रायपुर ऑनलाइन डेस्क। भारत में देवी-देवताओं के लाखों ऐतिहासिक और प्राचीन मंदिर हैं, जिनका जिक्र पुराणों में मिलता है। इन देवालयों में देश ही नहीं बल्कि विदेशों से भक्त आते हैं और पूजा-अर्चना कर मन्नत मांगते हैं। लेकिन छत्तीसगढ़ के बालोद में डायन का मंदिर है, जहां सुबह से लेकर देरशाम तक श्रद्धालु का तांता लगा रहा है। ग्रामीण परेतिन दाई के दरबार पर आकर माथा टेकते हैं और मन्नत मांगते हैं। मंदिर के पास से गुजरने वाले हर इंसान को यहां पर रूकना होता है और परेतिन देवी की पूजा-अर्चना करनी होती है।
छत्तीसगढ़ के झींका में हैं डायन का मंदिर
छत्तीसगढ़ के बालोद जनपद से करीब 30 किमी की दूरी पर झींका गांव है। यहां पर परेतिन दाई यानि डायन देवी का मंदिर है। ग्रामीणों का दावाहै कि वह देवी के जिस स्वरुप की वह पूजा करते हैं, उन्हें डायन कहा जाता है। स्थानीय ग्रामीण ही नहीं, बल्कि दूर-दूर से श्रद्धालु परेतिन दाई के दर्शन और पूजा अर्चना के लिए झींका आते हैं। मुख्य मार्ग में पड़ने के कारण अक्सर यहां से गुजरने वाले माता के दरबार में सिर झुकाये बिना आगे नहीं बढ़ते हैं। मान्यता है कि माता की महिमा को जानकर भी कोई मंदिर में नहीं रुकता ,तो उसके साथ अनहोनी घटती है।
मंदिर में विराजमान डायन की प्रतिमा
ग्रामीण ने बताया कि यहां के लोग परम्परागत देवी-देवताओं के स्वरुप की तुलना में परेतिन दाई (डायन माता ) की पूजा अर्चना को अधिक महत्व देते हैं। ग्रामीणों का कहना है कि गांव में डायन देवी की पूजा उनके पुरखों के समय से हो रही है। जिस स्थान पर माता का मंदिर है, वहां पहले नीम के पेड़ के साथ चबूतरा ही था। डायन देवी उसी नीम के पेड़ में निवास करती हैं, जबकि देवी प्रतिमा की स्थापना करीब 150 साल पहले की गई थी। सुबह के वक्त मंदिर के पट खुल जाते हैं और परेतिन दाई की विधि-विधान से भक्त पूजा-अर्चना करते हैं।
बिना भेंट अर्पित किए कोई नहीं निकल सकता
स्थानीय लोगों का मानना है कि मंदिर के बाजू से निकलने वाले मार्ग से गुजरने वाले राहगीर माता के दर्शन करने के साथ उन्हें कोई ना कोई भेंट अर्पित करके ही आगे बढ़ते हैं। मसलन अगर कोई निर्माण कार्य में इस्तेमाल होने वाली भवन सामग्री जैसे रेत, गिट्टी, ईंट, मिट्टी, मुरम से भरी गाड़ी लेकर निकल रहा है, तो उसे वही ईंट, गिट्टी इत्यादि माता को अर्पित करनी होगी। अगर कोई फल, दूध, सब्जी इत्यादि ले जा रहा है, तो उसे उसमे से कुछ हिस्सा माता को अर्पित करना होगा। ऐसा ना करने से राहगीरों की उपयोगी वस्तुएं खराब हो जाती हैं।
तो माता उसे क्षमा कर देती हैं
गांव के एक स्थानीय ग्वाले के मुताबिक जब भी कोई राउत दूध दूह कर उसे बेचने के लिए मंदिर के सामने से गुजरता है, तो थोड़ा सा दूध डायन माता को अर्पित करके ही आगे बढ़ता है। मान्यता है कि अगर ऐसा नहीं किया, तो पूरा दूध फट जायेगा। ऐसा नहीं है कि माता सबसे केवल चढ़ावा मांगती हैं। अगर कोई राहगीर मंदिर के मान्यता से अंजान होता है, तो माता उसे क्षमा कर देती हैं। ग्रामीणों का कहना है कि परेतिन देवी कभी किसी का बुरा नहीं चाहती हैं।
नवरात्रि पर लगता है मेला
ग्रामीणों का कहना है कि परेतिन दाई दरबार में आने वाले लोगों की रक्षा करती हैं। अगर कोई सच्चे मन से माता से प्रार्थना करता है, तो माता उनकी मनोकामना भी जरूर पूरी करती हैं। माता को मानने वाले हर साल नवरात्री में उनके दर्शन करने और ज्योति कलश स्थापित करने दूर-दूर से आते हैं। नवरात्रि पर डायन मंदिर परिसर पर भव्य मेला लगता है। मेला के दिन सैकड़ों की संख्या में भक्त पहुंचते हैं। परेतिन दाई के दर पर आकर मन्नत मांगते हैं। परेतिन दाई हर भक्त की मनोकामना पूर्ण करती हैं।