Chief Justice of India: सोमवार, 24 नवंबर 2025 को न्यायमूर्ति सूर्यकांत ने देश के मुख्य न्यायाधीश (सीजेआई) के रूप में शपथ ली। राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने उन्हें शपथ दिलाई। इस मौके पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, केंद्रीय मंत्री राजनाथ सिंह, लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरला, भाजपा अध्यक्ष जे.पी. नड्डा, पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद और पूर्व उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ भी मौजूद थे। न्यायमूर्ति सूर्यकांत ने न्यायमूर्ति बी.आर. गवई की जगह ली है। 30 अक्टूबर को उन्हें आधिकारिक रूप से अगले सीजेआई के रूप में नियुक्त किया गया था। वह लगभग 15 महीने तक इस पद पर रहेंगे और 9 फरवरी 2027 को 65 वर्ष की आयु में सेवानिवृत्त होंगे।
जीवन परिचय
न्यायमूर्ति सूर्यकांत का जन्म 10 फरवरी 1962 को हरियाणा के हिसार जिले में एक सामान्य परिवार में हुआ। एक छोटे शहर से अपनी वकालत की शुरुआत करने वाले सूर्यकांत आज देश की सर्वोच्च अदालत के प्रमुख पद तक पहुंचे हैं। उन्होंने कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय से कानून में स्नातकोत्तर करते हुए 2011 में ‘प्रथम श्रेणी में प्रथम’ स्थान हासिल किया। पंजाब और हरियाणा हाईकोर्ट में अपने कार्यकाल के दौरान उन्होंने कई अहम फैसले दिए। बाद में 5 अक्टूबर 2018 को उन्हें हिमाचल प्रदेश उच्च न्यायालय का मुख्य न्यायाधीश नियुक्त किया गया।
सुप्रीम कोर्ट में उनके ऐतिहासिक मामले
सुप्रीम कोर्ट में उनके कार्यकाल के दौरान कई बड़े और ऐतिहासिक मामलों में उनका महत्वपूर्ण योगदान रहा। अनुच्छेद 370 हटाने से जुड़े मामले, अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता, नागरिकता संबंधी अधिकारों और औपनिवेशिक दौर के राजद्रोह कानून को स्थगित रखने जैसे फैसलों में वह शामिल रहे। उन्होंने यह भी निर्देश दिया था कि जब तक केंद्र सरकार राजद्रोह कानून की समीक्षा नहीं कर लेती, तब तक इस कानून के तहत कोई नई FIR दर्ज नहीं की जाएगी।
महत्वपूर्ण बेंच का हिस्सा रहे
न्यायमूर्ति सूर्यकांत उस संवैधानिक पीठ का हिस्सा हैं जो राज्यपाल और राष्ट्रपति की विधेयकों से संबंधित शक्तियों पर आए राष्ट्रपति के परामर्श पर सुनवाई कर रही है। इस फैसले का सभी राज्यों पर असर पड़ सकता है, इसलिए इसे काफी महत्वपूर्ण माना जा रहा है।
उन्होंने बिहार में मतदाता सूची से हटाए गए 65 लाख नामों पर निर्वाचन आयोग से पूरी जानकारी सार्वजनिक करने को भी कहा था। एसआईआर प्रक्रिया से जुड़ी याचिकाओं पर सुनवाई करते हुए उन्होंने पारदर्शिता पर जोर दिया। जमीनी लोकतंत्र और महिला अधिकारों को मजबूत करने के लिए उन्होंने एक महिला सरपंच को गलत तरीके से हटाए जाने के मामले में उसे बहाल कराते हुए लैंगिक भेदभाव को रेखांकित किया। साथ ही, बार एसोसिएशनों में एक-तिहाई सीटें महिलाओं के लिए आरक्षित करने का सुझाव भी उनका ही था।
वह उस पीठ का भी हिस्सा थे जिसने 2022 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की पंजाब यात्रा के दौरान सुरक्षा चूक की जांच के लिए जस्टिस इंदु मल्होत्रा की अध्यक्षता वाली कमेटी गठित की। उन्होंने ‘वन रैंक, वन पेंशन’ योजना को संवैधानिक रूप से मान्य ठहराया और महिला सैन्य अधिकारियों की स्थायी कमीशन से जुड़ी याचिकाओं पर सुनवाई जारी रखी। इसके साथ ही वह उन सात न्यायाधीशों में शामिल थे, जिन्होंने 1967 के एएमयू मामले पर आए पुराने फैसले को पलट दिया, जिससे विश्वविद्यालय के अल्पसंख्यक दर्जे पर फिर से विचार का रास्ता खुला। पेगासस स्पाइवेयर जांच के लिए विशेषज्ञ समिति गठित करने वाले फैसले में भी उनका योगदान रहा।
उनके कई फैसले न्याय व्यवस्था में दिशा तय करते रहे हैं।



