नई दिल्ली ऑनलाइन डेस्क। पहलगाम आतंकी हमले के बाद भारत सरकार ने सिंधु जल समझौता खत्म कर दिया है। पूरे प्रकरण को लेकर केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने केंद्रीय जलशक्ति मंत्री सीआर पाटिल के साथ बैठक एक महात्वपूर्ण बैठक की। जिसमें निर्णय लिया गया कि तत्काल प्रभाव से पाकिस्तान जानें वाले पानी को रोका जाए और इसकी शुरूआत भी हो गई। जानकारी के मुताबिक भारत ने पाकिस्तान जानें वाले पानी को रोकना भी शुरू कर दिया है।
क्यों पानी रोकने की पड़ी जरूरत
दरअसल, 22 अप्रैल को पाकिस्तानी आतंकवादियों ने जम्मू-कश्मीर के पहलगाम में 28 सैलानियों की धर्म पूछकर हत्या कर दी थी। नरसंहार के बाद भारत सरकार ने पाकिस्तान के साथ चल रहे सिंधू समझौते को रद्द करने का ऐलान किया। शुक्रवार को गृह मंत्री अमित शाह और जलशक्ति मंत्री सी. आर. पाटिल की इसी को लेकर बैठक हुई। जिसमें यह निर्णय लिया गया कि पाकिस्तान को सिंधु नदी का एक भी बूंद पानी नहीं दिया जाएगा। बैठक में सिंधु नदी के पानी को रोकने के लिए त्वरित, मध्यकालीन और दीर्घकालीन उपायों पर चर्चा की गई।
अब जानें सिंधु जल समझौते के बारे में
सिंधु जल समझौते वाली फाइल पर 1960 में तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू और पाकिस्तान के पूर्व राष्ट्रपति अयूब खान ने साइन किए थे। इस संधि में विश्व बैंक मध्यस्थ था। इस समझौते के अनुसार, तीन पूर्वी नदियों ब्यास, रावी और सतलुज का नियंत्रण भारत को, तथा तीन पश्चिमी नदियों सिंधु, चिनाब और झेलम का नियंत्रण पाकिस्तान को दिया गया। पाकिस्तान के नियंत्रण वाली नदियों भारत से होकर पहुंचती हैं। इस संधि के बाद पानी का 80 फीसदी पाकिस्तान में चला गया, जबकि शेष 20 फीसदी जल का उपयोग भारत करता है।
जानें पानी रोकने के उपाय
संधि कैंसिल होने के बाद सिंधु नदी की सिल्ट हटाने और ड्रेजिंग की प्रक्रिया तुरंत शुरू की जाएगी ताकि पानी की आपूर्ति को नियंत्रित किया जा सके। सिंधु नदी के पानी को अन्य नदियों में डायवर्ट करने की योजना बनाई जाएगी, जिससे पाकिस्तान तक पानी की आपूर्ति रोकी जा सके। सिंधु नदी पर नए बांधों का निर्माण किया जाएगा ताकि पानी की आपूर्ति को नियंत्रित किया जा सके और सिंचाई के लिए पानी का उपयोग बढ़ाया जा सके। भारत की तरफ से इस पर जमीन पर काम भी शुरू हो गया है। निर्माणधीन बांधों पर सिंधु नदी के पानी रोके जानें को लेकर युद्ध स्तर पर कार्य भी शुरू हो गया है।
पाकिस्तान को भेज दिया गया पत्र
इससे पहले जल शक्ति मंत्रालय की सचिव देवश्री मुखर्जी ने पाकिस्तान को पत्र लिखकर सिंधु जल संधि को तत्काल प्रभाव से निलंबित रखने की जानकारी दी थी। पत्र में बताया गया कि यह निर्णय भारत द्वारा पहले भेजे गए नोटिसों और अनुच्छेद 12(3) के तहत संधि में संशोधन की मांग पर आधारित है। भारत का कहना है कि बदलती जनसंख्या, ऊर्जा आवश्यकताएं और जल वितरण से जुड़े अनुमान अब पहले जैसे नहीं रहे, इसलिए संधि की शर्तों की पुनः समीक्षा जरूरी हो गई है।
