नई दिल्ली ऑनलाइन डेस्क। पाकिस्तान के हालात इनदिनों बहुत खराब चल रहे हैं। पड़ोसी मुल्क के तीन सुबे सिंध, बलूचिस्तान और खैबर पख्तूनख्वा आजादी की मांग को लेकर धू-धू कर जल रहे हैं। सबसे भीषण आग बलूचिस्तान में लगी हुई है। यहां हरदिन बीएलए के लड़ाके पाक आर्मी का शिकार कर रहे हैं। अब हालात ऐसे बन गए हैं कि आर्मी के जवान बीएलए के लड़ाकों को देकर जंग के मैदान से पीठ दिखाकर भाग रहे हैं। इस जंग की शुरूआत 1974 के आसपास हो गई थी। जब दो बलूच भाईयों ने फिदायिन बनकर खुद को उड़ा दिया था। बीएलए के उदय के बाद मजीज फिदायिन ब्रिगेड का जन्म हुआ, जो दो भाईयों के नाम से बनी।
फिदायीन दस्ता मजीद ब्रिगेड का जन्म
बलूचिस्तान में सीनियर और जुनियर मजीद भाईयों की कहानी हर घर में आज भी सुनाई देती है। दोनों ही बलोच राष्ट्रवाद की आग में तपते हैं। दोनों पाक से अलग होकर आजाद मुल्क का सपना देखते हैं। बहुत छोटी उम्र में सीनियर मजीद जंग-ए-आजादी का बिगुल फूंक देते हैं और एक दिन ऐसा अवसर भी आया, जब उन्होंने खुद को फिदायिन बनाकर बम से उड़ा लिया। कुछ ऐसा ही कार्य जूनियर मजीद ने भी किया। उन्होंने भी पाक सरकार व वहां की सेना के खिलाफ बिगुल फूंका और सुसाइड बम बनकर खुद को विस्फोट से उड़ा लिया। इन्हीं दोनों भाईयों की कुर्बानी के बाद खूंखार फिदायीन दस्ता मजीद ब्रिगेड का जन्म होता है। ये वही ब्रिगेड है जिसने क्वेटा से पेशावर जा रही जाफर एक्सप्रेस को हाईजैक कर लिया था।
बीएलए नाम के संगठन की बुनियाद
बात 2 अगस्त 1974 की है। जब पाकिस्तान के तत्कालीन प्रधानमंत्री जुल्फीकार अली भुट्टो एक कार्यक्रम में शामिल होने के लिए क्वेटा आए हुए थे। जुल्फीकार अली भुट्टो के आने की खबर क्वेटा के रहने वाले 20 वर्ष के युवक मजीद को हुई। मजीद हरहाल में जुल्फीकार अली भुट्टो को मारना चाहता था। ऐसे में उसने थैले में बम को रखा और एक पेड़ पर चढ़कर बैठ गया। जुल्फीकार अली भुट्टो की कार जैसे ही पेड़ के पास से गुजरी, तभी मजीद ने बम को फेंक दिया। निशाना सटीक नहीं होने के चलते पाक पीएम बच गए और मजीद मारा गया। फिर जुनियर मजीद को जन्म होता है और वह भी अलग देश की मांग को लेकर फिदायिन हमले में खुद को उड़ा लेता है। फिर क्या था पूरे बलूचिस्तान में विद्रोह की ज्वाला फूट पड़़ती है और तभी बीएलए नाम के संगठन की बुनियाद पड़ती है।
तब सीनियर मजीद का पाक सरकार के खिलाफ हल्लाबोल
गौरतलब है कि बलूचिस्तान तो 1947 के बाद से ही एक अलग देश के रूप में अपना वजूद रखना चाहता था। लेकिन तब मुहम्मद अली जिन्ना ने ताकत के दम पर इस सूबे का पाकिस्तान में विलय करा लिया। बलूचिस्तान की नेशनल आवामी पार्टी अब बलोचों के हक और हुकूक के लिए लड़ती थी। पार्टी चाहती थी कि बलोचिस्तान को अधिक क्षेत्रीय स्वायत्तता मिले। 1971 में बांग्लादेश के अलग होने से उनकी मांग ने और भी रफ्तार पकड़ ली। उधर भुट्टो 1971 में पाकिस्तान की हार और बांग्लादेश बनने से चिढ़े थे. वे कुछ भी रियायत देने को तैयार नहीं थे। उन्होंने हमेशा बलोच प्रांत की सरकार को कमजोर करने की कोशिश की और आखिरकार उन्होंने नेशनल आवामी पार्टी की सरकार को ही बर्खास्त कर दिया। तब सीनियर मजीद पाक सरकार के खिलाफ हल्लाबोल देता था।
नाम रखा मजीद जूनियर
मजीद को खबर मिलती है कि पाक पीएम क्वेटा आने वाले हैं। ऐसे में उसने उन्हें मारने का प्लान बनाया। मजीद जानता था कि इस ऑपरेशन का मतलब ही उसकी मौत है, लेकिन वो तनिक भी भयभीत नहीं था। हाथ में हैंड ग्रेनेड लेकर वह जुल्फीकार अली भुट्टो के काफिले का इंतजार कर रहा था। उसे हैंड ग्रेनेड फेंकना था। बीबीसी उर्दू ने अपनी एक रिपोर्ट में कहा है कि इस ऑपरेशन में मजीद की जान चली गई। उसका मिशन कामयाब नहीं हो सका। लेकिन उसने बलिदानियों के लिए राहें खोल दी थी। बलोच मूवमेंट में उसकी कहानियां प्रेरणा बन गई। मजीद सीनियर की मौत के दो साल बाद उसी के घर में एक और लड़का पैदा हुआ। माता-पिता ने उसका नाम रखा मजीद जूनियर रखा। मजीद जूनियर की परवरिश भी उसी माहौल में हुई।
