नई दिल्ली ऑनलाइन डेस्क। जगदीश धनकड़ के रिजाइन के बाद देश में उपराष्ट्रपति के चुनाव की तारीख का ऐलान हो गया है। एनडीए ने महाराष्ट्र के राज्यपाल सीपी राधाकृष्णन को उम्मीदवार बनाया है। वहीं इंडिया गठबंधन ने भी अपने कैंडीडेट के नाम का ऐलान कर दिया। पूर्व सुप्रीम कोर्ट जज बी सुदर्शन रेड्डी अब विपक्ष के खेवनहार होंगे। रेड्डी के नाम की घोषणा कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे ने किया। इस मौके पर कांग्रेस प्रवक्ता जयराम रमेश ने कहा कि गठबंधन ने सर्वसम्मति से उनका नाम तय किया है। इंडिया गठबंधन पूरी ताकत के साथ एनडीए से मुकाबला करेगी।
इंडिया गठबंधन ने एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में उपराष्ट्रपति उम्मीदवार के तौर पर सुदर्शन रेड्डी के नाम का ऐलान किया। कांग्रेस प्रवक्ता ने बताया कि सभी पार्टियों ने सहमति से उनके नाम को फाइनल किया है। टीएमसी सांसद डेरेक ओ’ब्रायन ने बताया कि आम आदमी पार्टी भी सुदर्शन रेड्डी के नाम से सहमत है। कांग्रेस नेताओं ने बताया कि इंडिया गठबंधन के नेताओं के बीच बैठक हुई। सबने सुदर्शन रेड्डी के नाम पर मुहर लगाई। विपक्ष के सभी दल एक हैं। एक कांग्रेस के नेता ने बताया कि एनडीए के कुछ दल सुदर्शन रेड्डी के पक्ष में आएंगे। हम बीजेपी को कड़ी टक्कर देंगे।
कौन हैं सुदर्शन रेड्डी
बी सुदर्शन रेड्डी का जन्म 8 जुलाई 1946 को हुआ था। वे भारत के सुप्रीम कोर्ट के पूर्व न्यायाधीश और गोवा के पहले लोकायुक्त रह चुके हैं। सुदर्शन रेड्डी का जन्म आंध्र प्रदेश के रंगा रेड्डी जिले के अकुला मायलारम गांव में एक कृषि परिवार में हुआ। शुरुआती पढ़ाई के बाद उन्होंने हैदराबाद के उस्मानिया यूनिवर्सिटी से 1971 में लॉ पास किया। अपने करियर की शुरुआत रेड्डी ने सिविल और संवैधानिक मामलों की प्रैक्टिस से की और आंध्र प्रदेश हाईकोर्ट के सीनियर एडवोकेट के. प्रताप रेड्डी के साथ काम किया। इसके बाद 8 अगस्त 1988 को उन्हें आंध्र प्रदेश हाईकोर्ट में गवर्नमेंट प्लीडर नियुक्त किया गया और वे केंद्र सरकार के एडिशनल स्टैंडिंग काउंसल बने।
1993 में सुदर्शन रेड्डी आंध्र प्रदेश हाईकोर्ट एडवोकेट्स एसोसिएशन के अध्यक्ष चुने गए और उस्मानिया यूनिवर्सिटी के लीगल एडवाइजर भी रहे। न्यायिक करियर में आगे बढ़ते हुए रेड्डी 2 मई 1993 को आंध्र प्रदेश हाईकोर्ट के एडिशनल जज नियुक्त किए गए। इसके बाद 5 दिसंबर 2005 को वे गुवाहाटी हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस बने। सुदर्शन रेड्डी को 12 जनवरी 2007 को उन्हें सुप्रीम कोर्ट का एडिशनल जज नियुक्त किया गया और वे 8 जुलाई 2011 को रिटायर हुए। रिटायरमेंट के बाद मार्च 2013 में उन्होंने गोवा के पहले लोकायुक्त के रूप में कार्यभार संभाला, हालांकि अक्टूबर 2013 में उन्होंने निजी कारणों से इस्तीफ़ा दे दिया था। जानकार बताते हैं कि रेड्डी के चुनाव में उतरने से लड़राई काफी रोचक हो गई है।
अब हम आपको बताते हैं कैसे होता है उपराष्ट्रपति का चुनाव। दरअसल, उपराष्ट्रपति पद के लिए होने वाला चुनाव सामान्य चुनाव से विपरीत होता है। उपराष्ट्रपति का चयन आनुपातिक प्रतिनिधित्व के माध्यम से एकल हस्तांतरणीय मत प्रणाली द्वारा किया जाता है। विजेता घोषित होने वाले उम्मीदवार को मतों का एक कोटा पार करना होगा जो कुल वैध वोटों के दो से भाग देकर और एक जोड़कर की जाती है। अगर कोई उम्मीदवार पहली मतगणना में इस कोटे को पार नहीं कर पता तो सबसे कम प्रथम-वरीयता वाले मत पाने वाले उम्मीदवार को प्रक्रिया से बाहर कर दिया जाता है। फिर उनके मतपत्रों को दूसरी वरीयता के आधार पर पुनर्वितरित किया जाता है। ये प्रक्रिया तब तक चलती है जब तक कोई उम्मीदवार बहुमत प्राप्त नहीं कर लेता।
चुनाव के लिए जारी आंकड़ों के अनुसार, कुल 782 सांसद उपराष्ट्रपति चुनाव में मतदान करने के पात्र हैं, जिसमें 542 लोकसभा और 240 राज्यसभा के हैं। चुनाव में बहुमत के लिए 392 सांसदों की जरूरत होगी। सरकार के पक्ष में 427 सांसदों का समर्थन बताया जा रहा है, जिसमें 293 लोकसभा और 134 राज्यसभा के सदस्य शामिल हैं। इसके इतर विपक्ष के पास 355 सांसदों का गणित है, जिसमें 249 लोकसभा और 106 राज्यसभा के सदस्य शामिल हैं। हालांकि, इनमें से 133 सांसदों का समर्थन अभी अनिर्णित माना जा रहा है जो इस चुनाव के फैसले में निर्णायक साबित हो सकते हैं। इन्हीं अनिर्णित 133 वोटों को अपने पक्ष में करने की कोशिशें तेज हो गई हैं। इंडिया ब्लॉक को होने वाली बैठक में इस नंबर गेम पर चर्चा होने की खबर है।
. कांग्रेस और अन्य दलों के नेता अपने उम्मीदवार को मजबूत करने और सरकार के नंबर गेम को चुनौती देने की रणनीति बनानी शुरू कर दी है। जबकि दूसरी ओर सरकार अपने सहयोगियों साथ मिलकर विपक्ष की कोशिशों को कमजोर करने में जुटी है। इसी क्रम में राजनाथ सिंह ने कांग्रेस अध्यक्ष से बातचीत कर समर्थन मांगा है, क्योंकि इन अनिर्णित वोटों में कई क्षेत्रीय दलों का प्रभाव हो सकता है। वहीं अगर संख्याबल को देखें तो एनडीए का पलड़ा भारी दिख रहा है। क्योंकि उनके पास बहुमत से ज्यादा यानी 427 सांसदों का समर्थन है। वहीं विपक्ष 355 सांसदों के साथ थोड़ी दूरी पर है। अब देखना होगा कि क्या विपक्ष एकजुट रह पाता है या कुछ सांसद क्रॉस वोटिंग कर सरकार समर्थित उम्मीदवार की राह आसान कर देंगे।