Delhi elections 2025: दिल्ली में 5 फरवरी 2025 को विधानसभा चुनाव होने वाले हैं, और इस बार यह चुनाव आम आदमी पार्टी (AAP), भारतीय जनता पार्टी (BJP) और कांग्रेस के बीच बड़े मुकाबले की ओर बढ़ रहा है। बीजेपी 27 साल बाद दिल्ली में वापसी की उम्मीद कर रही है। इस चुनाव से पहले सबसे बड़ा विवाद ‘मतदाता सूची में हेरफेर’ को लेकर हो रहा है। आम आदमी पार्टी लगातार आरोप लगा रही है कि केंद्र सरकार के नेता और सांसद चुनाव से पहले फर्जी मतदाताओं को सूची में शामिल करने की साजिश कर रहे हैं।
हालांकि, चुनावी आंकड़ों से पता चला है कि 2020 के दिल्ली विधानसभा चुनाव के बाद से कई विधानसभा क्षेत्रों में मतदाताओं की संख्या घट गई है। इसके कारण बीजेपी और AAP दोनों के लिए चिंता की बात बन गई है। खासकर वो क्षेत्र जहां AAP का प्रभाव ज्यादा है, वहां कम मतदान का असर पार्टी पर ज्यादा पड़ सकता है। आंकड़ों के मुताबिक, दिल्ली के 14 विधानसभा क्षेत्रों में मतदाताओं की संख्या कम हुई है।
2025 के दिल्ली चुनाव में कम मतदाता
इस बार 2025 के चुनाव में दिल्ली के पांच में से एक निर्वाचन क्षेत्र में 2020 के मुकाबले कम मतदाता पंजीकृत होंगे। उदाहरण के तौर पर,
लक्ष्मी नगर विधानसभा
लक्ष्मी नगर विधानसभा क्षेत्र में पिछले चुनाव की तुलना में इस बार 15,213 कम मतदाता पंजीकृत हुए हैं। पहले यहां 2,21,651 मतदाता थे, लेकिन अब केवल 2,06,438 लोगों ने अपना नाम पंजीकरण कराया। इसी तरह
रोहिणी विधानसभा
रोहिणी विधानसभा क्षेत्र में भी 10,437 कम मतदाता होंगे। पांच साल पहले यहां 1,82,979 मतदाता थे, जो अब घटकर 1,72,542 हो गए हैं।
बाबरपुर विधानसभा
बाबरपुर में भी पांच साल पहले की तुलना में 699 कम मतदाता पंजीकृत हुए हैं।
दिल्ली कैंट विधानसभा
दिल्ली कैंट में तो 2025 में मतदाता पंजीकरण में भारी गिरावट देखी गई है, यहां 2020 में 1,29,338 मतदाता थे, जो अब घटकर 78,893 रह गए हैं। यानी यहां लगभग 50,445 कम मतदाता पंजीकृत हैं।
नई दिल्ली विधानसभा क्षेत्र
नई दिल्ली विधानसभा क्षेत्र में भी 2020 में 1,45,901 मतदाता थे, लेकिन इस साल सिर्फ 1,09,022 मतदाता पंजीकृत हुए हैं।
कम मतदान का असर किसे होगा
दिल्ली में कम मतदान होने का सबसे ज्यादा असर आम आदमी पार्टी (AAP) पर पड़ सकता है। यह पार्टी शहरी इलाकों में ज्यादा प्रभावी रही है, और यहां के वोटर्स की संख्या कम होने से पार्टी को नुकसान हो सकता है। दूसरी तरफ, बीजेपी का समर्थन ज्यादातर उपनगरों और ग्रामीण इलाकों में होता है, जहां वोटिंग का असर कुछ हद तक कम होगा। बीजेपी ने पिछले कुछ सालों में अपने प्रचार को केंद्रित किया है, जैसे कि राष्ट्रवाद और सांस्कृतिक मुद्दे, जिससे उसे शहरी इलाकों की तुलना में उपनगरों में फायदा हो सकता है।