Constitution 130th Amendment Bill in Parliament: संसद के मॉनसून सत्र में 20 अगस्त को संविधान में 130वां संशोधन विधेयक पेश किया गया। इस नए बिल के मुताबिक अगर प्रधानमंत्री, मुख्यमंत्री या कोई भी मंत्री गिरफ्तार होकर 30 दिन तक जेल में रहता है तो उसे पद छोड़ना होगा। बिल के पेश होते ही विपक्ष ने सरकार पर हमला बोल दिया।
विपक्ष का विरोध और आरोप
इस बिल को लेकर विपक्षी दलों ने जमकर हंगामा किया। राजद नेता तेजस्वी यादव ने इसे “ब्लैकमेलिंग बिल” करार दिया। वहीं, कांग्रेस सांसद राहुल गांधी ने कहा कि इस कानून से देश को फिर से मध्यकाल में धकेला जाएगा। उनका आरोप है कि यह सरकार अपनी पसंद के नेताओं को हटाने और मनमानी करने का रास्ता बना रही है।
सहयोगी दलों का समर्थन
वहीं, केंद्र की सहयोगी पार्टियां इस बिल के समर्थन में नजर आईं। आंध्र प्रदेश की तेलुगु देशम पार्टी (टीडीपी) ने इसे स्वागत योग्य कदम बताया। टीडीपी सांसद लवू श्रीकृष्ण देवरायलु ने कहा कि जनता लंबे समय से स्वच्छ राजनीति की उम्मीद कर रही थी और यह बिल उसी दिशा में बढ़ता कदम है। हालांकि, उन्होंने यह भी कहा कि बिल का दुरुपयोग न हो, इसके लिए इसे संसदीय समिति के पास भेजना चाहिए।
सरकार की दलील
गृह मंत्री अमित शाह ने संसद में कहा कि देश की जनता साफ और ईमानदार राजनीति चाहती है। लेकिन साथ ही मजबूत लोकतंत्र भी जरूरी है। इसलिए इस बिल को जांच के लिए समिति को भेजा गया है। शाह ने कहा कि “जब हम संविधान को छूते हैं तो हमें बेहद सावधानी से छूना चाहिए, जैसे एक जौहरी हीरे को संभालता है।”
जेडीयू का बयान: लोकतंत्र लोकलाज से चलता है
जनता दल यूनाइटेड (जेडीयू) के नेता ललन सिंह ने बिल का समर्थन करते हुए कहा कि लोकतंत्र लोकलाज और नैतिकता से चलता है। उन्होंने कहा कि हाल के वर्षों में देखा गया कि कई मुख्यमंत्री और मंत्री भ्रष्टाचार के आरोपों में जेल गए लेकिन पद से इस्तीफा नहीं दिया। कुछ तो जेल में रहकर ही विभाग चलाते रहे, जो सार्वजनिक जीवन की नैतिकता के खिलाफ है। ललन सिंह ने कहा कि इस बिल से राजनीति में उच्च नैतिक मापदंड स्थापित करने की दिशा में बड़ा कदम उठाया गया है।
इस बिल को लेकर संसद में खूब गरमागरमी रही। विपक्ष ने इसे लोकतंत्र विरोधी बताया तो वहीं सरकार और सहयोगी दलों ने इसे राजनीति की सफाई की दिशा में अहम पहल कहा। अब सबकी नजर इस बात पर है कि समिति की जांच के बाद यह बिल किस रूप में पारित होता है।