Tribal Leaders of India:झारखंड की राजनीति के सबसे मजबूत और जनप्रिय आदिवासी नेता शिबू सोरेन अब नहीं रहे। 81 वर्षीय सोरेन पिछले डेढ़ महीने से किडनी से जुड़ी गंभीर समस्या से जूझ रहे थे और रांची के एक निजी अस्पताल में उनका इलाज चल रहा था। डॉक्टरों की तमाम कोशिशों के बावजूद रविवार रात उन्होंने अंतिम सांस ली।
शिक्षक के बेटे से दिशोम गुरु तक का सफर
11 जनवरी 1944 को झारखंड के रामगढ़ जिले के नेमरा गांव में जन्मे शिबू सोरेन एक सामान्य शिक्षक परिवार से ताल्लुक रखते थे। उनके पिता सोबरन मांझी शिक्षक थे, जबकि दादा अंग्रेजों के समय टैक्स तहसीलदार रह चुके थे। बचपन से ही परिवार में शिक्षा और सामाजिक चेतना का माहौल था। लेकिन जब वे हॉस्टल में पढ़ाई कर रहे थे, तभी 1957 में उनके पिता की हत्या कर दी गई। इस घटना ने शिबू सोरेन की ज़िंदगी की दिशा ही बदल दी।
धनकटनी आंदोलन से मिली पहचान
पिता की हत्या के बाद उन्होंने पढ़ाई छोड़ दी और आदिवासी समाज के अधिकारों के लिए आवाज उठानी शुरू की। उन्होंने महाजनों और साहूकारों के अत्याचारों के खिलाफ धनकटनी आंदोलन शुरू किया। इस आंदोलन में वे और उनके साथी सूदखोरों के खेतों की फसल काटकर गरीबों में बाँटते थे। यही वह दौर था जब आदिवासी समाज ने उन्हें ‘दिशोम गुरु’ की उपाधि दी – जिसका अर्थ है ‘देश का गुरु’।
राजनीतिक सफर की शुरुआत और संघर्ष
शिबू सोरेन ने सबसे पहले पंचायत स्तर पर चुनाव लड़ा, लेकिन हार गए। इसके बाद जरीडीह विधानसभा से भी किस्मत आजमाई लेकिन सफलता नहीं मिली। फिर उन्होंने झारखंड मुक्ति मोर्चा (JMM) की स्थापना की और अलग राज्य की मांग को लेकर जन-आंदोलन छेड़ दिया। वर्ष 1980 में उन्होंने दुमका से लोकसभा चुनाव लड़ा और जीते। इसके बाद वे आठ बार इस सीट से सांसद बने।
तीन बार बने झारखंड के मुख्यमंत्री
झारखंड के गठन (2000) के बाद शिबू सोरेन ने तीन बार राज्य के मुख्यमंत्री पद की जिम्मेदारी संभाली। पहली बार 2005 में वे मुख्यमंत्री बने, लेकिन एक आपराधिक मामले में नाम आने पर कुछ ही दिनों में इस्तीफा देना पड़ा। दूसरी बार 2008 में सीएम बने, लेकिन तमाड़ सीट से चुनाव हारने पर पद छोड़ना पड़ा। तीसरी बार 2009 में वे फिर सीएम बने, लेकिन राजनीतिक अस्थिरता के चलते जल्द ही त्यागपत्र देना पड़ा।
विवादों में भी घिरे, लेकिन सम्मान बना रहा
शिबू सोरेन का राजनीतिक जीवन कुछ विवादों से भी घिरा रहा, खासकर शशिनाथ हत्याकांड में उनका नाम आने के बाद उन्हें जेल भी जाना पड़ा। हालांकि बाद में उन्हें अदालत से बरी कर दिया गया। इसके बावजूद उनका जनाधार बना रहा और वे आदिवासी समाज के सबसे बड़े और प्रभावशाली नेता बने रहे।
पुत्र हेमंत सोरेन आगे बढ़ा रहे विरासत
आज शिबू सोरेन की राजनीतिक विरासत उनके पुत्र और झारखंड के पूर्व मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन आगे बढ़ा रहे हैं। हेमंत ने शिबू सोरेन को अपना प्रेरणास्रोत बताया है और उनके दिखाए रास्ते पर चलने का संकल्प लिया है।
झारखंड शोक में डूबा, तीन दिन का राजकीय शोक घोषित
राज्य सरकार ने शिबू सोरेन के सम्मान में तीन दिन का राजकीय शोक घोषित किया है। उनके निधन से झारखंड की राजनीति, खासकर आदिवासी समाज को अपूरणीय क्षति हुई है।