नई दिल्ली ऑनलाइन डेस्क। इजरायल और ईरान के प्रॉक्सी संगठनों के बीच जंग जारी है। आईडीएफ गाजा, लेबनान और सीरीया में बमों की बरसात कर रही है तो वहीं अमेरिका में भी सत्ता परिवर्तन हो गया। अब यूएसए के अगले राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रप होंगे। ट्रंप के सत्ता संभालने से पहले ईरान में बड़ा उलटफेर हो गया। वहां के सुप्रीम लीडर आयतुल्लाह अली खामेनेई ने अपने दूसरे बेटे मुजतबा खामेनेई को उत्तराधिकारी बना दिया है। मीडिया रिपोर्ट्स में दावा किया जा रहा है 85 साल के खामेनेई बीमार चल रहे हैं और इसी के कारण उन्होंने अपने बेटे को सुप्रीम लीडर की कुर्सी सौंपी है। हालांकि इसकी आधिकारिक पुष्टि नहीं हुई है।
जंग के बीच छोटी गद्दी
दरअसल, इजरायल और ईरान के प्रॉक्सी संगठन हमास, हिज्बुल्लाह और हूती के खिलाफ भीषण जंग जारी है। वार के बीच ईरान और इजरायल के बीच तनाव है। दावा किया जा रहा था कि ईरान कभी भी इजरायल पर बड़ा हमला कर सकता है। हमले की आशंका को देखते हुए अमेरिका ने ईरान की चारों तरफ से घेराबंदी कर दी। रक्षा कवच इजरायल में तैनात किए। पर ईरान की तरफ से पलटवार नहीं हुआ। अब अमेरिका में डोनाल्ड ट्रंप की सरकार सत्ता में आ गई है। डोनाल्ड ट्रंप खुलकर इजरायल के पक्ष में बयान दे चुके हैं। ईरान को आशंका है कि ट्रंप के कुर्सी पर बैठने के बाद अमेरिका-इजरायल उनके देश में हमला कर सकते हैं। इन्हीं आशांकों के बीच ईरान में बड़ा उलटफेर हो गया।
26 सितंबर को चुन लिया गया था सुप्रीम लीडर
ईरान के सुप्रीम लीडर आयतुल्लाह अली खामेनेई ने पद से रिजाइन करते हुए गद्दी अपने बेटे को सौंप दी है। रिपोर्ट्स के मुताबिक ईरान की एक्सपर्ट असेंबली ने 26 सितंबर को ही नए सुप्रीम लीडर का चुनाव कर लिया था। खुद खामेनेई ने असेंबली के 60 सदस्यों को बुलाकर गोपनीय तरीके से उत्तराधिकारी पर फैसला लेने कहा था। असेंबली ने सर्वसम्मति से मुजतबा के नाम पर सहमति जताई थी। मीडिया रिपोर्ट्स में दावा किया जा रहा है कि आयतुल्लाह अली खामेनेई के गद्दी छोड़ने के पीछे ईरान में विद्रोह को माना जा रहा है। ईरान के पूर्व राष्ट्रपति अमेरिका में रहते हैं। अमेरिका उन्हें फिर से ईरान की बागडोर देना चाहता है। हालांकि बताया जा रहा है कि आयतुल्लाह अली खामेनेई बीमार चल रहे हैं और इसी के कारण उन्होंने अपने बेटे को गद्दी पर बैठाया है।
बड़े के बजाए छोटे बेटे को सौंपी गद्दी
रिपोर्ट के मुताबिक आयतुल्लाह खामेनेई गंभीर रूप से बीमार हैं। अपनी मौत से पहले शांतिपूर्ण तरीक से पावर ट्रांसफर करने के लिए ही खामेनेई ने बेटे को सारी जिम्मेदारियां सौंप दी हैं। दिलचस्प बात यह भी है कि खामनेई ने अपने बड़े बेटे मुस्तफा को वारिस नहीं बनाया है। इस फैसले के बारे में अभी ज्यादा जानकारी नहीं मिली है। मुस्तफा की ईरान के अंदर अच्छी पकड़ है। मीडिया रिपोर्ट्स में दावा किया जा रहा है कि मुस्तफा को सुप्रीम लीडर नहीं बनाए जाने की वजह ये है कि उन्हें धर्म का उतना ज्ञान नहीं है। वह लोगों से मिलते हैं और भाषण भी देते हैं। जबकि उनके छोटे भाई मुजतबा अपने पिता आयतुल्लाह अली खामेनेई की तरह ही इस्लामिक मामलों के जानकार हैं।
