नई दिल्ली ऑनलाइन डेस्क। भारत में हर एक मौके और खास तिथि पर अलग तरीके से पूजा-पाठ किया जाता है। पंचांग के अनुसार साल 2025 में गणेश चतुर्थी 27 अगस्त को मनाई जा रही है। लिहाजा देशभर में भगवान गणेश के मंदिरो में पूजा अर्चना हो रही है। मंदिरों को सजाया गया है। गांव-गांव, शहर-शहर बप्पा को भक्तों ने पंडालों में विराजमान कराया है। घरों पर भी लंबोदन की जय-जयकार हो रही है। ऐसे में हम आपको एक ऐसे मंदिर के बारे में बताने जा रहे हैं, जहां पर खुद भगवान गणेश प्रकट हुए थे और भक्त को दर्शन दिए थे।
भगवान का ये एतिहासिक मंदिर राजस्थान के पाली शहर में स्थित है। इस मंदिर को भगवान गणेश के सबसे प्रिय भक्त बल्लाल के नाम से पहचाना जाता है। ऐसा कहा जाता है कि इस मंदिर में भगवान गणेश के प्रसिद्ध भक्त ने इतनी कठोर तपस्या कि जिससे भगवान गणेश खुद को रोक नही पाए और इसी मंदिर में उनको न केवल दर्शन दिए बल्कि उसके बाद से भगवान गणेश के साथ एक नाम ओर जुड गया है.। भक्त भगवान गणेश के इस प्राचीन मंदिर को बल्लालेश्वर गणपति मंदिर के नाम से पुकारते हैं। गणेश चर्तुथी पर हरदिन हजारों भक्त बप्पा के दर पर मत्था टेकते है।
भगवान गणेश का ये मंदिर रेलवे स्टेशन मार्ग पर लोर्डिया तालाब के पास, नागा बाबा बगेची में स्थित है। यह स्थान भगवान गणेश के एक प्रसिद्ध भक्त बल्लाल के नाम से जाना जाता है। माना जाता है कि भगवान गणेश यहां स्वयं अपने भक्त की कठोर तपस्या से प्रसन्न होकर प्रकट हुए थे। ऐसे में अब जब गणेश चतुर्थी का पर्व है तो इस मंदिर को आकर्षक सजावट की गई है। बल्लालेश्वर गणपति मंदिर का उल्लेख पुराणों में भी मिलता है। कहा जाता है कि यह मंदिर सिंध प्रांत जाने वाले मार्ग पर था, जो प्राचीन काल में पाली शहर से गुजरता था। इसी कारण से इस मंदिर को सिद्ध पीठ के रूप में मान्यता प्राप्त है।
शहर स्थित वल्लभ गणेश सिद्ध पीठ के साथ सभी गणेश मंदिरों को आकर्षक रूप से सजाया गया है। मंदिरों में फूलों से सजावट की गई है। गणेश चतुर्थी पर महंत नारायणगिरी के सान्निध्य में मंगला आरती हुई। सुबह आठ से सवा 12 बजे तक अभिषेक, हवन पूजन, ध्वजारोहण होगा। सुबह 11 से दोपहर तीन बजे तक गणेश महिला मंडल सत्संग करेगा। उपाध्यक्ष महंत सुरेश गिरी ने बताया कि शाम को महाआरती और प्रसाद का वितरण किया जाएगा। सुरक्षा को लेकर 32 सीसीटीवी कैमरे लगाएं गए हैं। नागा बाबा बगीची में नागा साधु महाआरती करेंगे।
बल्लाल नामक गणेश भक्त ने कठोर तपस्या और भक्ति से भगवान गणेश को प्रसन्न किया था। बल्लाल की भक्ति के कारण भगवान गणेश यहां स्वयं प्रकट हुए और उन्हें बल्लालेश्वर नाम से पूजा जाने लगा। यह पौराणिक कथा आज भी श्रद्धालुओं को प्रेरित करती है, और मंदिर की विशेष मान्यता इसी से जुड़ी हुई है। वर्ष 2017 में मंदिर का पुनर्निर्माण किया गया था। पुराने मंदिर के पास ही नया मंदिर बनाया गया, जिसमें शिव परिवार और मां अंबे की मूर्तियां भी स्थापित की गईं। नए मंदिर में भी पुरानी मूर्ति जैसी ही प्रतिमा विराजमान है, और इसे धार्मिक और सांस्कृतिक दृष्टि से महत्वपूर्ण माना जाता है।
मंदिर में विराजमान गणेश जी की मूर्ति पर सिंदूर का लेप है, और उनकी कमर में नाग लिपटा हुआ है। मूर्ति के मस्तक पर पांच नागों का मुकुट है, जो इसे अन्य गणेश प्रतिमाओं से अलग बनाता है। यह मूर्ति यहां पर सच्ची भक्ति के प्रतीक के रूप में स्थापित है। मंदिर के निर्माण के समय पुरानी प्रतिमा को बिना हटाए ही कार्य किया गया। मंदिर के पुजारी बताते हैं भगवान बल्लालेश्वर के दर पर आने वाले हर भक्त की मन्नत पूरी होती है। भगवान बल्लालेश्वर अपने भक्तों की मनोकामना पूर्ण करते हैं। देश के कोने-कोन से भक्त गणेश चर्तुथी के बल्लालेश्वर मंदिर आते हैं।