World Cancer Day 2025: कैंसर एक ऐसा मर्ज है, जिसके कारण हरदिन लगभग 26,300 लोगों काल के गाल में समा रहे हैं। साल 2023 के आंकड़ों के अनुसार दुनियाभर में कैंसर से लगभग 10 मिलियन (96 लाख से एक करोड़) लोगों की मौत हुई है। कैंसर को मात देने के लिए साइंटिस्ट, डॉक्टर्स की फौज दिन रात मेहनत कर रही है पर इस जानलेवा मर्ज का अभी तक दुनिया में इलाज खोज नहीं पाए। ऐसे में कैंसर के बढ़ते जोखिमों के बारे में जागरूकता बढ़ाना और इसकी रोकथाम, पहचान और इलाज को प्रोत्साहित करने के उद्देश्य से हर साल 4 फरवरी विश्व कैंसर दिवस मनाया जाता है। कैंसर दिवस पर बीमारी के बारे में डॉक्टर्स जानकारी देते हैं और बचाव के उपाय बताते हैं।
दुनिया का पहला कैंसर मरीज
कैंसर से पीड़ित किसी व्यक्ति का सबसे पहला वर्णन ईसा पूर्व चौथी शताब्दी में मिलता है। ब्लैक सी पर स्थित हेराक्लिया शहर के तानाशाह सैटायरस को कमर और अंडकोष के बीच कैंसर हो गया था। तानाशाह के जिस हिस्से में कैंसा था, उसकी ऑपरेशन भी नहीं हो सकता था। इतना ही दर्द कम करने के लिए उस वक्त कोई दवा भी नहीं थे। आखिरकार, कैंसर ने 65 साल की उम्र में सैटायरस की जान ले ली। ये बात लगभग 2400 वर्ष पहले की है। दावा किया जाता है कि तानाशाह सैटायरस ही वह पहला इंसान था, जिसे कैंसर हुआ और इसी बीमारी के कारण उसकी मौत भी हुई।
दुनिया की पहली महिला कैंसर मरीज
पांचवीं शताब्दी ईसा पूर्व के अंत या चौथी शताब्दी के प्रारंभ में लिखे गए एक पाठ, जिसे महिलाओं के रोग कहा जाता है, में बताया गया है कि ब्रेस्ट कैंसर कैसे विकसित होता है। इसमें बताया गया है कि कैंसर होने पर कठोर गांठें बनने लगती हैं, जिनमें छिपे हुए कैंसर विकसित होते हैं, मरीजों के स्तनों से लेकर उनके गले और कंधे तक दर्द होता है, ऐसे रोगियों का पूरा शरीर पतला हो जाता है। सांस लेना कम हो जाता है। गंध महसूस नहीं होती है। उसी सदी में यूनानी शहर अब्देरा की एक महिला की छाती में कैंसर हुआ और उसकी मौत हो गई थी। हालांकि डॉक्टर्स ने गले के कैंसर से पीड़ित एक व्यक्ति के गले के ट्यूमर को जला दिया, जिससे उसकी जान बच गई थी।
ऐसे पड़ा कैंसर नाम
कैंसर शब्द उसी युग से आया है। पांचवीं शताब्दी ईसा पूर्व के अंत और चौथी शताब्दी की शुरुआत में, डॉक्टर घातक ट्यूमर का वर्णन करने के लिए कार्किनो-केकड़े के लिए प्राचीन ग्रीक शब्द-शब्द का उपयोग करते थे। बाद में, जब लैटिन भाषी डॉक्टरों ने उसी बीमारी का वर्णन किया, तो उन्होंने केकड़े के लिए लैटिन शब्द का इस्तेमाल किया। फिर इस बीमारी का नाम कैंसर पड़ गया। एक व्याख्या यह थी कि केकड़ा एक आक्रामक जानवर है, जैसे कैंसर एक आक्रामक बीमारी हो सकती है; दूसरी व्याख्या यह थी कि केकड़ा किसी व्यक्ति के शरीर के एक हिस्से को अपने पंजों से पकड़ सकता है और उसे निकालना मुश्किल हो सकता है। जैसे कैंसर विकसित होने के बाद उसे निकालना मुश्किल हो सकता है। कुछ को लगता है कि यह नाम कैंसर के स्वरूप के कारण दिया गया था।
जानिए पहले कैसे होता था कैंसर कर इलाज
