संघ प्रमुख मोहन भागवत ने शनिवार को सहारनपुर में मोक्षायतन योग संस्थान के 49वें स्थापना दिवस समारोह में योग के ऊपर भाषण दिया. उन्होंने बोला- योग भारत का है। हम दुनिया के सबसे प्राचीन लोग हैं। एक तरह से हम सभी के बड़े भाई हैं। दुनिया के पास भौतिक ज्ञान है। आध्यात्मिक ज्ञान सिर्फ भारत के पास ही है। इसे दुनियाभर के लोग यहां से सीखकर जाते हैं। इतना ही नहीं, विश्व के कई देश योग को अपना पेटेंट बनाना चाहते हैं। वे कम से कम 20 मिनट तक मंच से बोले।
उन्होंने कहा कि योग का मतलब है झुकना। हर काम को सत्यम, शिवम, सुंदरम की तरह करना भी योग है। संतुलन भी योग है। जो इस संतुलन को पा लेता है, उसका कोई शत्रु नहीं रहता और न ही कोई दुख रहता है।
जिस प्रकार समुद्र की लहरें होती हैं, लहरों से समुद्र नहीं होता उसी तरह खुद को दुख मुक्त होने के बाद दुनिया को दुख मुक्त करना ही भारत है। कितना भी कोलाहल हो जाए, मैं हमेशा शांत रहता हूं। मेरे अंदर आंदोलन पैदा नहीं होता है।
योग के उपाय
अपने भाषण के दौरान मोहन भागवत ने संस्कृत के श्लोकों का इस्तेमाल कर उनका अर्थ भी बताया। उन्होंने कहा कि मन, बुद्धि और शरीर एक तरंग उत्पन्न करती है। इस कारण सुनाई, दिखाई नहीं देता। जो बीच में आ जाता है, वही हमें दिखाई देता है। जलाशय का जल अगर शांत है, तो उसका तल दिखाई देगा। अगर अशांत होगा, तो उसका तल नहीं दिखाई देगा। यह बात मनुष्य पर भी लागू होती है।
योग धारण करने वाले व्यक्ति को कोलाहल में भी सुनाई देता है। शांत चित्त वाला व्यक्ति कहीं भी बैठ जाए वह एकाग्र हो सकता है, क्योंकि उसने अपने चित्त पर विजय पा रखी है। भागवत ने संस्कृत, हिंदू, भूगोल, विज्ञान, गणित के साथ न्यूरो साइंस का पाठ पढ़ाया। उन्होंने कहा कि न्यूरो साइंस कहता है कि आप वही सुन, देख और समझ पाते हैं, जो दिमाग में डाला गया है। उन्होंने रंगों के भेद के बारे में भी बताया। उन्होंने कहा कि दिमाग की इंद्रियों के करण ही मानव किसी भी भेद को समझ नहीं पाता है। इससे मुक्त होना होगा।
वैज्ञानिको पर किया कटाक्ष
उन्होंने वैज्ञानिकों पर भी कटाक्ष किया। कहा कि आधुनिक युग के वैज्ञानिकों का कहना है कि अगर भगवान है, तो उसको उनके टेस्ट ट्यूब में आना पड़ेगा। इसका हमें बुरा भी नहीं मानना चाहिए। उन्होंने कहा कि विज्ञान भी अब समझने लगा है कि इन बातों को लेकर भी मर्यादा है। विज्ञान गणित से मिलता है। वैज्ञानिक शरीर, मन और बुद्धि को जानता है। बुद्धि के परे जो है, वह सत्य है।
वैज्ञानिक इसे नहीं जानते हैं। वे अर्थ, काम और मोक्ष को समझते हैं। मगर, मोक्ष के लिए जो धर्म चाहिए वह उनके पास नहीं है। हम अपने जीवन में इतने व्यस्त हो गए हैं कि हमारे पास शरीर, मन और बुद्धि के लिए समय नहीं है। संवेदना है, तो पूरा विश्व अपना है। कोई अपना और पराया नहीं है।
(By:Abhinav Shukla)