नई दिल्ली ऑनलाइन डेस्क। पाकिस्तान में पिछले कई दशकों से बचूल लोग बलूचिस्तान की आजादी को लेकर आंदोलन चलाए हुए हैं। बलूच लड़ाके हरदिन पाकिस्तान आर्मी को चोट पहुंचा रहे हैं। कुछ दिन पहले बलूचिस्तान आर्मी ने सोशल मीडिया हैंडल एक्स पर हिंगलाज माता हिंदू मंदिर को लेकर जानकारी साझा की थी। ऐसे में हम आपको अपने इस खास अंक में हिंगलाज माता की कहानी से रूबरू कराने जा रहे हैं।
दरअसल, हिंगलाज माता का ऐतिहासिक और प्राचीन मंदिर बलूचिस्तान में है । यह 51 शक्तिपीठों में से एक है। मान्यता है कि यहीं माता सती का सिर गिरा था। ये मंदिर मकरान रेगिस्तान की खेरथार पहाड़ियों के अंत में है। मंदिर एक छोटी प्राकृतिक गुफा में बना हुआ है, जहां एक मिट्टी की वेदी बनी हुई है। देवी की कोई मानव निर्मित छवि नहीं है। बल्कि एक शिला रूप में हिंगलाज माता की आकृति उभरी हुई है।
हिंगलाज माता मंदिर बलूचिस्तान के जिस इलाके में है, वहां पहुंचना काफी कठिन है। रास्ता दुर्गम है और सड़कें भी खराब हैं। नवरात्रि में सिंध- कराची से हजारों हिंदू 500 किमी तक की पैदल यात्रा करके यहां आते हैं। मंदिर में कोई दरवाजा भी नहीं है। हिंगलाज माता को बलूचिस्तान और सिंध के मुस्लिम भी मानते हैं। स्थानीय लोग देवी को कई नामों से बुलाते हैं, जिनमें कोट्टरी, कोट्टवी, कोट्टरिशा शामिल हैं। मुस्लिम भक्त इसे पीर नानी कहते हैं।
हिगंलाज गुफा जिस इलाके में है, वहां तीन ज्वालामुखी हैं। इन्हें गणेश, शिव और पार्वती के नाम से जाना जाता है। इस मंदिर में भगवान राम ने भी दर्शन किए थे। उनके अलावा गुरु गोरखनाथ, गुरुनानक देव, दादा मखान जैसे आध्यात्मिक संत भी यहां आ चुके हैं। हिंगलाज देवी, हिंदू खत्री समुदाय की कुलदेवी भी हैं। हाल ही में भारत और पाकिस्तान के बीच छिड़े तनाव के बाद से बलूचिस्तान काफी चर्चा में है। ऐसे में बलूच आर्मी ने हिंगलाज माता हिंदू मंदिर को लेकर जानकारी साझा की है।
बलूचिस्तान ने 16 मई को हिंगलाज माता मंदिर को लेकर जल्द ही इस मंदिर का भव्य तरीके से पुनर्निर्माण करने की बड़ी घोषणा की है। साथ ही आगे कहा है कि बलूचिस्तान और भारत एक ही हैं, उनके देवी-देवता हमारे भी देवी देवता हैं। बलूच खुद अपने को हिंगमाता की संतान कहते हैं। बचूलों ने दावा किया है कि हिंगमाता मंदिर की सुरक्षा बलूच फाइटर्स के हाथों में हैं। पाकिस्तान ने कईबार मंदिर को नुकसान पहुंचाने का प्रयास किया, लेकिन कभी सफल नहीं हुआ।
पौराणिक कथा के अनुसार माता सती के दाह के बाद जब भगवान शिव उनके शरीर को लेकर तांडव कर रहे थे, तब उनके क्रोध को शांत करने के लिए भगवान विष्णु ने सुदर्शन चक्र चलाकर माता सती के शरीर के टुकड़े कर दिए। वे टुकड़े अलग-अलग जगहों पर गिरे थें। मान्यताओं के अनुसार हिंगलाज माता मंदिर में देवी सती का सिर गिरा था। जब पाकिस्तान का जन्म नहीं हुआ था। उस समय भारत की पश्चिमी सीमा अफगानिस्तान और ईरान से जुड़ती थी। उस समय से बलूचिस्तान के मुसलमान हिंगलाज देवी को मानते आ रहे हैं।
यहां बलोच लोग देवी को ’नानी’ कहते हैं और ’नानी पीर’ कहते हुए लाल कपड़ा, अगरबत्ती, मोमबत्ती, इत्र और सिरनी चढ़ाते हैं। इस मंदिर पर आक्रांताओं ने कई हमले किए लेकिन स्थानीय हिन्दू और बलोच लोगों ने इस मंदिर को बचाया। मंदिर के साथ ही गुरु गोरखनाथ का चश्मा है। मान्यता है कि माता हिंगलाज देवी यहां स्नान करने आती हैं। जब से इस इलाके पर बलूस आर्मी की दखल बढ़ी है तब से मंदिर में भक्तों की संख्या में जबरदस्त इजाफा हुआ है। हालांकि अभी भी पूरे इलाके की कमान पाक आर्मी के पास ही है, लेकिन बलूच इन्हें कड़ी टक्कर दे रहे हैं।
हिंगलाज सिद्ध पीठ की यात्रा के लिए दो मार्ग हैं। एक पहाड़ों के रास्ते दूसरा मरूस्थल से होकर। हिंगलाज के दर्शन के लिए यात्रियों का जत्था कराची से चल कर लसबेल पहुंचता है। फिर लयारी कराची से छह-सात मील चलकर ‘हाव’ नदी पड़ती है। यहीं से हिंगलाज तीर्थ की यात्रा शुरू होती है। यहीं संकल्प लेकर लौटने तक की अवधि के लिए संन्यास ग्रहण किया जाता है। इस स्थान पर छड़ी का पूजन होता है और यहीं पर रात में विश्राम करके सुबह हिंगलाज भवानी की जय के साथ मरुतीर्थ की यात्रा शुरू हो जाती है।
रास्ते में कई बरसाती नाले और कुएं भी मिलते हैं। इस इलाके की सबसे बड़ी नदी हिंगोल है जिसके पास ही चंद्रकूप पहाड़ है। चंद्रकूप और हिंगोल नदी के बीच करीब 15 मील का फासला है। मन्नत पूरी होने पर हिंगोल में यात्री, अपने सिर के बाल मुंडवा कर पूजा करते हैं और यज्ञोपवीत पहनते हैं। मंदिर की यात्रा के लिए यहां से पैदल या छोटी गाड़ियों से यात्रा करनी पड़ती है। क्योंकि इससे आगे कोई सड़क नहीं है।