Kalpurush Baba’s Prophecies About Earth and Rivers प्रयागराज के महाकुंभ में बाबा कालपुरुष का रहस्यमय और डरावना रूप हर किसी का ध्यान खींच रहा है। 95 साल के बाबा कालपुरुष कुंभ में आए बुजुर्ग अघोरी साधु हैं। शाम होते ही वे अपने पैरों पर पैर रखकर ध्यान में बैठ जाते हैं। चिता जलने लगती है, और चारों ओर काले धुएं का गुबार छा जाता है। उनके हाथ में एक मानव खोपड़ी होती है, जो उनके पानी पीने का पात्र है। बाबा की गहरी और गंभीर आवाज हिमालय में उनकी वर्षों की गई साधना की गवाही देती है। वे कहते हैं, ,’जो इंसान भूल जाता है, वो नदी याद रखती है। गंगा जब रोएगी, तो उसके आँसू धरती पर कहर ढाएंगे। इसकी शुरुआत हो चुकी है।’
बाबा की खास भविष्यवाणिया
अघोरी साधुओं को उनकी कठिन तपस्या और गहरी भविष्यवाणियों के लिए जाना जाता है। जहां कुंभ के बाकी साधु अपनी व्यक्तिगत मुक्ति पर ध्यान देते हैं, वहीं बाबा कालपुरुष समाज के भविष्य की बातें करते हैं। बाबा कहते हैं, मैं पिछले सात महाकुंभों में आया हूँ। इस बार संकेत अलग हैं। चिता के पास कौवे अजीब सुर में गा रहे हैं। मृत आत्माएँ बेचैन हैं।
अमावस्या की रात और भविष्यवाणी
अमावस्या की रात बाबा अपनी राख से खास प्रतीक बनाते हैं और गहरी बातें कहते हैं। वे कहते हैं, पृथ्वी अपनी साँसें बदल रही है। नदियाँ अपने रास्ते बदलेंगी, और शहरों को एहसास होगा कि वे उधार की ज़मीन पर बसे हैं। आने वाले चार साल बड़े बदलाव लेकर आएंगे।
क्या कहते हैं एक्सपर्ट
डॉ. राजेंद्र प्रसाद, जो अघोरी परंपराओं का अध्ययन कर चुके हैं, कहते हैं कि अघोरी साधुओं की भविष्यवाणियाँ पर्यावरण और आध्यात्म का अनोखा मिश्रण होती हैं। बाबा कालपुरुष का मानना है कि पानी हमारी सबसे बड़ी चुनौती बनने वाला है।
आने वाले बदलावों की बातें
बाबा कहते हैं, पहाड़ धीरे धीरे अपनी बर्फ छोड़ देंगे। नदियाँ नए रास्ते खोजेंगी। कई मंदिर धरती में समा जाएंगे। लेकिन हर बदलाव विनाशकारी नहीं होगा। जो पीढ़ियाँ पुरानी चीज़ें भूल चुकी हैं, आने वाली पीढ़ियाँ उन्हें फिर से सीखेंगी। युवा पीढ़ी आकाश को पढ़ना सीखेगी और प्रकृति से जुड़ेगी।
कुंभ का स्थान बदलेगा
बाबा की सबसे बड़ी भविष्यवाणी महाकुंभ से जुड़ी है। वे कहते हैं, इस संगम का स्थान बदलेगा। समय के साथ कुंभ रेगिस्तान में होगा। जहां आज पानी नहीं है, वहीं कल कुंभ मेला लगेगा।
बाबा अपनी बात खत्म करते हुए कहते हैं, “बुद्धि कभी मरती नहीं, केवल नए हाथों में चली जाती है” आने वाली पीढ़ी पुराने ज्ञान को फिर से जिएगी। वे हवा, पानी और धरती को समझेंगे और उनसे जुड़ेंगे। बदलाव जरूरी है, और यह बदलाव हमें खुद को पहचानने का मौका देगा।