सिंधु जल संधि पर भारत का सख्त रुख, पाकिस्तान की ठुकराई मांग, अब नई शर्तों पर होगी बात!

भारत ने यह तय कर लिया है कि सिंधु जल संधि को बहाल करने की पाकिस्तान की गुजारिश पर विचार नहीं किया जाएगा. भारत-पाकिस्तान के बीच सिंधु जल संधि को अब भारत द्वारा पाकिस्तान के साथ रिनिगोशिएट किया जाएगा. सूत्रों की मानें तो इस सिंधु जलसंधि को अंतरराष्ट्रीय नियमों के तहत भारत अपने के हितों के अनुसार बनाया चाहता है.

Indus Water Treaty : भारत ने सिंधु जल संधि को लेकर पाकिस्तान को साफ संदेश दे दिया है कि अब बातचीत पुरानी व्यवस्था या शर्तों के आधार पर नहीं होगी। सरकारी सूत्रों के मुताबिक, पाकिस्तान के जल संसाधन मंत्रालय द्वारा हाल ही में भेजी गई अपील को भारत ने अस्वीकार कर दिया है। भारत अब इस ऐतिहासिक संधि की समीक्षा करते हुए इसे वर्तमान वैश्विक और घरेलू हालात के अनुरूप फिर से निर्धारित करना चाहता है।

भरोसा टूटने से टूटी संधी

सूत्रों की मानें तो 1960 में भारत और पाकिस्तान के बीच बनी यह संधि उस समय की मित्रता और सद्भावना की भावना पर आधारित थी। लेकिन पिछले 30 वर्षों में पाकिस्तान द्वारा आतंकवाद को संरक्षण देने और सीमा पार से तनाव बढ़ाने की नीति ने इस भरोसे को गहरा नुकसान पहुंचाया है।

21वीं सदी के अनुसार होगी नई रूपरेखा

भारत अब इस संधि को 21वीं सदी की जलवायु चुनौतियों, जनसंख्या वृद्धि और स्वच्छ ऊर्जा की जरूरतों को ध्यान में रखते हुए पुनः बातचीत के जरिये नए सिरे से तय करना चाहता है। विशेषज्ञों का कहना है कि जब यह संधि बनी थी, तब न तो इतनी जनसंख्या थी और न ही जलवायु परिवर्तन जैसी गंभीर समस्याएं सामने थीं। वर्तमान हालात में ग्लेशियरों का पिघलना, जल स्रोतों की कमी और नदियों का घटता जलस्तर नई रणनीति की मांग करता है।

यह भी पढ़ें : लखनऊ में चौंकाने वाली घटना, अधिकारी की पिटाई…

भारत सरकार का स्पष्ट रुख है कि वह किसी भी अंतरराष्ट्रीय संधि या नियम का उल्लंघन नहीं करेगी, लेकिन अपने हिस्से के जल पर उसका वैधानिक अधिकार है और वह उसे अवश्य उपयोग में लाएगी। यह भी कहा गया है कि पाकिस्तान ने अब तक संधि के पुनरावलोकन में बार-बार अड़चनें पैदा की हैं, जो स्वयं संधि की मूल भावना के खिलाफ है।

पाकिस्तान की अपील हुई खारिज

पाकिस्तान की हालिया अपील को लेकर सूत्रों ने यह भी बताया कि भारत अब पीछे लौटने के मूड में नहीं है। आगे की किसी भी बातचीत की दिशा भारत के रणनीतिक और पर्यावरणीय हितों के अनुसार ही तय होगी। सरकार का रुख स्पष्ट है: अब ‘जल-साझेदारी’ केवल भारत की जरूरतों और नई हकीकतों को ध्यान में रखकर ही तय होगी।

Exit mobile version