Kangana Ranaut Case : एमपी-एमएलए कोर्ट, आगरा में न्यायाधीश अनुज कुमार सिंह ने मंगलवार को भाजपा सांसद और अभिनेत्री कंगना रनौत के खिलाफ दाखिल एक याचिका को खारिज कर दिया। यह याचिका आगरा के वरिष्ठ वकील रमाकांत शर्मा द्वारा दायर की गई थी, जिसकी सुनवाई पिछले लगभग नौ महीनों से लगातार हो रही थी। फैसले के बाद अधिवक्ता रमाकांत शर्मा ने स्पष्ट किया कि वह इस निर्णय को चुनौती देंगे। उन्होंने कहा कि वह पहले एमपी-एमएलए कोर्ट के सेशन में पुनर्विचार याचिका (रिवीजन) दाखिल करेंगे, और यदि आवश्यक हुआ तो उच्च न्यायालय का रुख भी करेंगे। शर्मा ने दो टूक कहा, “मैं इस मामले को यूं ही नहीं छोड़ूंगा। इसके लिए मैं सभी कानूनी विकल्पों का सहारा लूंगा।”
सुप्रीम कोर्ट में कंगना राणावत की ओर से पेश अधिवक्ता अनसूया चौधरी ने अदालत को अवगत कराया कि वादी द्वारा दायर याचिका में कोई ठोस या कानूनी आधार मौजूद नहीं था। उन्होंने मामले को खारिज करने के पक्ष में सभी आवश्यक तर्क और पूर्ववर्ती न्यायिक निर्णयों को प्रस्तुत किया, जिसे संज्ञान में लेते हुए अदालत ने वाद निरस्त करने का निर्णय सुनाया। यह मामला 11 सितंबर 2024 को रमाशंकर शर्मा नामक व्यक्ति द्वारा दायर किया गया था। याचिका में आरोप लगाया गया था कि कंगना राणावत ने 26 अगस्त 2024 को एक साक्षात्कार के दौरान केंद्र सरकार के विरोध में आंदोलन कर रहे किसानों को “हत्यारा” कहकर संबोधित किया था। इसके अतिरिक्त, उन्होंने महात्मा गांधी के संबंध में भी आपत्तिजनक टिप्पणी की थी, जिसे आधार बनाकर वादी ने उनके विरुद्ध कानूनी कार्रवाई की मांग की थी।
पुलिस कमिश्नर ने की थी कानूनी कार्रवाई की मांग
आगरा में राजीव गांधी बार एसोसिएशन के अध्यक्ष रमाशंकर शर्मा ने 31 अगस्त 2024 को आगरा पुलिस कमिश्नर और न्यू आगरा थाना प्रभारी को पत्र भेजकर कंगना राणावत के खिलाफ कानूनी कार्रवाई की मांग की थी। आरोप था कि कंगना राणावत ने एक इंटरव्यू में दिल्ली बार्डर पर धरने पर बैठे लाखों किसानों को अपमानित करते हुए उन्हें हत्यारा और बलात्कारी तक कहा था। साथ ही, उन्होंने महात्मा गांधी के अहिंसात्मक सिद्धांत का मजाक भी उड़ाया था।
यह भी पढ़ें : आंधी ने छीना पूरा परिवार : करंट लगने से वाराणसी में पति, पत्नी और ससुर की मौत…
अधिवक्ता रमाकांत शर्मा ने बताया कि आज एमपी-एमएलए कोर्ट के न्यायाधीश अनुज कुमार सिंह ने तीन प्रमुख बिंदुओं के आधार पर वाद खारिज कर दिया। पहला, यह कि वादी और उसके परिवार का कोई सदस्य किसान आंदोलन में शामिल नहीं था। दूसरा, यह कि महात्मा गांधी का निधन हो चुका है, और उनके परिवार का कोई सदस्य ही इस मामले में वाद दायर कर सकता था। तीसरा, यह कि वाद दायर करने से पहले किसी मजिस्ट्रेट से मंजूरी नहीं ली गई थी।