कानपुर। पूरे देश में दशहरा पर्व हर्षोउल्लास के साथ मनाया जा रहा है। शहर-शहर, गांव-गांव रावण के पुतले दहन किए जा रहे हैं। लेकिन कुछ ऐसे भी इलाके हैं, जहां दशनन की विधि-विधान से पूजा-अर्चना भी की जा रही है। भक्त रावण के दर पर आकर माथा टेकर रहे हैं और मन्नत मांग रहे हैं। कुछ ऐसा ही नजारा कानपुर में भी देखने को मिला। यहां साल में सिर्फ एक दिन के लिए रावण के मंदिर के पट खुले। पुजारियों ने रावण की आरती उतारी। पूजा-अर्चना की। भक्तों का सुबह से तांता लगा रहा, जो देरशाम तक जारी रहा।
एक ओर जहां पूरे देश में रावण का पुतला फूंका जा रहा है। लोग एक-दूसरे को विजयादशमी पर्व की शुभकामनाएं दे रहे हैं तो वहीं कानपुर के शिवाला में स्थिम रावण के मंदिर में दशहरा पर्व पर दशानन की विधि-विधान के साथ पूजा-अर्चना की। भक्तों ने रावण की मूर्ति के समक्ष दीये जलाए। फूल अर्पित किए। ऐसी मान्यता है कि इस दिन मंदिर में दर्शन करने के साथ ही जो मन्नत मांगी जाती है, वह भी पूरी होती है। रावण के दशन के लिए देश के कोने-कोने से भक्त कानपुर पहुंचे। श्रीलंका और नेपाल से भी भक्तों की टोली दशानन के दर पर मत्था टेका।
रावण का यह मंदिर लगभग 158 साल पुराना है। यह मंदिर अपनी खास मान्यता के लिए जाना जाता है। इसके कपाट साल भर बंद रहते हैं और सिर्फ दशहरे (विजयदशमी) के दिन ही भक्तों के लिए खोले जाते हैं। यह परंपरा सदियों से चली आ रही है। दशहरे की सुबह से ही मंदिर के पट खुल जाते हैं और भक्तगण दशानन रावण की पूजा और आरती करने के लिए लंबी कतारों में खड़े हो जाते हैं। शाम को विशेष पूजा और आरती के बाद मंदिर के कपाट फिर से एक साल के लिए बंद कर दिए जाते हैं।
रावण के इस मंदिर का निर्माण वर्ष 1868 में महाराज गुरु प्रसाद शुक्ल ने कराया था। वे भगवान शिव के बहुत बड़े भक्त थे और उनका मानना था कि रावण सिर्फ बुराई का प्रतीक नहीं था। रावण भगवान शिव के परम भक्त, महान ज्ञानी, और शक्तिशाली था। इसी कारण गुरु प्रसाद शुक्ल ने रावण को शक्ति और विद्या का प्रतीक मानते हुए इस मंदिर का निर्माण करवाया। भक्तों का विश्वास है कि रावण की पूजा करने से बुद्धि और बल की प्राप्ति होती है। दशहरे के दिन यहां आने वाले भक्तों ने तेल का दीपक जलाया और रावण को तरोई का पुष्प चढ़ाकर पूजा-अर्चना की।
मंदिर में स्थापित रावण की प्रतिमा को ‘शक्ति का प्रहरी’ भी माना जाता है, जिसका दशहरे के दिन भव्य श्रृंगार और पूजन किया जाता है। मंदिर के पुजारी राम बाजपेई ने बताया कि रावण को परम ज्ञानी और परम शक्तिशाली कहा जाता था। हम रावण के इस स्वरूप की यहां पर पूजा करते हैं और शाम को रावण के अहंकारी स्वरूप का पुतला दहन करते हैं। रावण दहन के दिन रावण की पूजा का यह तरीका कानपुर की धार्मिक और सांस्कृतिक विरासत को एक विशिष्ट पहचान देता है, जहां न केवल पराजय पर विजय का उत्सव मनाया जाता है, बल्कि महान ज्ञानी और शिव भक्त रावण के गुणों का भी सम्मान किया जाता है। कहा कि पिछले कई सालों से रावण के मंदिर में पूजा का सिलसिला चल रहा है। यहां भक्त सुबह से लेकर रात तक दर्शन करने आते हैं और विश्व कल्याण की कामना करते हैं।
वहीं भगवान श्री कृष्ण की नगरी में लंकेश दशानन रावण की पूजा विधि-विधान से कर आरती उतारी गई। लंकेश भक्त मंडल समिति द्वारा हर वर्ष की भांति इस बार भी प्राचीन मंदिर में लंकापति रावण की पूजा की गई। मंदिर परिसर में भजन कीर्तन के साथ भोजन वितरण किया गया। मान्यता है कि रावण का मथुरा से पुराना नाता था। क्योंकि मथुरा का पुराना नाम मधुपुर है। रावण की दो बहनें सूर्पनखा और कुम्भानी थी कुम्भानी का विवाह मधु राक्षस के साथ मधुपुर में हुआ था। रावण अपनी बहन से मिलने के लिए यहां आया करता था। लंकेश भक्त मंडल समिति अध्यक्ष ओमवीर सारस्वत कहते हैं कि, रावण चारों वेदों का ज्ञाता था. उनकी विद्वता सर्वोपरि थी, इसलिए रावण की पूजा करते हैं।