Supreme Court’s Strong Stand on Income Tax Action: जब आयकर विभाग ने चेन्नई में कृष्णास्वामी के घर पर छापेमारी कर 5 करोड़ रुपए की नकदी जब्त की थी, तब अधिकतर लोग यही मान रहे थे कि मामला यहीं खत्म हो जाएगा। लेकिन कृष्णास्वामी ने हार नहीं मानी। उन्होंने अपनी समझदारी और सही कानूनी कदमों से साबित कर दिया कि टैक्स विवादों में भी धैर्य और कानून का सहारा लेकर जीत हासिल की जा सकती है। आखिरकार, सुप्रीम कोर्ट ने आयकर विभाग की कार्रवाई को गलत करार देते हुए विभाग को 2 लाख रुपए का हर्जाना देने का आदेश दिया।
मामला कैसे शुरू हुआ था
यह विवाद अप्रैल 2016 में शुरू हुआ, जब आयकर विभाग ने धारा 132 के तहत कृष्णास्वामी के घर छापा मारा। छापे के दौरान करीब 5 करोड़ रुपये की नकदी बरामद हुई, जिसे विभाग ने ‘अघोषित आय’ मानते हुए जब्त कर लिया। बाद में धारा 132(4) के अंतर्गत उनका बयान दर्ज किया गया और 2017 में उनके खिलाफ मुकदमे की प्रक्रिया शुरू कर दी गई। कृष्णास्वामी ने मद्रास हाईकोर्ट में इस कार्रवाई को चुनौती दी, लेकिन कोर्ट ने उनकी याचिका खारिज कर दी।
सेटलमेंट कमीशन का दरवाजा खटखटाया
हाईकोर्ट से राहत न मिलने के बाद कृष्णास्वामी ने 2018 में आयकर सेटलमेंट कमीशन का रुख किया। उन्होंने धारा 245C के तहत आवेदन देकर अपनी अतिरिक्त आय का खुलासा किया और दंड व मुकदमे से छूट की मांग की। सेटलमेंट कमीशन ने 2019 में उनके आवेदन को आंशिक रूप से स्वीकार किया। उन्हें दंड से राहत तो मिली, लेकिन अभियोजन से छूट नहीं मिली क्योंकि मामला हाईकोर्ट में लंबित था। जांच के दौरान यह भी सामने आया कि कुल ₹5 करोड़ में से ₹61.5 लाख की आय का स्रोत अस्पष्ट रहा।
सुप्रीम कोर्ट की दो टूक टिप्पणी
सुप्रीम कोर्ट ने सुनवाई के दौरान कहा कि आयकर विभाग अपनी ही गाइडलाइंस और नियमों की अनदेखी कर किसी करदाता पर कार्रवाई नहीं कर सकता। कोर्ट ने यह भी कहा कि अगर करदाता कानूनी तरीके से समाधान चाहता है तो विभाग का फर्ज है कि वह निष्पक्ष और नियमों के तहत काम करे। अदालत ने विभाग की कार्यशैली पर कड़ी टिप्पणी करते हुए कहा कि अनुचित मुकदमेबाज़ी और दबाव से करदाता को मानसिक व आर्थिक नुकसान होता है।
कृष्णास्वामी को मिला हर्जाना
इस फैसले में सुप्रीम कोर्ट ने कृष्णास्वामी को 2 लाख रुपये हर्जाना देने का आदेश दिया। अदालत ने कहा कि विभाग की तरफ से किए गए अनुचित कदमों ने करदाता को परेशान किया और नुकसान पहुँचाया। यह फैसला न केवल कृष्णास्वामी के लिए जीत है, बल्कि उन सभी करदाताओं के लिए प्रेरणा है जो कानून का सही रास्ता अपनाकर अपने अधिकारों की रक्षा करना चाहते हैं।