नई दिल्ली ऑनलाइन डेस्क। हनुमान जी आज भी इस पृथ्वी पर जीवित हैं और भ्रमण करते हैं क्योंकि उन्हें चिरंजीवी होने का वरदान प्राप्त है। उन्हें चिरंजीवी होने का वरदान माता सीता और प्रभु श्रीराम दोनों ने ही दिया है। उनकी कोई आयु सीमा नहीं है। ज्योतिषाचार्य और महान विद्धान पंडित बलराम तिवारी बताते हैं कि हनुमान जी का जन्म 58 हजार 112 वर्ष पहले त्रेतायुग के अन्तिम चरण में चैत्र पूर्णिमा को मंगलवार के दिन हुआ था। उस वक्त चित्रा नक्षत्र व मेष लग्न के योग थे। हनुमान जी की जन्म सुबह 6.03 बजे भारत के ं आंजन नाम स्थित पहाड़ी गांव की एक गुफा में हुआ था।
भक्ति, शक्ति और भक्ति के अवतार
पंडित बलराम तिवारी बताते हैं, भगवान हनुमान की आयु और जन्म के आसपास की मान्यताएं और कहानियां हिंदू पौराणिक कथाओं में गहराई से निहित हैं। भगवान हनुमान, भक्ति, शक्ति और भक्ति के अवतार के रूप में, भक्तों को उनके आध्यात्मिक पथ पर प्रेरित और मार्गदर्शन करते रहते हैं। वहीं धार्मिक ग्रंथों के अनुसार, बजरंगबली बहुत बलवान और निडर है। उनके समक्ष कोई भी शक्ति टिक नहीं पाती है। इसके अलावा हनुमान जी जल्द प्रसन्न होने वाले देवता हैं, उनकी कृपा से कार्यों में आ रही बाधाएं जल्द दूर होने लगती है।
त्रेतायुग में हुआ था हनुमान जी का जन्म
धार्मिक कथा के अनुसार हनुमान जी भगवान शिव का 11वां रुद्र अवतार है। उनके जन्म को लेकर कहा जाता है कि, जब विष्णु जी ने धर्म की स्थापना के लिए इस धरती पर प्रभु श्री राम के रूप में जन्म लिया, तब भगवान शिव ने उनकी मदद के लिए हनुमान जी के रूप में अवतार लिया था। दूसरी ओर राजा केसरी अपनी पत्नी अंजना के साथ तपस्या कर रहे थे। इस तपस्या का दृश्य देख भगवान शिव प्रसन्न हो उठें और उन दोनों से मनचाहा वर मांगने को कहा। शिव जी की बात से माता अंजना खुश हो गई और उनसे कहा कि मुझे एक ऐसा पुत्र प्राप्त हो, जो बल में रुद्र की तरह बलि, गति में वायु की गतिमान और बुद्धि में गणपति के समान तेजस्वी हो।
फिर हनुमान जी का जन्म हुआ
माता अंजना की ये बात सुनकर शिव जी ने अपनी रौद्र शक्ति के अंश को पवन देव के रूप में यज्ञ कुंड में अर्पित कर दिया। बाद में यही शक्ति माता अंजना के गर्भ में प्रविष्ट हुई। फिर हनुमान जी का जन्म हुआ था। हनुमान जी भगवान श्रीराम के भक्त थे। जब रावण मां सीता का हरण कर लेता है तब भगवान श्रीराम का हनुमान जी से मिलन होता है। हनुमान जी समुद्र को पार कर लंका जाते हैं और मां सीता की खोजकर वापस आते हैं। भगवान श्रीराम रावण का वध करते हैं। जब भगवान पत्नी सीता के साथ अयोध्या आते हैं तो उनके साथ हनुमान जी भी होते हैं। मां सीता और प्रभु श्रीराम हनुमान जी को चिरंजीवी होने का वरदान देते हैं।
हनुमान जी मातंग ऋृषि के शिष्य
कथाओं का बताया जाता है कि हनुमान जी अमर हैं। जब द्धापर युग में पांडवों और कौरवों के बीच युद्ध हुआ तब हनुमान जी ने भीम को दर्शन दिए थे। ऐसा दावा ये भी किया जाता है हनुमानजी हर 41 साल के बाद एक आदिवासी समूह से मिलने आते हैं। सेतु एशिया नाम की एक वेबसाइट ने दावा किया है कि श्रीलंका के जंगलों में एक आदिवासी समूह से हनुमानजी प्रत्येक 41 साल बाद मिलने आते हैं। हनुमान जी मातंग ऋृषि के शिष्य थे। कहते हैं कि मातंग ऋृषि के आश्रम में ही हनुमान जी का जन्म हुआ था। भारत के दक्षिणी राज्यों में मातंग समाज के लोग आज भी रहते है। इनके पूर्वज मातंग ऋृषि ही थे।
जंगलों में रहता है कबीलाई समूह
वेबसाइट के अनुसार श्रीलंका के जंगलों में ऐसा कबीलाई समूह रहता है जो पूरी तरह से बाहरी दुनिया से कटा हुआ है। यह आदिवासी समूह श्रीलंका के पिदूरु पर्वत के जंगलों में रहता है। सेतु वेबसाइट का दावा है कि 27 मई 2014 को हनुमानजी इन आदिवासी समूह के साथ अंतिम दिन बिताया था। अब इसके बाद हनुमानजी 2055 में फिर से मिलने आएंगे। जानकार बताते हैं कि भगवान राम के मृत्यु के बाद हनुमान जी अयोध्या से लौटकर दक्षिण भारत के जंगलों में रहने लगे। इसके बाद वे श्रीलंका चले गए। उस समय हनुमान जी जब तक श्रीलंका के जंगलों में रहे, इस आदिवासी समूह के लोगों ने उनकी सेवा की। हनुमान जी ने इस कबीले के लोगों को ब्रह्मज्ञान का बोध कराया। उन्होंने वादा किया कि वे हर 41 साल बाद इस कबीले की पीढियों को ब्रह्मज्ञान देने आएंगे।