Supreme Court: पति-पत्नी विवाद पर सुप्रीम कोर्ट का बड़ा फैसला, घर खर्च का हिसाब मांगना क्रूरता नहीं

सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि पत्नी से घर खर्च का हिसाब मांगना या एक्सेल शीट बनवाना क्रूरता नहीं है। ऐसे सामान्य वैवाहिक विवादों पर आपराधिक मामला नहीं चलाया जा सकता।

Supreme Court Verdict: पति-पत्नी का रिश्ता भरोसे, समझ और आपसी सम्मान पर टिका होता है। लेकिन कई बार रोजमर्रा की छोटी-छोटी बातों को लेकर तनाव बढ़ जाता है और मामला अदालत तक पहुंच जाता है। ऐसा ही एक मामला हाल ही में सुप्रीम कोर्ट के सामने आया, जहां पति और पत्नी के बीच घरेलू खर्च के हिसाब को लेकर विवाद हुआ और पत्नी ने पति पर क्रूरता का आरोप लगा दिया।
इस मामले में सुप्रीम कोर्ट ने साफ कहा है कि पति का अपनी पत्नी से घर के खर्चों का हिसाब रखने को कहना या एक्सेल शीट बनाने को कहना क्रूरता नहीं माना जा सकता। इसके आधार पर आपराधिक कार्रवाई शुरू नहीं की जा सकती।

क्या था पूरा मामला?

पत्नी ने पति के खिलाफ एफआईआर दर्ज कराई थी। आरोप लगाया गया कि पति उससे रोजमर्रा के खर्चों का पूरा हिसाब मांगता था और इसके लिए एक्सेल शीट बनवाता था। इसके अलावा पत्नी ने यह भी कहा कि पति अपने माता-पिता को पैसे भेजता था, प्रसव के बाद उसके वजन बढ़ने पर ताने मारता था और गर्भावस्था व बच्चे के जन्म के बाद उसकी ठीक से देखभाल नहीं करता था।
मामला बढ़ते-बढ़ते सुप्रीम कोर्ट पहुंच गया। पति की ओर से याचिका दाखिल कर कहा गया कि यह कानून का गलत इस्तेमाल है और लगाए गए आरोप सामान्य वैवाहिक झगड़ों से जुड़े हैं।

सुप्रीम कोर्ट ने क्या कहा?

जस्टिस बी. वी. नागरत्ना और जस्टिस आर. महादेवन की बेंच ने पति की याचिका को स्वीकार करते हुए पत्नी द्वारा दर्ज कराई गई एफआईआर को रद्द कर दिया। कोर्ट ने कहा कि ऐसे आरोप वैवाहिक जीवन में अक्सर देखने को मिलते हैं और इन्हें क्रूरता नहीं कहा जा सकता।
कोर्ट ने साफ किया कि पति द्वारा अपने माता-पिता को पैसे भेजना कोई अपराध नहीं है। इसी तरह, घर के खर्च का हिसाब मांगना या वित्तीय मामलों में सवाल करना भी आपराधिक क्रूरता की श्रेणी में नहीं आता, जब तक इससे किसी तरह का गंभीर मानसिक या शारीरिक नुकसान साबित न हो।

गर्भावस्था और तानों पर टिप्पणी

सुप्रीम कोर्ट ने यह भी कहा कि गर्भावस्था या प्रसव के बाद देखभाल में कमी और वजन को लेकर ताने मारने जैसे आरोप, अगर मान भी लिए जाएं, तो ये पति के व्यवहार पर सवाल खड़े कर सकते हैं, लेकिन इन्हें आपराधिक मुकदमा चलाने लायक क्रूरता नहीं माना जा सकता।

वैवाहिक मामलों में अदालतों को सतर्क रहने की सलाह

कोर्ट ने इस फैसले में यह भी कहा कि वैवाहिक विवादों में एफआईआर दर्ज करते समय अदालतों को बहुत सावधानी बरतनी चाहिए। बिना ठोस घटनाओं और स्पष्ट विवरण के लगाए गए आरोप न केवल मामले को कमजोर करते हैं, बल्कि शिकायतकर्ता की विश्वसनीयता पर भी सवाल खड़े करते हैं। सुप्रीम कोर्ट ने दो टूक कहा कि आपराधिक कानून का इस्तेमाल निजी बदले या घरेलू हिसाब-किताब निपटाने के लिए नहीं किया जा सकता। वैवाहिक जीवन के रोजमर्रा के टकराव को क्रूरता बताकर मुकदमेबाजी में नहीं बदला जाना चाहिए।

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