Rabri Devi residence dispute: पटना के 10 सर्कुलर रोड स्थित पूर्व मुख्यमंत्री राबड़ी देवी के सरकारी आवास को खाली करने का आदेश सामने आने के बाद बिहार की राजनीति अचानक गरमा गई है। राजनीतिक गलियारों में यह फैसला बड़े विवाद का कारण बन गया है। राष्ट्रीय जनता दल ने साफ शब्दों में कह दिया है कि पार्टी यह सरकारी आवास खाली नहीं करेगी। राजद के इस रुख को सरकार के प्रति सीधी चुनौती माना जा रहा है, जिससे राज्य की सियासी बहस और तेज हो गई है।
गिरिराज सिंह की प्रतिक्रिया
राजद के निर्णय पर प्रतिक्रिया देते हुए केंद्रीय मंत्री गिरिराज सिंह ने कहा कि सरकारी बंगले किसी व्यक्ति की निजी संपत्ति नहीं होते, बल्कि यह संवैधानिक पदों पर बैठे लोगों जैसे मुख्यमंत्री, उप मुख्यमंत्री, मंत्री, विधायक, विधान परिषद सदस्य और नेता विपक्ष को कामकाज के आधार पर दिए जाते हैं। उन्होंने स्पष्ट कहा कि जब सरकार की ओर से निर्देश आ चुका है, ऐसे में जिद पर अड़े रहकर बंगला न खाली करना उचित नहीं माना जा सकता। गिरिराज सिंह ने इसे नियमों के विरुद्ध बताया और कहा कि पद छोड़ने के बाद आवास पर कब्जा बनाए रखना परंपरा के खिलाफ है।
इसी दौरान मीडिया ने उनसे पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी के उस बयान पर भी प्रतिक्रिया मांगी जिसमें उन्होंने चेतावनी दी थी कि यदि भाजपा बंगाल को निशाना बनाती है, तो वह “देश को हिला देंगी।” इस पर गिरिराज सिंह ने तीखा हमला बोलते हुए कहा कि ममता बनर्जी का यह बयान देश को बांटने वाला है और इससे समाज में अनावश्यक तनाव पैदा होता है।
उन्होंने आरोप लगाया कि ममता बनर्जी राज्य में धार्मिक आधार पर राजनीति कर रही हैं।
गिरिराज सिंह ने आगे कहा कि बंगाल में वोटर लिस्ट को सही करने के लिए SIR व्यवस्था लागू की जाएगी और केंद्र सरकार CAA को भी लागू करेगी।
वहीं, उत्तर प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव के उस बयान पर—जिसमें उन्होंने कहा था कि 2027 के बाद भाजपा नेताओं को “डिटेंशन सेंटर” जाना पड़ेगा—गिरिराज सिंह ने व्यंग्यात्मक टिप्पणी की। उन्होंने इस बयान को पूरी तरह अवास्तविक और हास्यास्पद करार दिया। उन्होंने कहा कि अखिलेश यादव ऐसे बयान सिर्फ सुर्खियां पाने के लिए दे रहे हैं, जिनका वास्तविकता से कोई संबंध नहीं है।
बिहार से शुरू हुआ यह आवास विवाद अब बंगाल और यूपी की राजनीतिक प्रतिक्रियाओं के साथ राष्ट्रीय स्तर पर चर्चा का विषय बन गया है। राबड़ी देवी के बंगला विवाद ने जहां राज्य सरकार और विपक्ष के बीच तनाव बढ़ाया है, वहीं दूसरे राज्यों के नेताओं की टिप्पणियों ने इस मुद्दे को और व्यापक बना दिया है।
फिलहाल पूरे देश में राजनीतिक बयानबाज़ी का दौर तेज हो गया है और आने वाले दिनों में इस विवाद का असर और बढ़ने की संभावना है।