कौन हैं मुजतबा खामेनेई
मुजतबा पहली बार 2009 में दुनिया की नजरों में आए। उन्होंने ईरान में जारी विरोध प्रदर्शनों को सख्ती से कुचला, जिसमें कई लोग मारे गए। तब राष्ट्रपति चुनाव में कट्टरपंथी नेता महमूद अहमदीनेजाद को सुधारवादी नेता मीर होसैन मौसवी पर जीत मिली थी। सुधारवादी नेताओं ने दावा किया कि चुनाव में भारी पैमाने पर गड़बड़ी हुई है। इसके बाद लाखों लोग सड़कों पर उतर आए थे। इसे ’ईरानी ग्रीन मूवमेंट’ का नाम दिया गया। यह दो साल तक चला, लेकिन ईरानी सरकार ने इसे बल प्रयोग करके दबा दिया था। कहा गया था कि इसके पीछ मुजतबा खामेनेई का दिमाग है।
मुजतबा एक रहस्यमयी शख्स
मुजतबा खामेनेई को पिछले 2 साल से सुप्रीम लीडर बनाने की तैयारियां चल रही थी। मुजतबा के सरकार में किसी पद पर न होने के बाद भी जरूरी फैसलों में लगातार उनकी भागीदारी बढ़ती देखी गई। रिपोर्ट के मुताबिक मुजतबा एक रहस्यमयी शख्स हैं। वह बहुत कम अवसरों पर नजर आते हैं। वे पिता की तरह सार्वजनिक भाषण नहीं देते। कहा जाता है कि ईरान की खुफिया और दूसरी सरकारी एजेंसियों में मुजतबा के लोग बैठे हुए हैं। ईरान में इब्राहिम रईसी के राष्ट्रपति बनने के बाद मुजतबा का कद काफी बढ़ गया। मुजतबा को रईसी के उत्तराधिकारी यानी कि ईरान के राष्ट्रपति पद के लिए तैयार किया जा रहा था, लेकिन रईसी की मौत के बाद इसमें बदलाव आ गया।
1989 में बने थे ईरान के सुप्रीम लीडर
1989 में रुहोल्लाह खुमैनी के निधन के बाद से आयतुल्ला अली खामेनेई ईरान के सर्वोच्च नेता के पद पर काबिज हैं। ईरान में 1979 की इस्लामी क्रांति के दौरान, जब शाह मोहम्मद रजा पहलवी को हटाया गया तो खामेनेई ने क्रांति में बड़ी भूमिका निभाई थी। इस्लामिक क्रांति के बाद खामेनेई को 1981 में राष्ट्रपति बनाया गया। वह 8 साल तक इस पद पर रहे। खामेनेई को पद देने के लिए नियम में बदलाव किया गया। मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक अयातुल्ला धर्मगुरू की एक पदवी है। ईरान के इस्लामिक कानून के मुताबिक, सुप्रीम लीडर बनने के लिए अयातुल्ला होना जरूरी है। यानी कि सुप्रीम लीडर का पद सिर्फ एक धार्मिक नेता को ही मिल सकता है।
कैसे होता है ईरान के सुप्रीम लीडर का चुनाव
खामेनेई को सुप्रीम लीडर बनाने के लिए कानून में संसोधन किया गया था क्योंकि वे धार्मिक नेता नहीं थे। ईरान में सुप्रीम लीडर का पद राजनीतिक और धार्मिक व्यवस्था में सबसे बड़ा है। इसका अधिकार राष्ट्रपति से भी ज्यादा है। सुप्रीम लीडर को देश के सैन्य, न्यायिक, और धार्मिक मामलों में फैसले लेना अधिकार होता है। उसके फैसले को कोई भी चुनौती नहीं दे सकता। ईरान से जुड़े किसी भी जरूरी मुद्दे पर सुप्रीम नेता का फैसला ही आखिरी माना जाता है। मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, ईरान में सुप्रीम लीडर का चयन असेंबली ऑफ एक्सपर्ट्स करती है। ईरान में सुप्रीम लीडर बनने के लिए इनका दो-तिहाई वोट हासिल करना जरूरी है। असेंबली ऑफ एक्सपर्ट्स 86 मौलवियों का एक समूह है। हर 8 साल में इनका चुनाव होता है।