और ग्लेशियर पिघलने की जानकारी नहीं देगा
सिंधु संधि कैंसिल होने के बाद अब दोनों देशों के जल आयुक्तों की सालाना बैठकें नहीं होंगी, जिससे संवाद और विवाद निपटाने के रास्ते बंद हो जाएंगे। दरअसल, संधि के तहत दोनों देशों के दो आयुक्तों को साल में एक बार बारी-बारी से मिलने की व्यवस्था दी गई थी। भारत द्वारा संधि को निलंबित करने के बाद अब ऐसी कोई बैठक नहीं होगी। भारत अब पाकिस्तान को नदियों का प्रवाह, बाढ़ की चेतावनी और ग्लेशियर पिघलने की जानकारी नहीं देगा। इससे पाकिस्तान में बाढ़ या सूखे की संभावना बढ़ सकती है।
संभावित सूखे या बाढ़ का खतरा
संधि के तहत भारत, पाकिस्तान को समय पर हाइड्रोलॉजिकल डेटा सर्कुलेट करता आ रहा था। इसमें बाढ़ की चेतावनी जारी की जाती थी। नदी के प्रवाह को साझा करना और ग्लेशियर पिघलने के पैटर्न पर अलर्ट दिया जाता था। अब पाकिस्तान को सिंधु नदी और उसकी सहायक नदियों के जल स्तर के बारे में जानकारी की कमी के कारण संभावित सूखे या बाढ़ का खतरा है। भारत अब पश्चिमी नदियों पर अपने जलविद्युत परियोजनाओं को बिना पाकिस्तान से से सलाह-मशविरा किए आगे बढ़ा सकेगा। यानी दोनों देशों के बीच सूचना का प्रवाह रुक जाएगा।
जो पाकिस्तान की अर्थव्यवस्था की रीढ़
पाकिस्तान पहले से ही वित्तीय और राजनीतिक उथल-पुथल से जूझ रहा है। इस फैसले से उस पर दूरगामी असर पड़ने वाला है। पाकिस्तान कृषि के लिए सिंधु नदी पर बहुत ज्यादा निर्भर है, जो इसकी अर्थव्यवस्था की रीढ़ है। पाकिस्तान की 90 फीसदी सिंचाई प्रणाली सिंधु नदी पर आधारित है। जल आपूर्ति में किसी भी प्रकार का व्यवधान उसके कृषि उत्पादन और खाद्य सुरक्षा को खतरे में डाल सकता है। पश्चिमी नदियों से पानी की आपूर्ति में कोई भी व्यवधान या भविष्य में व्यवधान पाकिस्तान में पानी की कमी को बढ़ा सकती है। फसल की पैदावार को कम कर सकती हैं।
बिजली आपूर्ति पर भारी असर पड़ेगा
इससे पाकिस्तान के अंदर घरेलू अशांति बढ़ सकती है। खासकर पहले से ही पानी की कमी से जूझ रहे पंजाब और सिंध जैसे प्रांतों में हालात बदतर हो सकते हैं। कृषि उत्पादन के अलावा बिजली आपूर्ति पर भी भारी असर पड़ेगा। पहले से ही पानी की कमी के कारण पाकिस्तान सालाना लगभग 19 मिलियन टन कोयला आयात करता है। लेकिन आगे कोयला आयात का वित्तीय बोझ और बढ़ सकता है। आज पाकिस्तान की जीडीपी का 60 प्रतिशत से ज्यादा हिस्सा कर्ज में डूबा हुआ है। संधि के कैंसिल होने के बाद पाकिस्तान अंदर से खौफजदा है और इसे भारत की तरफ से जंग करार दे रहा है।