Supreme Court dismisses Mayawati statues case : 15 जनवरी को उत्तर प्रदेश की पूर्व मुख्यमंत्री मायावती को सुप्रीम कोर्ट ने उनके जन्म दिन पर बड़ी राहत दे दी है। उनकी और उनकी पार्टी बहुजन समाज पार्टी (बीएसपी) के चुनाव चिन्ह ‘हाथी’ की मूर्तियों को सरकारी खर्चे से बनवाने के मामले में सुप्रीम कोर्ट ने लंबित याचिका पर सुनवाई खत्म कर दी है। अदालत ने कहा कि यह मामला पुराना हो चुका है और अगर अब मूर्तियों को हटाने के आदेश दिए जाते हैं, तो इससे सरकार का खर्च और बढ़ेगा।
क्या था मामला
यह याचिका 2009 में वकील और सामाजिक कार्यकर्ता रविकांत ने दाखिल की थी। इसमें आरोप लगाया गया था कि मायावती के मुख्यमंत्री रहते लखनऊ, नोएडा और अन्य जगहों पर बने स्मारकों और मूर्तियों पर करीब 2600 करोड़ रुपए का सरकारी खर्च किया गया। इन स्मारकों में बहुजन महापुरुषों के साथ मायावती और बीएसपी के चुनाव चिन्ह ‘हाथी’ की मूर्तियां भी लगाई गई थीं। याचिकाकर्ता ने यह राशि मायावती और बीएसपी से वसूलने की मांग की थी।
सरकार ने क्या दलील दी
उत्तर प्रदेश सरकार ने अपनी दलील में कहा था कि इन स्मारकों और मूर्तियों को राज्य कैबिनेट की मंजूरी मिली थी। साथ ही, हाथी की मूर्तियां बीएसपी के चुनाव चिन्ह जैसी नहीं थीं।
सुप्रीम कोर्ट की प्रतिक्रिया
शुरुआती सुनवाइयों में सुप्रीम कोर्ट ने सरकारी खर्च पर सीएम की मूर्तियां लगाने को लेकर यूपी सरकार को कड़ी फटकार लगाई थी। 2019 में तत्कालीन चीफ जस्टिस रंजन गोगोई की अध्यक्षता वाली बेंच ने भी टिप्पणी की थी कि मायावती को इन मूर्तियों पर खर्च की गई राशि वापस लौटानी चाहिए।
2025 में मामला खत्म
करीब 16 साल बाद, 15 जनवरी 2025 को सुप्रीम कोर्ट की जस्टिस बी. वी. नागरत्ना और जस्टिस सतीश चंद्र शर्मा की बेंच ने इस मामले को खत्म कर दिया। अदालत ने कहा कि अब अगर मूर्तियां हटाने का आदेश दिया गया, तो इससे भी सरकार का पैसा खर्च होगा। साथ ही, चुनाव आयोग के निर्देशों का हवाला देते हुए कहा गया कि सरकारी खर्च से किसी भी पार्टी का प्रचार नहीं हो सकता। भविष्य में ऐसी घटनाओं की आशंका नहीं है, इसलिए इस मामले को अब बंद कर देना चाहिए। भविष्य में ऐसी घटनाओं को रोकने के लिए चुनाव आयोग ने पहले ही निर्देश जारी कर रखे हैं।