के रूप में कई नाम सामने आए लेकिन सोनिया और राहुल ने दलित चेहरे और पुराने कांग्रेसी मल्लिकार्जुन खरगे पर विश्वास जताया लेकिन बड़ी बात ये है कि उनके आने से भी पार्टी के प्रदर्शन पर कोई फर्क नहीं पड़ा क्योंकि अंदरखाने ये माना जा रहा है कि पर्दे के पीछे से आज भी पार्टी का नेतृत्व राहुल गांधी ही कर रहे है।
राहुल गांधी की बचकाना छवि
राहुल गांधी के सियासत में सक्रिय होने के बाद लगा था कि युवा चेहरा गंभीरता के साथ काम करेगा और शुरूआत के दिनों में वो छवि दिखाई भी दी। लेकिन वक्त के साथ साथ राहुल गांधी की छवि को बट्टा भी लगता गया। दरअसल कभी अपने बचकाने और गैर जिम्मेदाराना बयानों तो कभी अपनी अलग ही हरकतों को लेकर वो भाजपा के निशाने पर आते रहे और भाजपा ने राहुल की हर एक गतिविधि को जमकर भुनाया पर कांग्रेस उनको डिफेंड नहीं कर पाई। जिस वजह से राहुल गांधी की राजनीति में अपरिपक्व नेता की छवि बन गई। यही वजह है कि देश की जनता अभी उनको गंभीरता से नहीं ले रही है फिर चाहे राहुल गांधी अपनी छवि को सुधारने के लिए आम आदमी के दर्द को जानने के लिए कुछ भी क्यों ना कर रहे हो।
बुजुर्गो पर भरोसा और युवाओं से किनारा
दरअसल कांग्रेस और भाजपा में एक बड़ा अंतर ये भी है कि बीजेपी ने अनुभवी नेताओं और युवाओं में एक रेशो बनाया और उसके मुताबिक उन्होंने संगठन और सरकार में उनको तरजीह दी। लेकिन कांग्रेस में ठीक इसका उल्टा है ऐसा लगता है कि कांग्रेस पार्टी के पुराने और बुजुर्ग हो चुके नेताओं पर ज्यादा भरोसा करती है और उनको नाराज़ नहीं करना चाहती है और यही वजह है कि युवाओं को तरजीह देने में गुरेज कर जाती है। इसका जीता जागता उदाहरण हाल ही में हुए हरियाणा, राजस्थान और महाराष्ट्र के चुनाव भी है। राजस्थान की जनता चाहती था कि सचिन पायलट को सीएम का चेहरा बनाया जाए लेकिन अशोक गहलौत की जिद्द के आगे घुटने टेके और हार का सामना करना पड़ा। हरियाणा में भी यही हाल रहा अगर भूपेन्द्र सिंह हुड्डा की जगह कोई दूसरा चेहरा होता तो शायद तस्वीर दूसरी होती।
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एक-एक करके दूर हुए दोस्त
एक ज़माना था कि राहुल गांधी के साथ युवाओं की एक लंबी जमात थी। राहुल गांधी के ये दोस्त कांग्रेस के लिए ना केवल युवा चेहरे थे बल्कि उनका ना केवल अपने अपने क्षेत्रों में बड़ा जनाधार था बल्कि आसपास में भी वो निर्णायक भूमिका में रहते थे। लेकिन कहते है ना कि ‘विनाशकाले विपरीत बुद्वि’ और हुआ भी ऐसा ही 2019 के लोकसभा चुनाव में कई युवा चेहरों से जिम्मेदारी ले ली गई और फिर नतीजे के आने के बाद मोदी लहर में कांग्रेस के युवा नेता और राहुल गांधी के करीबी उनसे किनारें करके बह निकलें। कांग्रेस में रचे बसे ज्योतिरादित्य सिंधिया, जितिन प्रसाद, मिलिंद देवड़ा सहित कई नेताओं ने पार्टी को टाटा कर दिया और कांग्रेस को एक बड़ा नुकसान हुआ।
कांग्रेस में ज़मीनी कार्यकर्त्ताओं का बड़ा अभाव
कांग्रेस के किनारें पर जाने का सबसे बड़ा कारण ये है कि पार्टी में ज़मीनी कार्यकर्त्ताओं का बड़ा अभाव है। बात कड़वी है लेकिन बड़ा सच है कि कांग्रेस में कोई भी कार्यकर्त्ता नहीं है बल्कि यहां पर सब व्हाइट कॉलर नेता है और सबको तवज्जो चाहिए। कह सकते है कि कांग्रेस की बूथ लेवल से लेकर मंडल स्तर तक चुनावों में कोई तैयारी नज़र नहीं आती जबकि भाजपा में एक एक कार्यकर्त्ता दरी बिछाने से लेकर कुर्सियां बिछाने तक के लिए तैयार रहता है।
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फोटो सेशन में सबसे आगे रहने वाले कांग्रेसी ज़मीनी स्तर पर दिखाई नहीं देते है यही वजह है कि कांग्रेस का जनता ना तो सीधा संवाद रहता है और जनता के मुद्दों पर आवाज उठाना सिर्फ औपचारिकता रहती है। जाहिर तौर पर किसी भी राजनीतिक दल में ज़मीनी कार्यकर्त्ताओं का अभाव और जो थोड़े बहुत कार्यकर्त्ता है अगर उनका सम्मान नहीं होगा तो फिर इसी तरह से सियासी सूखा ही रह जाएगा।