2400 वर्ष पहले कैंसर का इलाल पौधों के जरिए किया जाता था। इन दवाइों में ककड़ी, नार्सिसस बल्ब, कैस्टर बीन, बिटर वेच, पत्तागोभी शामिल थे। फिर केकड़े की राख से भी कैंसर का इलाज किया गया। हालांकि ये दवाएं ज्यादा कारगर नहीं हुई। उस वक्त आमतौर पर सर्जरी से परहेज किया जाता था। क्योंकि मरीजों की खून की कमी से मृत्यु हो जाती थी। सबसे सफल ऑपरेशन स्तन के सिरे के कैंसर के थे। एक चिकित्सक लियोनिडस, जो दूसरी और तीसरी शताब्दी ईस्वी में रहते थे, ने जलाकर कैंसर से इलाज की विधि का विवरण दिया है। उन्होंने दावा किया था कि कैंसर को जलाकर उन्होंने मरीज की जान बचाई थी। इसे पहले ऑपरेशन कहा जाता है।
बन रही कैंसर की वैक्सीन
2400 सौ से लाइलाज बीमारी कैंसर को लेकर एक खबर राहत बनकर सामने आई है। ब्रिटेन के वैज्ञानिक एक ऐसी वैक्सीन बनाने की दिशा में काम कर रहे हैं। यूनिवर्सिटी ऑफ ऑक्सफोर्ड के वैज्ञानिक, फार्मास्युटिकल दिग्गज कंपनी जीएसके के साथ मिलकर एक ऐसी वैक्सीन बनाने की दिशा में काम कर रहे हैं, जो शरीर में ’अज्ञात कैंसर’ सेल्स का पता लगा सकती है। इतना ही नहीं दावा किया जा रहा है कि ये टीका बीमारी को विकसित होने से 20 साल पहले ही रोक सकता है। वैज्ञानिकों का कहना है कि ये वैक्सीन प्री-कैंसर स्टेज में ही कैंसर कोशिकाओं को लक्षित करके उन्हें खत्म कर सकती है।
ऐसे पनपता है कैंसर
इस वैक्सीन को लेकर यूनिवर्सिटी ऑफ ऑक्सफोर्ड में ऑन्कोलॉजी की प्रोफेसर सारा ब्लागडेन ने एक स्थानीय रेडियो से बातचीत में जानकारियां साझा की हैं। प्रोफेसर सारा कहती हैं, हम सभी हमेशा यही सोचते हैं कि शरीर में कैंसर के विकसित होने में लगभग एक या दो साल लगता है, लेकिन वास्तव में अब कई अध्ययन पुष्टि करते हैं कि कैंसर को विकसित होने में 20 साल तक का समय लग सकता है, कभी-कभी इससे भी अधिक। ऐसा इसलिए है क्योंकि एक सामान्य कोशिका को कैंसर कोशिका बनने में बहुत समय लगता है।
ऐसे खत्म करेंगे कैंसर
प्रोफेसर सारा ब्लागडेन बताती हैं, हम जानते हैं कि इस समय काल में अधिकांश कैंसर अदृश्य होते हैं, कैंसर सेल्स जब इस अवस्था से गुजर रहे होते हैं तो इसे प्री-कैंसर स्टेज कहा जाता है। इसलिए इस वैक्सीन का उद्देश्य कैंसर के विरुद्ध टीकाकरण करना नहीं है, बल्कि वास्तव में प्री-कैंसर स्टेज में ही कैंसर का पता लगाना और उसे खत्म करना है। प्रोफेसर ब्लैगडेन कहती हैं ’जीएसके-ऑक्सफोर्ड कैंसर इम्यूनो-प्रिवेंशन प्रोग्राम’ को कई तकनीकी और वैज्ञानिक प्रगति के आधार पर लॉन्च किया गया है, जिसने प्री-कैंसर के खिलाफ वैक्सीन की संभावना को आशा दी है।
वैक्सीन से रोक सकते कैंसर
प्रोफेसर सारा ब्लागडेन कहती हैं, हम भाग्यशाली हैं क्योंकि हमें बहुत सारी तकनीकी सफलताएं मिली हैं, जिसका मतलब है कि अब हम आमतौर पर पता न लगने वाली चीजों का भी पता लगाने में सक्षम हो रहे हैं। अब तक हम यह पता लगाने में सक्षम हो गए हैं कि कैंसर की ओर बढ़ने वाली कोशिकाओं में क्या विशेषताएं हैं। इसलिए हम उस दिशा में विशेष रूप से लक्षित एक वैक्सीन डिजाइन करके इसे रोक सकते हैं। स्थानीय मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार वैक्सीन निर्माण के इस प्रोग्राम के लिए जीएसके तीन वर्षों में करीब 538 करोड़ रुपये का निवेश करेगा।