पटना। नीतीश कुमार ने 2024 के चुनाव से पहले जाति सर्वे के आंकड़े जारी कर दिए हैं. बताया जा रहा है कि अन्य राज्यों में भी इसी तरह की जाति आधारित जनगणना की मांग जोर पकड़ सकती है. जातीय आधारित जनगणना को विपक्षी गठबंधन I.N.D.I.A का मुख्य चुनावी एजेंडा भी माना जा रहा है. हिंदी पट्टी के राज्यों में जहां पर भी जाति की राजनीति एक प्रमुख भूमिका निभाती है, वहां पर आगामी चुनावों में यह एक बड़ा मुद्दा बन सकता है. बता दें कि बिहार में नीतीश कुमार सरकार ने 2 अक्टूबर को जातीय जनगणना सर्वे के आंकड़े जारी कर दिए हैं.
जातीय जनगणना कराने वाला बिहार पहला राज्य
इस तरह की जनगणना कराने वाला बिहार देश का पहला राज्य बन गया है. जातीय जनगणना रिपोर्ट को मंडल रिपोर्ट 2.0 भी कहा जा रहा है. देश में पिछड़ी जातियों के आरक्षण के लिए 1990 में मंडल आयोग की सिफारिशें लागू की गई थीं. अब वहीं 33 साल बाद एक बार फिर से जातीय जनगणना से जुड़ी रिपोर्ट चर्चा में आई है. आपको बताएंगे कि आखिर मंडल आयोग की उस रिपोर्ट में क्या था और इतना बवाल क्यों मचा था. आगामी आम चुनाव से पहले कांग्रेस समेत तमाम पार्टियां इसको चुनावी राजनीतिक का मुद्दा बनाने में जुट गई हैं.
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2024 लोकसभा चुनाव से पहले नीतीश का ट्रंप कार्ड
बिहार के सीएम नीतीश कुमार का जातिगत जनगणना के आंकड़ों को पेश करने से बीजेपी पर दबाव बढ़ गया है. हालांकि बीजेपी नेता इसको भ्रामक बता रहे हैं. लेकिन नीतीश के इस ट्रंप कार्ड से राजनीतिक गलियारों में हलचल काफी बढ़ गई है और गठबंधन पार्टियों ने आगामी आम चुनाव में ओबीसी जातियों को राजनीति करने का नया रास्ता दे दी हैं. इससे निश्चित तौर पर बीजेपी के ओबीसी मोर्चे पर भी बड़ी टक्कर मिली है. वहीं मुख्य विपक्षी पार्टी कांग्रेस के नेता राहुल गांधी भी अपने इरादे साफ करते हुए कह दिया है कि जिसकी जितनी जनसंख्या होगी, उसको उतनी भागीदारी मिलेगी.