Lokmata Ahilyabai Holkar: जब भी भारत की महान महिलाओं का नाम लिया जाएगा, तो सबसे पहले लोकमाता अहिल्याबाई होलकर का ज़िक्र जरूर होगा। 1767 से 1795 तक मालवा की शासक रहीं अहिल्याबाई का जन्म 31 मई 1725 को महाराष्ट्र के अहमदनगर जिले के छोटे से गांव छौंड़ी में हुआ था। वो किसी राजघराने में पैदा नहीं हुई थीं, लेकिन अपने गुणों और संस्कारों की वजह से एक दिन मालवा की रानी बनीं।
जन्म और प्रारंभिक जीवन
अहिल्याबाई के पिता मंकोजी राव शिंदे गांव के पाटिल थे। उस समय लड़कियों को पढ़ने-लिखने का मौका नहीं मिलता था, लेकिन उनके पिता ने अहिल्याबाई को पढ़ाया। कहा जाता है कि एक दिन मराठा सरदार मल्हार राव होलकर गांव से गुजर रहे थे। उन्होंने अहिल्या को भजन गाते सुना और उनके संस्कारों से इतने प्रभावित हुए कि अपने बेटे खांडेराव से उनकी शादी करा दी।
महारानी बनने तक का सफर
1754 में उनके पति खांडेराव कुम्भेर के युद्ध में शहीद हो गए। इसके 12 साल बाद उनके ससुर मल्हार राव होलकर का निधन हुआ। एक साल के भीतर ही अहिल्याबाई ने मालवा की गद्दी संभाली। उन्होंने न सिर्फ शासन में कुशलता दिखाई, बल्कि युद्ध के मैदान में भी सेना का नेतृत्व किया। उन्होंने तुकोजीराव होलकर को अपनी सेना का सेनापति बनाया।
धर्म और जनसेवा में योगदान
अहिल्याबाई का शासनकाल सामाजिक और धार्मिक कार्यों के लिए भी जाना जाता है। उन्होंने काशी, द्वारका, उज्जैन, नासिक, बैजनाथ जैसे प्रमुख तीर्थस्थलों पर धर्मशालाएं बनवाईं। उजड़े मंदिरों का पुनर्निर्माण कराया, जैसे सोमनाथ मंदिर। महेश्वर और इंदौर में कई मंदिर, घाट, बावड़ियां और प्याऊ बनवाए। भूखों के लिए अन्न क्षेत्र भी खोले।
विशेष कार्यक्रम और सम्मान
मध्य प्रदेश की राजधानी भोपाल में 31 मई को उनकी 300वीं जयंती बड़े आयोजन के साथ मनाई जा रही है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी इस अवसर पर शामिल होंगे। वे 300 रुपये का विशेष सिक्का और एक स्मारक डाक टिकट जारी करेंगे, जिस पर अहिल्याबाई की तस्वीर होगी। साथ ही एक महिला कलाकार को “राष्ट्रीय देवी अहिल्याबाई पुरस्कार” से सम्मानित किया जाएगा।