मजीद जूनियर की मौत बलोच मूवमेंट की बड़ी घटना
एक दिन उसकी भी कुर्बानी का वक्त आ गया। तारीख थी 17 मार्च 2010। अमेरिकी थिंक टैंक द जेम्सटाउन फाउंडेशन के अनुसार क्वेटा के वाहदत कॉलोनी के एक मकान को पाकिस्तानी सेना ने घेर लिया। कहा जाता है कि इस मकान में कई विद्रोही छिपे हुए थे। चारों ओर से घिरा देख मजीद जूनियर हथियार लेकर पाक सैनिकों से भिड़ पड़ा, उसे पता था कि उसकी मौत तय है, लेकिन अपने साथियों को पाकिस्तानी सैनिकों के चंगुल से निकलने का समय देने के लिए उसने लड़ाई जारी रखी। आखिरकार मजीद जूनियर भी मारा गया। मजीद जूनियर की मौत बलोच मूवमेंट की बड़ी घटना थी। जब बलोचियों को पता चला कि मजीद सीनियर-जूनियर भाई थे तो वे गम-गुस्से से उबल पड़े। मजीद भाइयों को बलोच लोक कहानियों में एक अलग दर्जा हासिल हुआ।
फिर वजूद में आया मजीद फिदायीन ब्रिगेड
2011 में तत्कलीन बलोच नेता असलम बलोच ने बलोच मूवमेंट को आक्रामक और धार देने के लिए एक फिदायीन यानी आत्मघाती दस्ता बनाने के लिए सोचा तो उनके सामने इस दस्ते के लिए जो नाम आया वो था मजीद। फिर वजूद में आया मजीद फिदायीन ब्रिगेड। इसे बाद से ये यूनिट बलूचिस्तान लिबरेशन आर्मी (बीएलए) की शाखा के रूप में काम करता है। जैसा कि नाम से ही पता चलता है मजीद फिदायीन ब्रिगेड का सदस्य बनने का मतलब ही है मौत को आलिंगन। ये दस्ता पाकिस्तान के सैन्य और बिजनेस प्रतिष्ठानों पर आत्मघाती हमले करता है। मजीद फिदायीन ब्रिगेड बलूचिस्तान के संसाधनों, खासकर प्राकृतिक गैस और खनिजों के कथित शोषण के खिलाफ लड़ता है। इनका मानना है कि पाकिस्तानी सरकार और विशेष रूप से पंजाबी अभिजात वर्ग बलूचिस्तान के संसाधनों का लाभ उठा रहे हैं, जबकि स्थानीय बलूच आबादी को इसका फायदा नहीं मिल रहा।
इस्लामाबाद की नींद हराम कर दी
मजीद फिदायीन ब्रिगेड ने वजूद में आने के साथ ही ताबड़तोड़ हमले कर इस्लामाबाद की नींद हराम कर दी। मजीद फिदायीन ब्रिगेड ने पहला हमला 2011 में किया और पूर्व मंत्री नसीर मंगल की जान ले ली। इसी ब्रिगेड ने कराची में चीनी दूतावास पर नवंबर 2018 में हमला किया था। मई 2019 में मजीद फियादीन ब्रिगेड ने ग्वादर में स्थित पर्ल कॉन्टिनेंटल (पीसी) होटल पर हमला किया गया, जो चीन-पाकिस्तान आर्थिक गलियारे का केंद्र है। इस हमले में पांच लोग मारे गए, जबकि तीन हमलावर भी मारे गए। इसके बाद मजीद ब्रिगेड ने कराची यूनिवर्सिटी में स्थित कन्फ्यूशियस इंस्टिट्यूट पर आत्मघाती हमला किया। अमेरिकी थिंक टैंक द जेम्सटाउन फाउंडेशन लिखता है कि मजीद ब्रिगेड की फंडिंग विदेशों से होती है। विदेशों में रह रहे प्रवासी बलोच इस आंदोलन को मुख्य रूप से पैसा देते हैं।
उच्च श्रेणी के हथियार
मजीद फिदायीन ब्रिगेड अच्छी तरह से सुसज्जित है और उसके पास कई उच्च श्रेणी के हथियार हैं जिनका इस्तेमाल ऑपरेशन के दौरान किया जाता है। इन हथियारों में इम्प्रोवाइज्ड एक्सप्लोसिव डिवाइस, एंटी-पर्सनल और एंटी-टैंक माइंस, ग्रेनेड, आरपीजी और कई तरह के ऑटोमेटिक हथियार और साथ ही बीएम-12, 107एमएम, 109एमएम टाइप के रॉकेट शामिल हैं। मजीद फिदायीन ब्रिगेड के आतंकवादियों के पास आत्मघाती जैकेट बनाने के लिए सी4 जैसे अत्याधुनिक विस्फोटक भी हैं और वे एम4 राइफलों से भी लैस हैं। मजीद फिदायिन बिग्रेड ने ट्रेन हाईजेक की और 214 पाक आर्मी के जवानों की हत्या का दावा किया। इतना ही नहीं ट्रेन हाईजेक के दो दिन के बाद मजीद बिग्रेड ने एक और आत्मघाती हमला करते हुए 90 पाक सैनिकों को मौत की नींद सुला दिया।