India water strategy: India अब सिंधु जल संधि (IWT) के तहत मिले जल के इस्तेमाल को लेकर एक नई सोच के साथ आगे बढ़ रहा है। 1960 में बनी इस संधि की शर्तें उस समय के भारत की जरूरतों और संसाधनों पर आधारित थीं, पर अब तकनीक और रणनीति दोनों ने करवट ली है। कैसे भारत पुराने बाँधों के स्थान पर भूमिगत सुरंगों और पाइपलाइनों के ज़रिए अपने हिस्से के जल का अधिकतम उपयोग कर सकता है। इस दृष्टिकोण ने न केवल तकनीकी हलचल पैदा की है बल्कि IWT की वर्तमान प्रासंगिकता पर भी बहस छेड़ दी है, जिससे जल प्रबंधन के क्षेत्र में बड़ा बदलाव देखने को मिल सकता है।
तकनीक और रणनीति से बदलती जल नीति
India-पाकिस्तान के बीच 1960 में बनी सिंधु जल संधि के अनुसार India को सिंधु नदी प्रणाली का 30% जल मिला, जबकि 70% पाकिस्तान को जाता है। यह संधि भारत को ब्यास, रावी और सतलुज नदियों पर पूर्ण नियंत्रण और सिंधु, चिनाब और झेलम पर सीमित उपयोग की अनुमति देती है। लेकिन अब भारत की तकनीकी प्रगति और बदली हुई भू-राजनीतिक परिस्थितियों में यह संधि कई विशेषज्ञों को पुरानी लगने लगी है।
झेलम और चिनाब जैसी पश्चिमी नदियों से जल को पाइपलाइनों और सुरंगों के माध्यम से जम्मू, हिमाचल या पंजाब की ओर मोड़ा जा सकता है, जिससे जल वितरण प्रणाली तेज, सुरक्षित और अधिक टिकाऊ हो सकेगी। वे कहते हैं, “अब हमें बाँधों की आवश्यकता नहीं, पाइपलाइनें ही काफी हैं।”
राज्यों को मिलेगा सीधा लाभ
राजस्थान और मध्य प्रदेश जैसे राज्य, जो पहले से ही सिंचाई परियोजनाओं पर काम कर रहे हैं, इस अतिरिक्त जल से सीधे लाभान्वित हो सकते हैं। विशाल स्टील पाइपलाइनों की मदद से जल पंजाब, हरियाणा, गुजरात तक पहुँचाया जा सकता है, जिससे खेती, पीने के पानी और बिजली उत्पादन के क्षेत्र में बड़ी मदद मिलेगी।
इन आधुनिक उपायों से न केवल जल उपयोग का दायरा बढ़ेगा, बल्कि बाँधों की तुलना में सुरक्षा भी अधिक होगी। सुरंगों और भूमिगत पाइपलाइनों को भारतीय सेना द्वारा संरक्षित किया जा सकता है, जिससे आतंकवादी खतरे या युद्धकालीन जोखिमों से बचाव संभव होगा।
संधि पर नई बहस की शुरुआत
2016 के उरी हमले के बाद प्रधानमंत्री मोदी के “रक्त और पानी एक साथ नहीं बह सकते” जैसे बयानों ने IWT पर भारत के रुख में बदलाव के संकेत दिए थे। आज तुलबुल परियोजना और पाइपलाइन रणनीति उसी बदलाव की निरंतरता मानी जा रही है।
India अब जल प्रबंधन में पिछली पीढ़ी की सोच को छोड़कर उन्नत इंजीनियरिंग और रणनीतिक नियंत्रण की ओर बढ़ रहा है। इससे न केवल घरेलू ज़रूरतें पूरी होंगी, बल्कि क्षेत्रीय शक्ति संतुलन में भी नई परिभाषा तय हो सकती है।