Railway Loco Pilot Demands: देशभर में इंडिगो एयरलाइंस का बड़ा संचालन संकट चल रहा है और यात्रियों को भारी परेशानी का सामना करना पड़ रहा है। इसी दौरान रेलवे के लिए भी नई चिंता खड़ी हो गई है। ट्रेन चलाने वाले लोको पायलट अब अपने काम के घंटों को सीमित करने और तय आराम देने की मांग पर जोर दे रहे हैं। उनका कहना है कि लगातार ओवरटाइम और कम आराम की वजह से वे अत्यधिक थकान में ट्रेन चलाते हैं, जिससे हादसे का खतरा बढ़ता है।
लोको पायलटों का तर्क है कि जिस तरह इंडिगो मामले में विमान पायलटों के लिए सरकार ने सुरक्षा आधार पर कड़े नियम लागू किए, उसी तरह रेलवे को भी वैज्ञानिक और सुरक्षित कार्य प्रणाली अपनानी चाहिए।
ड्यूटी 6 घंटे और 16 घंटे आराम की मांग
लोको पायलटों ने सरकार से मांग की है कि उनकी ड्यूटी अधिकतम 6 घंटे तय की जाए और हर ड्यूटी के बाद 16 घंटे का आराम अनिवार्य हो। इसके अलावा हफ्ते में तय छुट्टी भी दी जाए। उनका दावा है कि ये बदलाव सुरक्षा के लिए बेहद जरूरी हैं।
अगर बातचीत आगे नहीं बढ़ी और कर्मचारी आंदोलन पर उतर आए, तो ट्रेनें देरी से चल सकती हैं, रद्द हो सकती हैं और शेड्यूल बिगड़ सकता है।
इंडिगो संकट का उदाहरण देते हुए पायलटों ने कहा कि 9 दिन में 2000 से ज्यादा फ्लाइटें रद्द हो गईं, उसी तरह अगर रेलवे में भी स्थिति बिगड़ी तो देश की सबसे बड़ी यात्री सेवा पर गंभीर प्रभाव पड़ सकता है। इससे लाखों यात्री सीधे प्रभावित होंगे।
मांगें क्यों बढ़ीं?
ऑल इंडिया लोको रनिंग स्टाफ एसोसिएशन (AILRSA) का कहना है कि वह कई वर्षों से केवल इतना मांग रहे हैं कि लोको पायलटों की ड्यूटी मानव शरीर की क्षमता और वैज्ञानिक मानकों के हिसाब से तय हो।
कई पायलटों को 10 से 12 घंटे लगातार काम करना पड़ता है। रात की लंबी ड्यूटी, लगातार ट्रिप्स और ओवरटाइम उन्हें मानसिक और शारीरिक रूप से थका देता है। उनका कहना है कि थके हुए लोको पायलट से गलती होने की संभावना बढ़ जाती है, जिससे हजारों यात्रियों की जान खतरे में पड़ सकती है।
इंडिगो मामले में थकान को गंभीरता से लिया गया और एफआरएमएस जैसी प्रणाली की बात सामने आई। यही वजह है कि लोको पायलटों का कहना है कि एक ही देश में दोहरी नीति नहीं होनी चाहिए। रेलवे को भी सुरक्षित और वैज्ञानिक कार्य प्रणाली लागू करनी चाहिए।
कर्मचारियों का बढ़ता आक्रोश
AILRSA का आरोप है कि सरकारी या सार्वजनिक क्षेत्र के कर्मचारी जब अपने हक की बात करते हैं तो उन पर सख्त कदम उठाए जाते हैं, जबकि निजी कंपनियों पर सरकार नरमी दिखाती है।
एसोसिएशन का कहना है कि जब इंडिगो ने पायलटों के ड्यूटी नियमों का पालन नहीं किया, तब भी सरकार ने कड़ा रुख नहीं अपनाया।
उनका कहना है कि थकान जोखिम प्रबंधन दुनिया भर में साबित मॉडल है और एयरलाइन सेक्टर में लागू है, फिर रेलवे में इसे लागू करने में देरी क्यों की जा रही है?



