Rental Agreement Mistakes : रेंट पर घर लेते समय या किराए पर देते वक्त अक्सर लोग कुछ जरूरी बातों को नजरअंदाज कर देते हैं, जिससे बाद में विवाद और नुकसान उठाना पड़ सकता है।
जानिए रेंटल एग्रीमेंट से जुड़ी जरूरी बातें। अगर आप भी किसी मकान को किराए पर लेने या देने जा रहे हैं, तो सबसे पहले रेंट एग्रीमेंट यानी किरायानामा तैयार करवाना बहुत जरूरी है। कई बार लोग जल्दीबाज़ी में बिना लिखित एग्रीमेंट के ही सौदा कर लेते हैं, जो बाद में कानूनी और निजी परेशानियों की वजह बन सकता है।
रेंट एग्रीमेंट न केवल किरायेदार और मकान मालिक के हक और जिम्मेदारियों को तय करता है, बल्कि भविष्य में किसी भी तरह की गलतफहमी से भी बचाता है। इसमें किराया, मरम्मत, रखरखाव, भुगतान की तारीख और दूसरी कई अहम बातें लिखी होती हैं।
आइए जानते हैं कि रेंटल एग्रीमेंट साइन करते समय कौन कौन सी बातों का ध्यान रखना जरूरी है ताकि बाद में पछताना न पड़े।
किरायेदार की सही जांच करें
अगर आप मकान मालिक हैं, तो किरायेदार की बैकग्राउंड चेक जरूर करें। उसकी नौकरी, स्थायी पता और पहचान पत्र जैसे दस्तावेज जरूर देखें। गलत किरायेदार लेने से भविष्य में बड़ी परेशानी हो सकती है।
सोच-समझकर किराया तय करें
किराया तय करते वक्त सिर्फ बाजार रेट नहीं, बल्कि घर की स्थिति, सुविधाएं और रखरखाव की जिम्मेदारी भी ध्यान में रखें। किरायेदार से साफ बात करें कि कौन क्या खर्च संभालेगा।
किरायेदारी को गंभीरता से लें
किरायेदारी कोई शौक नहीं, ये एक प्रोफेशनल एग्रीमेंट है। इसे सही तरीके से कानूनी दस्तावेज की तरह बनाएँ और तब ही किरायेदार को घर सौंपें।
किरायेदारी की अवधि तय करें
कानूनी रूप से अधिकतर रेंटल एग्रीमेंट 11 महीने के लिए होता है। आप चाहें तो इसे आगे भी बढ़ा सकते हैं, लेकिन समय पहले से तय होना जरूरी है।
नोटिस और समाप्ति की शर्तें
अगर कोई पक्ष एग्रीमेंट की शर्तें नहीं मानता है, तो दूसरे पक्ष को एक महीने का नोटिस देकर समझौता खत्म करने का अधिकार होता है। यह बात रेंट एग्रीमेंट में जरूर लिखवाएं।
लॉक-इन पीरियड पर बात करें
Agreement में लॉक-इन अवधि लिखवाना जरूरी है। इस दौरान अगर किरायेदार मकान खाली करता है या मकान मालिक किराए पर देने से मना करता है, तो पेनल्टी का प्रावधान होना चाहिए।
भुगतान की तारीख तय करें
किराया किस तारीख को देना है, यह बात साफ तौर पर तय करें। आमतौर पर हर महीने की 1 से 5 तारीख के बीच भुगतान होता है।
डिफॉल्ट क्लॉज शामिल करें
Agreement में यह भी लिखवाएं कि अगर कोई पक्ष तय शर्तें नहीं मानता है, तो क्या जुर्माना लगेगा या क्या कार्रवाई की जाएगी। इससे किसी भी अनबन या कानूनी विवाद से बचा जा सकता है।