Karnataka,10 Board Exam : हाल ही में कर्नाटक माध्यमिक शिक्षा बोर्ड ने 10वीं कक्षा के परिणाम घोषित किए, लेकिन इसी दौरान एक घटना ने लोगों की सोच को झकझोर कर रख दिया। यह कहानी है बागलकोट ज़िले की, जो सिर्फ एक छात्र की नहीं, बल्कि समाज की मानसिकता को आइना दिखाने वाली बन गई है। अक्सर देखा जाता है कि परीक्षा में कम अंक लाने या असफल होने पर छात्रों को परिवार, समाज और यहां तक कि शिक्षकों से भी उपेक्षा और आलोचना का सामना करना पड़ता है।
इसका असर बच्चों की मानसिक स्थिति पर गहरा पड़ता है – वे खुद को अकेला महसूस करने लगते हैं और कई बार अवसाद में चले जाते हैं। आज के समय में परीक्षा परिणामों को जीवन की अंतिम कसौटी मान लिया गया है। विशेषकर 10वीं और 12वीं की परीक्षाएं तो जैसे बच्चों के भविष्य का फैसला सुनाने वाली बन चुकी हैं। लेकिन इसी सोच के उलट एक प्रेरणादायक घटना घटी है, जो माता-पिता और पूरे समाज को एक नई दिशा देने का संदेश देती है।
जब असफलता पर भी हुआ उत्सव
बागलकोट स्थित बसवेश्वर इंग्लिश मीडियम स्कूल के छात्र अभिषेक चोलचागुड्डा को 600 में से मात्र 200 अंक प्राप्त हुए – यानी वे इस साल 10वीं की परीक्षा में फेल हो गए। आमतौर पर ऐसे परिणाम पर बच्चे को फटकार मिलती है, ताने सुनने पड़ते हैं, लेकिन अभिषेक के साथ कुछ अलग हुआ। उनके माता-पिता ने न केवल उनकी असफलता को सहजता से स्वीकार किया, बल्कि बेटे का हौसला बढ़ाने के लिए घर पर केक काटकर उसका मनोबल बढ़ाया।
इस दौरान परिवार ने अभिषेक को यह महसूस कराया कि परीक्षा का परिणाम जीवन का अंतिम सच नहीं है। यह कदम न केवल अभिषेक के लिए भावनात्मक सहारा बना, बल्कि उन तमाम अभिभावकों के लिए एक प्रेरणा बन गया जो बच्चों पर परिणामों का बोझ डालते हैं।
“यह अंत नहीं, एक नई शुरुआत है”
अभिषेक के पिता ने बेहद सादा मगर असरदार शब्दों में कहा – “तुम परीक्षा में असफल हुए हो, जीवन में नहीं। यह कोई हार नहीं, बल्कि एक नई शुरुआत है।” पिता की इस सकारात्मक सोच ने अभिषेक को भीतर तक झकझोर दिया। अभिषेक ने भावुक होकर कहा, “मैं जानता हूं कि मैं इस बार सफल नहीं हो सका, लेकिन मेरे माता-पिता का विश्वास मेरे साथ है। मैं दोबारा परीक्षा दूंगा और इस बार बेहतर करूंगा।”
यह भी पढ़ें : ‘हाउस अरेस्ट’ विवाद के बाद एजाज खान की बढ़ी मुश्किलें, फिल्म में काम…
यह कहानी अब सोशल मीडिया पर तेजी से वायरल हो रही है। लोग इस पर अपनी सराहना और समर्थन जता रहे हैं। कई लोगों ने इस कदम को समय की ज़रूरत बताया है – जब बच्चों की आत्मा पर अंक की मार पड़ रही हो, तब एक माता-पिता का यह समर्थन अमूल्य हो सकता है। अभिषेक और उनके माता-पिता की यह कहानी समाज को यह याद दिलाती है कि असफलता सिर्फ एक पड़ाव है, मंज़िल नहीं। जब अभिभावक बच्चों की कमियों के बावजूद उनका साथ देते हैं, तो बच्चे जीवन की किसी भी चुनौती से लड़ने का हौसला पा लेते हैं। ऐसे उदाहरण समाज को अधिक मानवीय, संवेदनशील और समझदार बनने की ओर ले जाते हैं।